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Tuesday, May 14, 2024
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तलाक के मामले में ‘यूनीफॉर्म लॉ’ की याचिका के खिलाफ मुस्लिम महिला पहुँची सुप्रीम कोर्ट

मसीहुज़्ज़मा अंसारी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट में तलाक और भरण-पोषण के कानूनों में एकरूपता के लिए ‘यूनीफॉर्म लॉ’ की मांग के लिए याचिका दायर की गई है. इस याचिका के ‌खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर की है.

‘यूनीफॉर्म लॉ’ की मांग की इस याचिका को भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ने दायर किया है.

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने पिछले साल व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता के लिए यह रिट याचिका दायर की थी.

याचिका में उनकी दलील है कि हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक लेते हैं, जबकि मुस्लिम, ईसाई और पारसी धर्म के निजी कानून हैं.

तलाक और भरण-पोषण सम्बंधित कानूनों में ‘यूनीफॉर्म लॉ’ की मांग वाली याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने वाली महिला अमीना शेरवानी हैं जो गुड़गांव की निवासी हैं. उनका दावा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम शादियों, तलाक, भरण-पोषण आदि के प्रावधान मौजूद हैं जो उपयुक्त हैं.  

उनका कहना है कि, मुस्लिम लॉ, महिलाओं को विवाह पर ऐसी शर्तें लगाने में मदद करता है, जिससे वैवाहिक जीवन की अनिश्चितताओं के कारण उनके हितों की रक्षा होती है.

सुनवाई के दौरान, CJI ने पर्सनल लॉ में दखल देने पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि, “आप हमसे व्यक्तिगत कानूनों का अतिक्रमण करने और उनके द्वारा बनाए गए भेद को दूर करने के लिए कह रहे हैं.”

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है. नोटिस जारी करते हुए CJI ने कहा कि, “हम बड़ी सावधानी के साथ नोटिस जारी कर रहे हैं.”

लाइवला.इन के अनुसार, यह याचिका अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्युबी के माध्यम से दायर हुई है जिसमें कहा गया है, “मुस्लिम विवाह प्रकृति में संविदात्मक है और इसमें शामिल पक्षों को वैवाहिक संबंधों को विनियमित करने के लिए शर्तों को लागू करने की अनुमति दी जाती है.”

आवेदन में कहा गया है कि, “ऐसी शर्तें शादी से पहले या शादी के समय या शादी के बाद भी लागू की जा सकती हैं। समझौता कानूनी और मुस्लिम कानून के प्रावधानों के अनुसार हो। मुस्लिम कानून के तहत वैवाहिक शर्तों को लागू करने का विकल्प मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है और वैवाहिक जीवन की अनिश्चितताओं ओर विवाह के विघटन के दरमियान भी उनके हितों की रक्षा करता है.”

आवेदन में मेहर, तलाक के प्रकार जैसे अन्य प्रावधानों का ज़िक्र किया गया है, जिसे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी बताया गया है.

आवेदन में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत शादी के समझौतों के माध्यम से, मुस्लिम महिलाओं के पास मेहर का अधिकार है- यह शादी के ल‌िए एक “पर्याप्त” विचार है. वह कहती हैं कि मेहर इस्लामिक सिद्धांतों के तहत कम नहीं हो सकती.

आवेदन यह मानता है कि मध्यस्थता के माध्यम से वैवाहिक विवादों का समाधान इस्लामी वैवाहिक न्यायशास्त्र के तहत प्रदान किया जाता है. यह प्रस्तुत किया गया है कि इस प्रकार के विवाद निस्तारण से पार्टियों को “लंबी प्रतिकूल मुकदमेबाजी” से बचाया जाता है, जिससे विशेष रूप से महिलाओं को भारी कठिनाई और अपमान का सामना करना पड़ता है.

आवेदन में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, एक मुस्लिम महिला पति को 5 तरीकों से तलाक दे सकती है.

लाइवला.इन के अनुसार, शेरवानी ने जनहित याचिका के विरोध का आग्रह किया. उसने याचिकाकर्ता की लोकस स्टैंडाई पर सवाल उठाया, और कहा कि मौजूदा याचिका उनकी जैसी महिलाओं की एजेंसी को हटाने का एक कुत्सित प्रयास है.

याचिका में आगे कहा गया है कि याचिका संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्ष‌ित सांस्कृतिक और प्रथागत प्रथाओं में हस्तक्षेप करने का सोचा-समझा प्रयास है.

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