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Saturday, May 4, 2024
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‘सीलबंद लिफाफे का न्यायशास्र’ स्वतंत्र मीडिया के लिए मौत के समान: प्रशांत भूषण, मीडिया वन पर

सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट भी केरल उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश पीठ की तरह मलयालम टीवी चैनल ‘मीडिया वन’ के मामले में “सीलबंद कवर” लिफाफे को स्वीकार करता है, तो यह भारत में स्वतंत्र मीडिया के लिए मौत की घंटी के समान होगा.

मीडियावन चैनल के मैनेजमेंट द्वारा प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में बुलाई गई कॉन्फ्रेंस में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए प्रशांत भूषण ने यह कठोर टिप्पणी की. इसी साल 31 जनवरी से सरकार द्वारा मीडियावन चैनल पर समाचार और करंट अफेयर्स के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिए गए कारणों को मैनेजमेंट ने साझा किया. हालांकि मीडिया वन मैनेजमेंट ने सरकार के तर्क को बेबुनियाद बताया.

कानूनी जानकार प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील और जज बीएच लोया हत्याकांड का फैसला “सीलबंद लिफाफों” में जमा की गई जांच रिपोर्ट के आधार पर किया था. हालांकि, बाद में पता चला कि सीलबंद लिफाफे में राफेल सौदे के बारे में दी गई जानकारी गलत थी.

उन्होंने कहा कि “सीलबंद लिफाफे” के आधार पर निर्णय देने का नया चलन शीर्ष न्यायपालिका में तब से शुरू हुआ जब रंजन गोगोई भारत के मुख्य न्यायाधीश थे.

प्रशांत भूषण ने कहा कि “मुहरबंद लिफाफे” पर आधारित “नया न्यायशास्त्र” “प्राकृतिक न्याय का घोर उल्लंघन” है क्योंकि इसमें पारदर्शिता का अभाव होता है. इसलिए, इसे उखाड़ फैंकने की ज़रूरत है.” उन्होंने कहा कि उन्हें आश्चर्य है कि राफेल सौदे और जज लोया हत्याकांड में “सीलबंद लिफाफों” में जानकारी पर बाकियों के अप्रूवल को अनुमति क्यों दी गई.

भूषण ने कहा कि मीडियावन मामले में भी ऐसा ही हो रहा था. सरकार ने, इस मामले में, ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का नाम लिया है, और गृह मंत्रालय ने मीडिया वन के प्रबंधन को एक प्रति भी दिए बिना “सीलबंद कवर” में केरल उच्च न्यायालय को अपना जवाब प्रस्तुत किया.

भूषण ने कहा कि गृह मंत्रालय ने “इंटेलिजेंस इनपुट” पर भरोसा किया है, जिसके अनुसार अगर मीडिया वन को समाचार प्रसारित करने के लिए सिक्योरिटी क्लियरेंस दी गई तो “सुरक्षा उल्लंघन” हो सकता है.

भूषण ने मीडियाकर्मियों से कहा कि “यह प्राकृतिक न्याय का घोर उल्लंघन है, और अगर सर्वोच्च न्यायालय इस” सीलबंद कवर “रिपोर्ट को स्वीकार करता है, तो यह भारत में स्वतन्त्र मीडिया के अंत का संकेत होगा.

उन्होंने मांग की कि अदालत इस बात की जांच करे कि क्या बिना ठोस कारणों के “राष्ट्रीय सुरक्षा” का नियम लागू करके मौलिक अधिकारों से वंचित करना उचित है? पूर्व में कई मामलों अदालतों ने सरकार के तर्कों को स्वीकार किया है जहां राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मुद्दे को उठाया गया था.

सरकार स्वतंत्र मीडिया पर पाबंदियों की शुरुआत करने के लिए मीडिया वन को प्रयोग के तौर पर आज़मा सकती है, यह बताते हुए भूषण ने कहा कि इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
हालांकि, उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर यह सब किया है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह कानून अदालतों की जांच भी पास करेगी.

द हिंदू के पूर्व प्रधान संपादक एन. राम ने कहा कि भाजपा सरकार ने मीडिया वन के साथ जो किया है वह “नागरिकों के स्वतंत्र अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर हमला है.” प्रख्यात पत्रकार एन राम ने बताया कि गृह मंत्रालय ने केरल उच्च न्यायालय को बिना किसी पारदर्शिता के “सीलबंद लिफाफे” में अपनी रिपोर्ट सौंप कर नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पूरी तरह से उल्लंघन किया है, और यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है.

उन्होंने आशा व्यक्त की कि प्रेस की स्वतंत्रता और टीवी चैनल के साथ काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों के हित में मीडिया वन मामले में अदालत अंततः न्याय करेगी.

एन राम ने आरोप लगाया कि मीडिया वन के प्रसारण अधिकारों को रद्द करना भारत की मुस्लिम आबादी पर एक सीधा हमला है, सरकार उन्हें नीचे नहीं गिरा सकती है. उन्हें दबाया नहीं जा सकता. एन राम ने ऑनलाइन संवाद में यह बातें कहीं.

एन राम जोकि अपने तर्कपूर्ण बातों के लिए जाने जाते हैं उन्होंने कहा कि “मीडियावन का लाइसेंस रद्द करना अल्पसंख्यकों की भूमिका के बारे में संदेह पैदा करने जैसा है, यह अल्पसंख्यकों पर दबाव बनाने के लिए कार्यकारी शाखा द्वारा की आक्रामकता है, यह भाषण और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है.”

अनुभवी पत्रकार और एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत के पूर्व प्रमुख आकार पटेल, जिनके प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने की उम्मीद की गई थी, वो शामिल नहीं हुए.

मीडिया वन के संपादक प्रमोद कुमार ने बताया कि कैसे सरकार ने “अचानक और मनमाने ढंग से” उनके टीवी चैनल के प्रसारण लाइसेंस को रद्द कर दिया.

एक संयुक्त प्रेस बयान भी जारी किया गया जिसमें कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह, टीएमसी सांसद मोहुआ मोइत्रा, डीएमके सांसद कनिमोझी और शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी सहित कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने हस्ताक्षर किए.

संयुक्त बयान में कहा गया है, गृह मंत्रालय की मनमानी कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान किये गए भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और भारत में प्रेस स्वतंत्रता पर बनाये जा रहे दबाव की ओर भी इशारा करता है.”

संयुक्त बयान में आगे कहा गया है कि “हम केरल उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश पीठ के फैसले से भी बेहद निराश हैं, जिसने सूचना और प्रसारण मंत्रालय और गृह मंत्रालय द्वारा मीडिया वन न्यूज़ के लाइसेंस को रद्द करने और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा करने से इनकार कर दिया.

बयान में यह भी कहा गया है, “एकल-न्यायाधीश की पीठ का निर्णय गृह मंत्रालय द्वारा प्रदान किए गए एक ‘सीलबंद कवर’ लिफाफे पर आधारित था, जिसकी सामग्री मीडिया वन के साथ साझा नहीं की गई थी.

“यह प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है, जो किसी भी निर्णय प्रक्रिया में भौतिक साक्ष्य और विशेष रूप से मौलिक अधिकारों से संबंधित मामले में विवाद के लिए दोनों पक्षों के साथ साझा किया जाना चाहिए.”

संयुक्त बयान में आरोप लगाया गया कि “अदालत अपने फैसले के पीछे के कारणों को नहीं बताकर संवैधानिक अदालत के रूप में अपने कर्तव्य में विफल रही.

मीडिया वन को 30 सितंबर, 2011 को दस साल के लिए लाइसेंस दिया गया था. बाद में इसके नवीनीकरण के आवेदन को सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा 31 जनवरी, 2022 को गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा मंज़ूरी से इनकार करने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था.

मीडिया वन एक टॉप रेटेड समाचार चैनल है और इसने कई पुरस्कार जीते हैं. भारत के अंदर इसके टीवी दर्शकों की संख्या 15.4 मिलियन और बाहर 3.2 मिलियन है. डिजिटल प्लेटफॉर्म पपर दर्शकों की संख्या और भी अधिक है. यह भारत के अंदर 1.8 बिलियन और भारत के बाहर 103.08 मिलियन है.

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