अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | यूपी में बिजली कम्पनियों द्वारा बिजली की कीमतों को बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए बाकायदा बिजली की कीमतों को बढ़ाने के लिए प्रस्ताव प्रस्तावित कर दिया गया है। हांलाकि राज्य विद्दुत उपभोक्ता परिषद ने इसका खुलकर विरोध किया है।
यूपी में जनता बेरोज़गारी और मंहगाई जैसी समस्याओं से पहले से ही पीड़ित है और इसी बीच बिजली कम्पनियों द्वारा कीमतों को बढ़ाने का फैसला जनता की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
बिजली कम्पनियों ने 2023-2024 के लिए सभी प्रकार की (सभी श्रेणी की) बिजली दरों को बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव के अनुसार कुल 15.85 प्रतिशत की वृद्धि प्रस्तावित की गई है।
सबसे अधिक बिजली कीमतों की वृद्धि घरेलू श्रेणी में प्रस्तावित है, जो 18-23 प्रतिशत है। उद्योगों के लिए 16, वाणिज्यिक के लिए 12 और कृषि के लिए 10-12 प्रतिशत बिजली कीमतों की वृद्धि प्रस्तावित की गई है। बीपीएल श्रेणी में लाइफलाइन उपभोक्ताओं की दरों में भी 17 प्रतिशत की वृद्धि प्रस्तावित की गई है।
बिजली कम्पनियों द्वारा सोमवार को विद्युत नियामक आयोग में 2023-2024 के लिए वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) और टैरिफ प्रस्ताव दाखिल कर दिया गया है। विद्युत नियामक आयोग इसका परीक्षण कर इसको स्वीकार करने के बारे में निर्णय लेगा। इसके बाद बिजली की बढ़ी हुई कीमतों के निर्धारण की प्रक्रिया शुरू होगी।
बिजली कम्पनियों द्वारा इस बात की दुहाई दी जा रही है कि बीते तीन साल में बिजली की कीमतों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है, इसलिए बिजली की कीमतों को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। बिजली कम्पनियों ने 2023-2024 के लिए 92,547 करोड़ रुपए का एआरआर दाखिल किया है। इसमें विद्युत वितरण लाइन हानियां 14.9 प्रतिशत बताया है। एआरआर के मुताबिक 2023-2024 में कुल घाटा 22,740 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।
राज्य सरकार से 13,600 करोड़ रुपए की सब्सिडी मिलने के बाद भी घाटा 9,140 करोड़ रुपए का रह जाएगा। बिजली कम्पनियों द्वारा आम बिजली उपभोक्ताओं का 25,133 करोड़ रुपए दबा कर रखा गया है, इस रुपए के बारे में बिजली कम्पनियों द्वारा कुछ नहीं कहा जा रहा है। बिजली कम्पनियों द्वारा यह नहीं बताया जा रहा है कि आम बिजली उपभोक्ताओं का यह पैसा उपभोक्ताओं को कब और कैसे वापस किया जाएगा।
यहां पर यह ज्ञात हो कि बिजली कम्पनियों द्वारा आम बिजली उपभोक्ताओं से धोखाधड़ी करके जबरन अधिक बिजली बिल वसूल कर यह पैसा इकट्ठा किया गया है। इसका खुलासा होने के बाद से अब तक बिजली कम्पनियों ने यह पैसा बिजली उपभोक्ताओं को वापस नहीं किया है। जबकि विद्युत नियामक आयोग ने बिजली उपभोक्ताओं को यह पैसा वापस करने के लिए बिजली कम्पनियों को आदेश दिया था।
यूपी में बिजली की कीमतों के बढ़ने से आम जनता पर मंहगाई की बहुत तगड़ी मार पड़ेगी और जनता की मंहगाई से कमर टूट जाएगी। जनता को इस मंहगाई को सहन करना बड़ा मुश्किल होगा। जनता इससे चारों तरफ से प्रभावित होगी। एक तो उसको बढ़ी हुई बिजली की कीमतों को अदा करना होगा, वहीं दूसरी ओर बिजली की कीमतों के बढ़ने से अन्य सामानों की कीमतें भी बढ़ जाएंगी।
मसलन कृषि क्षेत्र में भी बिजली की कीमतें बढ़ेंगी, इससे कृषि क्षेत्र में फसलों की लागत अधिक हो जाएगी, खेती -किसानी मंहगी हो जाएगी। कृषि/खेती के जरिये पैदा होने वाले अनाज और सब्जियां मंहगी हो जाएंगी। इसके अलावा वाणिज्यिक बिजली मंहगी होने से आटे और मसालों की कीमतें भी बढ़ जाएंगी। इससे आम आदमी सीधे तौर पर मंहगाई की मार से जूझेगा।
इस तरह आम आदमी को बिजली की कीमतों के बढ़ने से भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा और उसको मंहगाई की मार झेलनी पड़ेगी। हालांकि राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली कीमतों को बढ़ाने के प्रस्ताव का विरोध किया है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली कीमतों को बढ़ाए जाने के प्रस्ताव पर हैरानी जताई है।
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष आरपी सिंह और सदस्य विनोद कुमार श्रीवास्तव से मुलाकात कर इस संबंध में लोक महत्व की एक याचिका दायर की है। उन्होंने बिजली कम्पनियों के ऊपर जनता की निकल रही देनदारी के एवज में बिजली कीमतों को एकमुश्त 35 प्रतिशत तक कम करने की मांग की है।
अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि, “बिजली कम्पनियों के ऊपर जनता का 25,133 करोड़ रुपए बकाया है। यह पैसा जनता का है, इसे जनता को वापस करना चाहिए। लेकिन बिजली कम्पनियों ने यह पैसा जनता को अभी तक वापस नहीं किया है, इसलिए बिजली कम्पनियों के ऊपर जनता की देनदारी बनती है। बिजली कम्पनियों को चाहिए कि वह जनता की इस देनदारी के एवज में जनता को एकमुश्त 35 प्रतिशत कम कीमत पर बिजली उपलब्ध कराएं या फिर 5 वर्ष तक प्रति वर्ष 7 प्रतिशत की बिजली की कीमतों में कमी करें।”
उन्होंने कहा, “पावर कारपोरेशन ने कानून के विपरीत जाकर बिजली दरों में व्रद्धि का प्रस्ताव दाखिल किया है। इसलिए जब बिजली कम्पनियों के ऊपर उपभोक्ताओं का सरप्लस निकल रहा है, तो बिजली दरों में व्रद्धि कैसे प्रस्तावित की जा सकती है? यह असंवैधानिक है। बिजली दरों (बिजली कीमतों) में भारी वृद्धि या बिजली कीमतों को बढ़ाने के प्रस्ताव का राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद हर स्तर पर कड़ा विरोध करेगा।”
यूपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार आम बिजली उपभोक्ताओं के पैसे को बिजली कम्पनियों द्वारा दाबे जाने पर चुप्पी साधे हुए है। वह बिजली कम्पनियों को जनता को लूटने की एक तरह से छूट दिए हुए है। योगी आदित्यनाथ खुद ढिंढोरा पीटते हुए कहते हैं कि हमारी सरकार जनता की हितैषी है, जबकि बिजली कम्पनियों द्वारा अधिक बिजली बिलों के जरिए जनता से धोखाधड़ी कर जबरन वसूले गए अधिक पैसे के मामले पर वह चुप हैं।
यह योगी आदित्यनाथ की सरकार की ईमानदार सरकार पर सवालिया निशान है, जो उनकी सरकार के कामकाज की असली तस्वीर दिखाती है। बिजली कम्पनियों द्वारा जनता से वसूला गया यह पैसा जनता को कब मिलेगा? इस सवाल का जवाब यूपी सरकार क्या देगी?