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Sunday, May 5, 2024
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उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की मौत का कौन है ज़िम्मेदार? क्या मुआवज़े से होगा इंसाफ?

इंडिया टुमारो से बात करते हुए उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा बताते हैं कि, "सरकार के पास सभी मृतक शिक्षकों की सूची भेज दी गई है. हम मुआवज़े की मांग कर रहे हैं और अपनी मांगों को लेकर डटे हैं."

मसीहुज़्ज़मा अंसारी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | भाजपा शासित उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपनी नीतियों और हठधर्मिता के कारण हज़ारों शिक्षकों की मौत के लिए ज़िम्मेदार बनी कटघरे में खड़ी है. हालांकि, मौत के आंकड़ो को झुठलाकर इस बार भी कटघरे से निकलने का भरसक प्रयास किया जा रहा है मगर शिक्षक संगठनों की मुस्तैदी ने सरकार को चारों ओर से घेर लिया है.

उत्तर प्रदेश में हाल ही में तमाम विरोध के बावजूद भाजपा सरकार द्वारा कराए गए पंचायत चुनाव की ड्यूटी में संक्रमित होने के कारण 1621 शिक्षकों की मृत्यु हो गई जो योगी सरकार की असंवेदनशीलता को उजागर करने के लिए काफी है. विभिन्न शिक्षक संघ पहले से ही सरकार से चुनाव को टालने की मांग करते रहे, मतगणना को टालने की गुहार लगाते रहे और अब 1621 शिक्षकों की मौत के बाद मुआवज़े की मांग कर रहे हैं. हालांकि, सरकार की तरफ से अब तक कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिल सका है.

सरकार उन शिक्षकों की मौत के आंकड़ों को स्वीकार करने से इंकार कर रही है जिन प्राथमिक शिक्षकों ने कोरोना महामारी की पहली लहर में मुख्यमंत्री राहत कोष में 76 करोड़ रुपये दिए थे.

पहले सरकार शिक्षकों की मृत्यु की संख्या को मानने को तैयार नहीं थी और 1621 के बजाए केवल 3 शिक्षकों की मौत की बात स्वीकार कर रही थी लेकिन जब शिक्षक संघ ने सभी मृतकों के नाम पता और फोन नंबर के साथ सूची जारी की तो सरकार बैकफुट पर आगई और मुआवज़े पर विचार करने की बात कर रही है.

इंडिया टुमारो से बात करते हुए राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजीत सिंह ने बताया कि, “हमने दिवंगत शिक्षकों की सूची नाम और पते के साथ जारी की है और मृत शिक्षकों को मुआवज़ा व न्याय दिलाने के लिए प्रयासरत हैं.”

इस सवाल पर कि सरकार शिक्षक संघ के आंकड़ों को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रही बल्कि इसे झुठला रही है, शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष अजीत सिंह कहते हैं, “यदि सरकार इन आंकड़ों को नहीं मानती है तो इसके लिए हम सड़कों पर आएंगे, आंदोलन करेंगे मगर न्याय की लड़ाई लड़ेंगे.”

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश द्वारा जारी लिस्ट में 1488 मृत शिक्षकों के नाम दर्ज हैं. शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष बताते हैं कि यह आंकड़ा कुछ दिनों पहले का है, हम लिस्ट अपडेट कर रहे हैं और जल्द ही नई सूची जारी करेंगे.

इंडिया टुमारो से बात करते हुए उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा बताते हैं कि, “सरकार के पास सभी मृतक शिक्षकों की सूची भेज दी गई है. हम मुआवज़े की मांग कर रहे हैं और अपनी मांगों को लेकर डटे हैं.”

सरकार द्वारा आंकड़ों की अनदेखी के सवाल पर डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा कहते हैं, “हमने मृतक शिक्षकों का ये आंकड़ा कोई हवा में नहीं दिया है बल्कि जारी की गई सूची में पूरी जानकारी उपलब्ध है. शिक्षक का नाम, पता, ड्यूटी का स्थान और मृतक के आश्रितों का नंबर इत्यादि सब कुछ उस लिस्ट में है.”

उन्होंने कहा, “हमारे द्वारा जारी सूची की प्रमाणिकता को कोई जांचना चाहे तो लिस्ट में दिए गए किसी भी नंबर पर काल कर के मृतक के आश्रितों से बात कर सकता है. सरकार चाहे तो बात कर ले या मीडिया के लोग बात कर सकते हैं.”

डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा बताते हैं कि, “अभी तक सरकार ने मुआवज़े की घोषणा नहीं की हालांकि, बताया जा रहा है कि सरकार मुआवज़ा देने पर विचार कर रही लेकिन शिक्षक संघ को कोई लिखित सरकारी आदेश अब तक नहीं मिला है.”

बढ़ सकती है मृतक शिक्षकों की संख्या

उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव की ड्यूटी में संक्रमित 1621 शिक्षकों की मौत के आंकड़े को और भी बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है. अलग-अलग शिक्षक संगठनों के द्वारा जारी सूची के बाद भी संक्रमित शिक्षकों की मौत की खबरें आरही हैं.

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजीत सिंह बताते हैं कि, “जिस प्रकार से खबरें आरही हैं, मृतक शिक्षकों की संख्या और अधिक भी हो सकती है. जो शिक्षक अभी संक्रमित हैं उनके मरने की हर दिन सूचना प्राप्त हो रही है. हमें अंदाज़ा है कि नई सूची में यह आंकड़ा और भी अधिक होगा.”

अजीत सिंह ने बताया कि उनका संगठन जल्द ही मृत शिक्षकों की नई सूची जारी करेगा.

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने मौत के आंकड़े अधिक होने की संभावना जताते हुए कहा कि, “आंकड़े और भी बढ़ने का अनुमान है लेकिन अब तक जारी सूची के अनुसार मृत शिक्षकों की संख्या 1621 है.”

शिक्षक संघ के विरोध के बावजूद कराए गए पंचायत चुनाव

उत्तर प्रदेश में चार चरणों में पंचायत चुनाव कराए गए. प्रदेश के विभिन्न शिक्षक संगठनों ने सरकार से पंचायत चुनाव टालने का आग्रह किया था. शिक्षक संगठनों ने प्रत्येक चरण में हो रही मौतों से सरकार को सचेत किया और चुनाव टालने के आग्रह किया लेकिन चुनाव नहीं टाला गया.

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने पहले ही प्रशासन से मतगणना ड्यूटी में लगाए गए प्राथमिक शिक्षकों की आरटी-पीसीआर जांच कराने, उन्हें पीपीई किट उपलब्ध कराने ओर कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर कोरोना वॉरियर के रूप में 50 लाख की सहायता देने की मांग की थी.

कोविड नियमों की अनदेखी पर प्राथमिक शिक्षक संघ ने निर्वाचन आयोग को लिखा था पत्र

शिक्षक संगठनों ने सरकार और राज्य चुनाव आयोग को पत्र लिख कर स्थिति से लगातार आगाह कराते रहे मगर सरकार या आयोग ने कोई संज्ञान नहीं लिया.

प्राथमिक शिक्षक संघ ने 12 अप्रैल को पंचायत चुनाव के लिए हो रहे प्रशिक्षण के दौरान राज्य निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा था.

इस पत्र में संघ ने पंचायत चुनाव के प्रशिक्षण के दौरान कोविड-19 से बचाव के लिए बने नियमों की अनदेखी किए जाने का आरोप लगाया था और कहा था कि, “प्रशिक्षण में उपस्थित जनसमूह को देख ऐसा लगाता है कि कर्मचारी, शिक्षण व अधिकारी कोविड-19 संक्रमण के ढेर पर बैठे हैं.”

प्राथमिक शिक्षक संघ ने 12 अप्रैल को लिखे पत्र में कहा था कि, “उत्तर प्रदेश में दिन प्रतिदिन कोविड-19 का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव कराने के लिए जो प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं, उसकी विभिन्न जनपदों से प्राप्त हो रही तस्वीरें अत्यंत डरावनी व भयावह है. निर्वाचन प्रशिक्षण में हजारों की संख्या में शिक्षक, कर्मचारी व अधिकारी एकत्र हो रहे हैं. जिसको देखकर स्पष्ट है कि कोविड-19 के बचाव हेतु निर्धारित निर्देशों का पालन नहीं हो पा रहा है. प्रशिक्षण में उपस्थित जनसमूह को देख ऐसा लगाता है कि कर्मचारी, शिक्षण व अधिकारी कोविड-19 संक्रमण के ढेर पर बैठे हैं.”

शिक्षक संघ ने की थी मतगणना को टालने की मांग

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को और चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान 706 प्राथमिक शिक्षकों और बेसिक शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की मौत की सूचना देते हुए पंचायत चुनाव की दो मई को होने वाली मतगणना टाल देने की मांग की थी.

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ द्वारा 12 अप्रैल, 22 अप्रैल, 28 अप्रैल और 29 अप्रैल को पत्र लिखकर कोरोना महामारी के कारण पंचायत चुनाव को स्थगित किए जाने की मांग की थी.

उत्तर प्रदेश शिक्षक महासंघ ने भी मतगणना रोकने की मांग की थी. महासंघ ने 28 अप्रैल को निर्वाचन आयुक्त को पत्र लिखकर कोरोना के बढ़ते प्रकोप का हवाला देते हुए पंचायत चुनाव की मतगणना रोकने की अपील की थी.

उत्तर प्रदेश शिक्षक महासंघ द्वारा लिखे पत्र में कहा गया था कि, “पंचायत चुनाव के पहले प्रशिक्षण के दौरान जिला निर्वाचन अधिकारियों द्वारा कोविड से बचाव के दिशानिर्देशों के अनुसार व्यवस्था नहीं की गई जिससे शिक्षक व कर्मचारियों में संक्रमण तेजी से फैला. मतदान के दौरान भी बिना किसी सुरक्षा उपायों के शिक्षकों व कर्मचारियों को मतदान कराने के लिए भेज दिया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि मतदान कराकर लौटे लाखों शिक्षक व कर्मचारी संक्रमित हो गए. अब तक सैकड़ों शिक्षक असमय ही काल के गाल में समा चुके हैं. संघ की जनपद शाखाओं से प्राप्त सूचना के अनुसार शिक्षकों की उन्हीं जनपदों में सर्वाधिक मृत्यु हुई है जहां मतदान हो चुके हैं.’

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा मतगणना पर रोक लगाने से इनकार करने पर शिक्षकों को मतगणना में ड्यूटी करना पड़ा.

राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग द्वारा यह सुनिश्चित किया गया था कि मतगणना में कोविड से बचाव के उपाय किए जाएंगे मगर ऐसा नहीं हुआ. ड्यूटी करते हुए हज़ारों शिक्षक कोरोना संक्रमित हो गए जिससे उनकी मौत हो गई.

क्या शिक्षकों की मौत के लिए सरकार ज़िम्मेदार नहीं है?

योगी सरकार की चुनाव करवाने की ज़िद, हठधर्मिता  और सख़्त रवैये ने हज़ारों शिक्षकों की जान ले ली. बहुत से परिवारों में मृतक अकेले कमाने वाले थे. मरने वाले कई शिक्षक परिवार के मुखिया थे, कई महिला शिक्षक अपने छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर इस दुनिया से चली गईं. एक गर्भवती महिला चुनाव ड्यूटी में जाने के कारण संक्रमित हो गई और अपनी कोख में दो जुड़वा बच्चों को लिए इस दुनिया से विदा हो गई. सैकड़ों दर्द भरी कहानियां हैं जिन्हें पढ़ा सुना जाता रहेगा मगर सवाल ये है कि आखिर इनके लिए ज़िम्मेदार कौन है?

क्या इन शिक्षकों की मौत का ज़िम्मेदार केवल कोरोना है या सरकारी आदेश भी इन शिक्षकों की मौत के लिए बराबर की  ज़िम्मेदार है? क्या राज्य चुनाव आयोग और योगी सरकार को कटघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए? क्या सरकार हज़ारों परिवारों के उजड़ने की आरोपी नहीं है?

यदि सरकार अपनी ज़िद और हठधर्मिता से पीछे हटती तो शायद इतनी बड़ी संख्या में एक साथ इतने शिक्षक संक्रमित नहीं होते. जिन मौतों के लिए सरकार प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार है उसपर शर्म से सर झुकाने के बजाए सरकार मौत के आंकड़ों को छिपाने की बाज़ीगरी कर रही है.

सरकार ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए न केवल लाखों शिक्षकों की जान को जोखिम में डाला बल्कि हज़ारों शिक्षकों की बलि भी चढ़ाई.

उत्तर प्रदेश की जनता को योगी सरकार से सवाल करना चाहिए और हर एक मौत का हिसाब मांगना चाहिए. देर सबेर मुआवज़ा तो मिल ही जाएगा मगर याद रहे कि मुआवज़ा इंसाफ नहीं होता.

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