इशफ़ाक़ुल हसन | इंडिया टुमारो
श्रीनगर | जम्मू-कश्मीर में बिल्कुल 1990 जैसा दिन है. अक्तूबर महीने के शुरुआती 15 दिनों में ही सुरक्षा बलों के नौ जवानों सहित 34 से अधिक लोग मारे गए हैं.
इस महीने में हर दिन औसतन दो से अधिक लोगों की मौत हुई है, ये सभी घटनाएं अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद आतंकवाद को कुचलने के सरकार के फर्ज़ी दावों की पोल खोलती है.
आंकड़ों से मालूम होता है कि जम्मू और कश्मीर में शुरुआती 15 दिनों में 14 आतंकवादी और 10 नागरिक मारे गए हैं. हाल ही में कश्मीर में दो गैर-स्थानीय मज़दूर मारे गए हैं.
इन दो गैर-स्थानीय मज़दूरों में एक बांका बिहार के अरविंद कुमार शाह और उत्तर प्रदेश के सगीर अहमद थे, जिन्हें क्रमशः श्रीनगर के ईदगाह और पुलवामा जिले के लिटर में संदिग्ध आतंकवादियों ने मार डाला.
पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने कहा कि, पुलिस उन सभी आतंकवादियों को पकड़ने के लिए प्रतिबद्ध है, जो जनता में भय पैदा करने और घाटी में उपद्रव और अशांति फैलाने की कोशिश कर हैं.
विजय कुमार ने बताया कि, “श्रीनगर में हाल ही में हुई नागरिकों की हत्याओं के बाद, आतंकवादी शाहिद खुर्शीद, शाहिद बशीर के साथ पुलवामा जिले में चले गए थे, जबकि उनके सहयोगी मुख्तार शाह शोपियां में चले गए थे. तीनों का सफाया कर दिया गया है. अब तक नौ अलग-अलग अभियानों में 13 आतंकवादियों को मार गिराया गया है.
इन सभी हत्याओं ने केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद कश्मीर में किए जाने वाले शांति और सामान्य स्थिति के सभी दावों की पोल खोल दी है. कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 के बाद से आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में गिरावट और पथराव की घटनाओं को खत्म करने को लेकर केंद्र सरकार लगातार झूठे दावे कर रही थी.
कश्मीर के एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता गुफ्तार अहमद ने ट्वीट किया कि, “कश्मीर में पिछले 15 दिनों में 10 नागरिक मारे गए. पीर पंजाल में सेना के 9 जवानों की जान चली गई. पूरे जम्मू-कश्मीर में खून-खराबा हो रहा है. सरकार जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण माहौल स्थापित करने में विफल रही है. पुंछ से लेकर उरी तक हर एक खौफ में है.”
हिंसा की घटनाओं में हाल ही में हुई तेज़ी ने मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की विफलताओं को उजागर करने के लिए कश्मीर में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को नए सिरे से सबूत प्रदान कर दिए है.
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सवाल करते हुए कहती हैं कि, “अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने घर जा रहा एक निर्दोष नागरिक, एक गैर-स्थानीय वेंडर और सैनिक इनमें से अभी किसी को भी नहीं मरना था. हैरानी होती है कि आखिर भारत सरकार को यह महसूस करने के लिए और कौनसी कीमत चाहिए कि उसकी नीतियां जम्मू-कश्मीर में बुरी तरह से विफल रही हैं.”
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि, “जम्मू-कश्मीर प्रशासन को अल्पसंख्यकों पर हमलों के बारे में पहले से सूचना थी, फिर भी उन्होंने इन सूचनाओं को नज़रअंदाज़ किया. इसके बजाय वे जम्मू-कश्मीर में तथाकथित सामान्य स्थिति के भाजपा के फर्ज़ी दावो का प्रचार करने के लिए कश्मीर लाए गए केंद्रीय मंत्रियों को सुरक्षा प्रदान करने में व्यस्त थे.”
महबूबा मुफ्ती आगे कहती हैं कि, “आतंकवादियों का पता लगाने और लोगों में फिर से सरकार के प्रति विश्वास जगाने के लिए पूरे कश्मीर में सैकड़ों संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है. घटनाओं की ज़िम्मेदारी नहीं लेना और 700 नागरिकों को गिरफ्तार करना दर्शाता है कि सरकार गलती किसी और पर डालकर खुद को दोषमुक्त दिखाना चाहती है. खुद की तानाशाही नीतियों की वजह से पैदा हुई समस्याओं के लिए कश्मीर की पूरी आबादी को सामूहिक दंड देना और उन्हे अपमानित करना भारत सरकार की आदत बन गई है.”
उग्रवादियों ने ऐसे समय में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई है जब सरकार प्रवासी कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस लाने के लिए नीति बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है. सरकार ने कश्मीरी प्रवासियों के लिए एक पोर्टल शुरू किया था, जो घाटी में उनकी अचल संपत्तियों से संबंधित शिकायतों को सूचीबद्ध करने के लिए बनाया गया था.
नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ के नए सिरे से किए गए प्रयासों के कारण सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है. उरी सेक्टर में घुसपैठ की एक बड़ी कोशिश को नाकाम कर दिया गया और मुठभेड़ कई दिनों तक चली. जम्मू के पुंछ सेक्टर में एलओसी के पास एक और मुठभेड़ जारी है.
जम्मू के रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल देवेंद्र आनंद ने कहा कि, “14 अक्टूबर की शाम से जिला पुंछ के मेंढर के नर खास वन क्षेत्र में सेना द्वारा आतंकवाद विरोधी एक अभियान जारी है.”
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा लगता है कि, “अफगानिस्तान में तालिबान के अधिग्रहण से कश्मीर में उग्रवादियों का मनोबल बढ़ा है और उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अपनी गतिविधियां तेज़ कर दी हैं.”
एक हफ्ते पहले थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवने ने अफगानिस्तान में स्थिति सामान्य होने पर जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की कोशिश करने वालों में अफगान मूल के विदेशी आतंकवादियों के शामिल होने की संभावना से इंकार नहीं किया था.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि, “भारतीय सशस्त्र बल किसी भी घटना से निपटने के लिए तैयार हैं क्योंकि उनके पास एक बहुत मज़बूत घुसपैठ रोधी ग्रिड के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के भीतरी इलाकों में आतंकवादी गतिविधियों की जांच करने के लिए एक सिस्टम है.”
उन्होंने कहा था कि, “निश्चित तौर पर (जम्मू-कश्मीर में) गतिविधियों में तेज़ी आई है, लेकिन क्या उन घटनाओं को अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है या हुआ उससे सीधे तौर पर जोड़ा जा सकता है? हम वास्तव में नहीं कह सकते.”