सैयद ख़लीक अहमद
नई दिल्ली | उत्तराखंड में 15 जनवरी को मैंने हरिद्वार से 35 किमी दूर एक हिंदू धार्मिक शहर ऋषिकेश का भ्रमण किया. ऋषिकेश, जिसे हिंदू ‘ऋषियों’ और साधुओं का निवास माना जाता है, हिमालय में चार हिंदू धामों – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेश द्वार है. गंगा नदी इस शहर से होकर गुज़रती हैं और नीचे की ओर हरिद्वार में बहती हैं.
उत्तराखंड के मूल निवासी मेरे पूर्व सहयोगी विक्रम रौतेला ने मुझे ऋषिकेश जाने का सुझाव दिया था. हालांकि उन्होंने मुझे बताया कि वैसे तो यह शहर मंदिरों का हैं, लेकिन मुझे शहर की प्राकृतिक सुंदरता और देहरादून से सड़क किनारे वाले इलाके देखने चाहिए. इसलिए, मैंने उनकी सलाह मान ली और अपनी पत्नी के साथ शहर घूमने निकल पड़ा.
जैसे ही हमारे ड्राइवर ने पार्किंग एरिया में टैक्सी खड़ी की, तो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति मेरे पास आया, उसने खुद को एक पर्यटक गाइड बताया. उसने कहा कि 450 रुपये में हमें नदी के दोनों किनारों पर स्थित अलग-अलग मंदिरों का भ्रमण करवाएगा.
इससे पहले कि वह कुछ और बोल पाता, मैंने उससे कहा कि हम मुसलमान हैं और फिलहाल हमें मंदिर देखने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैंने उससे पूछा कि, “मुझे बताओ कि इस मंदिरों वाले शहर में मुसलमानों के लिए देखने के लिए क्या है.?”
कुछ हफ़्ते पहले, कुछ विवादास्पद हिंदू धर्मगुरुओं ने हरिद्वार में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया था. यूं तो अब पूरे भारत में कहीं भी हिंदू दक्षिणपंथी समूहों द्वारा भड़काऊ भाषण देना एक रोज़मर्रा का काम हो गया है, लेकिन हरिद्वार में सारी हदें पार करते हुए कट्टरपंथियों ने न सिर्फ मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया बल्कि पुलिस और सशस्त्र बलों से मुसलमानों के खात्मे के लिए “सफाई” में भाग लेने की अपील भी की. मैं यह देखना चाहता था कि इस आध्यात्मिक नगर के लोगों पर विवादित ‘धर्म संसद’ के भड़काऊ बयान का क्या प्रभाव हुआ, इसलिए मैंने उस टूरिस्ट गाइड के सामने अपनी धार्मिक पहचान ज़ाहिर की.
गाइड एक सीधी बात करने वाला हाज़िर जवाब व्यक्ति था. बहुत ही शालीनता के साथ उसने जवाब दिया कि इस शहर में एक मुसलमान टूरिस्ट के रूप में घूमने के लिए आपके लिए सिर्फ दो जगह हैं, राम झूला और लक्ष्मण झूला – इसके अलावा कुछ भी नहीं है – यह झूले स्टील सस्पेंशन ब्रिज हैं. जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था तब यूपी ब्रिज कॉर्पोरेशन ने इनका निर्माण तीर्थयात्रियों के लिए गंगा नदी के दोनों ओर चलने के लिए किया था. गाइड ने कहा कि केवल यह दोनों जगह आपके परिवार के लिए दर्शनीय स्थल हैं, और इसके लिए आपको किसी सहायता की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी. फिर गाइड ने हमें सस्पेंशन ब्रिज की ओर जाने वाला रास्ता भी बताया. मैंने अपनी पत्नी के लिए उनकी भाषा या हाव-भाव में कोई नफरत या किसी प्रकार की कोई नापसन्दीदगी नहीं देखी. उसकी बॉडी लैंग्वेज से नफरत या असहजता ज़ाहिर नहीं हो रही थी.
हम अन्य सैलानियों की तरह लक्ष्मण झूला गए. एक बात जो मैंने नोटिस की वो यह थी कि सभी युवा हिंदू सौलानी या तीर्थ यात्री पश्चिमी पोशाक में थे. हमें भारतीय पोशाक, साड़ी या सलवार-क़मीज़, या कुर्ता-पायजामा या धोती-कुर्ता में एक भी युवा जोड़ा नहीं मिला. इसने हिंदू समुदाय की युवा पीढ़ी के बीच पश्चिमी पोशाक के साथ चलने वाली धार्मिकता की ओर संकेत दिया. जहां तक कपड़ो की बात है तो अपने तीर्थ स्थानों पर भी युवा हिन्दू पश्चिमी संस्कृति को अपनाये हुए थे.
हम कुछ उपहार खरीदने के लिए कुछ दुकानों में भी गए. हम मुसलमान हैं यह जानते हुए भी दुकानदार बहुत मिलनसार थे. उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के एक मुसलमान के रूप में अपना परिचय देने के बाद भी सड़क किनारे एक चाय बेचने वाला हिन्दू सहृदय ही मालूम पड़ा. पिछले सात वर्षों से पूरे देश में कट्टरपंथी हिंदू समूहों द्वारा मुस्लिम विरोधी अभियान चलाने के बावजूद ऋषिकेश में मुझे स्थानीय लोगों में मुसलमानों के खिलाफ किसी भी प्रकार की नफरत या असहजता नहीं दिखी. यह साबित करता है कि भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव को खत्म करने के लिए अति चरमपंथी हिन्दुत्ववादी अपने एजेंडे में सफल नहीं हो सकते हैं. कट्टरपंथी संगठनों ने अब तक नफरत फैलाने के संबंध में जो कुछ भी किया है, वह बहुसंख्यक समुदाय में कट्टरपंथी तत्वों के प्रति सहानुभूति रखने वाली राजनीतिक व्यवस्था के कारण ही संभव हुआ है. निस्संदेह, भारत के अधिकांश हिंदू इन कट्टरपंथी तत्वों के विचारों का समर्थन नहीं करते हैं.
लौटते समय, हमने ऋषिकेश शहर में पारंपरिक काले ‘बुर्के’ में एक मुस्लिम महिला को भी देखा, जो यह संकेत देती है कि मुसलमान इस हिन्दू तीर्थ स्थल में अपनी धार्मिक पहचान के साथ बिना किसी डर के रहते हैं. 2011 के आंकड़े के अनुसार, ऋषिकेश के स्थायी निवासी के रूप में 85 मुसलमान हैं, जिनकी कुल आबादी 1.20 लाख से अधिक है.
सत्ताधारी वर्ग, जो पिछले कुछ वर्षों से अपने राजनीतिक लाभ के लिए हर अवसर का इस्तेमाल धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए जाना जाता है, क्या वह धार्मिक सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को मज़बूत करने के लिए ऋषिकेश के आम लोगों से सबक लेगा?