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Tuesday, May 14, 2024
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AMU किशनगंज सेंटर के बजट आवंटन का मुद्दा बना आन्दोलन, ट्विटर पर हुआ ट्रेंड

अज़हर अंसार

नई दिल्ली | 27 जनवरी को लगभग दिनभर ट्विटर पर एक हैशटैग #FundForAMUKishanganj ट्रेंड करता रहा. बिहार के सीमांचल और देश भर के कई युवाओं, छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसपर लगातार कई ट्वीट किए. मुद्दे के ट्रेंड में आने के बाद कई स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति में वर्चस्व रखने वाले नेताओं ने भी इसपर ट्वीट करना शुरू कर दिया.

दरअसल सीमांचल के युवा और कई पत्रकार इस मुद्दे पर लगातार पिछले कई सालों से लिख और बोल रहे हैं. लेकिन उनकी मांग पर केंद्र सरकार और शिक्षा मंत्रालय ध्यान नहीं देता. इस बार पिछले हफ्ते से ही सीमांचल के युवाओं ने AMU किशनगंज के अटके हुए फंड के मामले पर लिखना शुरू किया और इसे एक डिजिटल अभियान की शक्ल दे दी.

स्थानीय मीडिया ‘खबर सीमांचल’ से जुड़े पत्रकार हसन जावेद ने लिखा – “AMU Kishanganj पिछले 12 सालों से यू ही वीरान पड़ा है। नीति आयोग का दावा है, शिक्षा के मामले देश का सबसे पिछड़ा इलाका है सीमांचल, सरकारें कब तक इस इलाके को हाशिए में रखेगी, हमें हमारा हक वापस दो” #FundForAMUKishanganj

इसी मामले को लेकर बिहार के अन्य युवा और छात्र भी ट्वीट करने लगें और देखते ही देखते #FundForAMUKishanganj ट्विटर पर राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेंड करने लगा.

AIMIM प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया – “मैंने #FundForAMUKishanganj की मांग को लगातार उठाया है. लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई. सीमांचल को क्यों अनदेखा किया जाता है? प्रधानमंत्री कार्यालय और मुख़्तार अब्बास नकवी ने मुसलमानों के शेक्षणिक विकास के लिए कुछ नहीं किया. जानबूझकर उपेक्षा की गई”

किशनगंज से कांग्रेस सांसद डॉ. मोहम्मद जावेद ने संसद भवन में महात्मा गाँधी की प्रतिमा के सामने AMU किशनगंज के लिए फण्ड आवंटित करने की मांग करते हुए अपनी एक पुरानी तस्वीर ट्वीट की. उन्होंने लिखा कि “हम माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आने वाले बजट में AMU के किशनगंज सेंटर के लिए फंड आवंटित करने की मांग करते है. #FundForAMUKishanganj”

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और बिहार विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार रहे मशकूर उस्मानी ने लिखा कि “AMU किशनगंज केंद्र की खराब स्थिति सरकार की अज्ञानता और शिक्षा विरोधी नीतियों की ही एक अभिव्यक्ति है…”

इस मामले पर कई बड़े नामों के ट्विटर हैंडल से ट्वीट होने के बाद बिहार और देशभर की कई राजनैतिक पार्टियों समेत छात्र संगठनों ने ट्वीट कर सेंटर के लिए जल्द से जल्द फण्ड रिलीज़ करने की मांग की. कांग्रेस, राजद, AIMIM, टीपू सुल्तान पार्टी, राष्ट्रीय उलमा कौंसिल और अन्य दलों के प्रवक्ताओं ने इस मामले पर लगातार ट्वीट किए. AISA, NSUI, SIO of India समेत कई छात्र संगठनों ने भी इस मामले पर ट्वीट कर सरकार का ध्यान इस तरफ खींचा है.

छात्र संगठन SIO of India ने ट्विटर पर लिखा “बिहार का अल्पसंख्यक केन्द्रित किशनगंज शेक्षणिक तौर पर देश के सबसे ज़्यादा अनदेखे किए गए इलाकों में से एक है. केंद्र और राज्य की सरकारें AMU के किशनगंज सेंटर को तक़रीबन एक दशक से धोका दे रही हैं. अब शिक्षा को प्राथमिकता देने का समय आ गया है. #FundForAMUKishanganj”

क्या है पूरा मामला?

AMU किशनगंज के अटके हुए फण्ड के मामले को समझने के लिए इस बार के इस डिजिटल कैंपेन को शुरू करने वालों में से एक पत्रकार हसन जावेद से हमने बात की. जावेद बताते हैं कि 2008 में यूपीए सरकार के दौरान किशनगंज में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सेंटर की स्थापना की घोषणा की गई थी. लेकिन 3 साल बाद भी इसके लिए कोई ज़मीन आवंटित नहीं हुई, फिर एक आन्दोलन के बाद किसी तरह दिसंबर 2011 में 224.2 एकड़ ज़मीन आवंटित हुई. 2014 में इस सेंटर के निर्माण और अन्य कार्यों के लिए 136.82 करोड़ फंड को मंजूरी मिली लेकिन सिर्फ 10 करोड़ का फंड ही रिलीज़ किया गया. यहाँ के लोगों और छात्रों को पिछले 8 सालों से बाकी फंड रिलीज़ होने का इन्तिज़ार है”

2016 में तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने किशनगंज के सेंटर के लिए 134 करोड़ की राशि सेंक्शन भी कर दी थी. लेकिन आजतक ये राशि सिर्फ एक आकंडा बनी हुई है, धरातल पर एक कौड़ी भी नहीं पहुँच सकी.

केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत फंड आवंटित नहीं करने के कारण AMU का किशनगंज सेंटर अब तक नहीं ठीक से शुरु भी नहीं हो सका है. क्योंकि कामकाज के लिए यहाँ इमारत और बुनियादी सुविधाए भी नहीं है. ये सेंटर बिहार सरकार के ज़रिए दी गई दो पुरानी इमारत में मुश्किल से चल पा रहा है.

पिछले 8 सालों से फंड नहीं रिलीज़ करने को लेकर किशनगंज और सीमांचल के लोगों में नाराज़गी है और वो समय समय पर बाहर आती रहती है. यही नाराज़गी और गुस्सा 27 जनवरी को ट्विटर पर भी नज़र आया.

AMU किशनगंज की वर्तमान स्थिति

2011 में तत्कालीन बिहार सरकार के ज़रिए दी गई तक़रीबन 224 एकड़ ज़मीन पर कई खामियों के साथ नवंबर 2013 में AMU का सेंटर किसी तरह शुरू हुआ. सबसे पहले यहाँ दो वर्षीय बी.एड. की शुरुआत हुई फिर 2014 में यहाँ MBA कोर्स भी शुरू कर दिया गया. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक अब तक इस सेंटर से बी.एड के दो बैच और MBA का एक बैच पास आउट हो चुका है. इस सेंटर की वर्तमान स्थिति जानने के लिए हमने सेंटर के निदेशक प्रोफ़ेसर हसन इमाम से संपर्क किया.

प्रोफ्रेसर हसन इमाम ने इंडिया टुमोरो को बताया कि “फिलहाल ये सेंटर बिहार सरकार के ज़रिए दी गई 2 इमारतों में चल रहा है जबकि तीसरी निर्माणाधीन है. सेंटर की बाउंडरी वॉल का अधूरा काम जल्द ही पूरा होना वाला है. सेंटर में अब सिर्फ एक MBA का ही कोर्स चल रहा है जबकि बी.एड का कोर्स नेशनल कौंसिल ऑफ़ टेक्नीकल एजुकेशन (NCTE) के दखल के बाद बंद हो चुका है. फिलहाल MBA के दोनों वर्षों में यहाँ 70 विद्यार्थी नामांकित हैं.”

प्रोफ़ेसर इमाम ने हमें बताया कि वें चाहते हैं कि किशनगंज सेंटर पर भी AMU मल्लापुरम और मुर्शिदाबाद सेंटर की तरह फिलहाल तीन कोर्सेज चलाए जा सकते हैं. सेंटर पर कोर्सेज और फैकल्टी बढ़ाने के लिए उनकी AMU प्रशासन और अधिकारीयों से बात चल रही है.

AMU के इस सेंटर के साथ एक और मामला जुड़ा हुआ है. बिहार सरकार द्वारा सेंटर को दी गई ज़मीन महानंदा नदी के किनारे पर है. नदी के किनारे पर होने के कारण नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) की आपत्ति के कारण यहाँ निर्माण कार्य नहीं हो पाता है. इस मामले पर भी हमने सेंटर के निदेशक से बात की. प्रोफ़ेसर इमाम कहते हैं कि “इस सबंध में हमने NMCG को पत्र लिखा है, और जल्द ही ये मुद्दा निपट जाएगा. क्योंकि सेंटर की ज़मीन नदी से तक़रीबन 2 किलोमीटर दूर है. इसके आलावा शिक्षा संस्थान से किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता है.”

सीमांचल के लोग चाहते हैं सेंटर का काम जल्द से जल्द शुरू हो और सिर्फ तीन नहीं बल्कि स्नातक और परास्नातक के दुसरे कोर्स भी यहाँ शुरू किये जाएं. लेकिन उन्हें भी 9 सालों से अटके हुए फंड का इन्तिज़ार है.
ट्वीट-

किशनगंज और सीमांचल

हसन जावेद कहते हैं कि, “किशनगंज में मुसलमानों की संख्या लगभग 67 प्रतिशत है। इतनी बड़ी मुस्लिम आबादी वाला यह क्षेत्र शेक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर पिछड़ा हुआ है. विकास के नाम पर किशनगंज और सीमांचल को अक्सर सरकारें अनदेखा करती आई हैं. यहाँ से अलग अलग राजनैतिक दलों के बड़े बड़े नेता लोगों का वोट लेकर जीतते तो थे लेकिन यहाँ के विकास और लोगों की शिक्षा पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया.”

गौरतलब है कि किशनगंज लोकसभा से कई बड़े नाम सांसद चुने गए हैं. जिनमें कांग्रेस से भाजपा में गए एम जे अकबर, जनता दल के सय्यद शहाबुद्दीन, कांग्रेस के मोहम्मद तस्लीमुद्दीन और भाजपा के सय्यद शाहनवाज़ हुसैन महत्वपूर्ण हैं. ये सभी अपने वक्त की सरकारों में केन्द्रीय मंत्री या अहम् पदों पर रहे हैं. फ़िलहाल किशनगंज से कांग्रेस के डॉ. मोहम्मद जावेद सांसद हैं.

सीमांचल में अधिकांश घरों में वित्तीय अस्थिरता और क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण बच्चों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल है. साथ ही, सीमांचल में बुनियादी शैक्षिक ढांचे की खराब स्थिति भी यहां विद्वानों, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों की कमी का एक मुख्य कारक है, जिनके योगदान और सुझाव एक शहर के विकास के लिए आवश्यक होते हैं.

हसन जावेद बताते हैं कि अब यहाँ के लोगों में जागरूकता आई है और वो अपने अधिकारों को समझने लगें है. इस डिजिटल अभियान के अनुभव से उनका मानना है कि यहाँ के युवा और छात्रों ने अब इस सेंटर को बनाने की ठान ली है. वो कहते हैं कि “ये अभियान लगातार जारी रहेगा, जब तक सरकार आगामी बजट में AMU के इस किशनगंज सेंटर के लिए पूरा फंड नहीं दे देती. और आगे सिग्नेचर केम्पैन से लेकर सड़क पर आन्दोलन करने के लिए हम तैयार हैं.”

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