महेश त्रिवेदी और पर्वेज़ बारी | इंडिया टुमारो
अहमदाबाद | 25 फरवरी को एक मुस्लिम शिक्षित युवती की साबरमती नदी में कूदकर की गई खुदकुशी ने गुजरात की 60 लाख की अल्पसंख्यक आबादी को सदमे में धकेल दिया है. इस खुदकुशी की वजह से सोशल मीडिया पर भी लोगों की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. मंगलबार को पुलिस ने महिला के फरार पति को गुजरात के पड़ोसी राज्य राजस्थान से हिरासत में ले लिया है और पूछताछ के लिए गुजरात ले आई है.
23 वर्षीय आएशा की शादी राजस्थान के जालौर के रहने वाले आरिफ खान से 2018 में हुई थी. शादी के कुछ वक्त बाद से ही उन्हें ससुराल पक्ष द्वारा दहेज़ के लिए लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था. प्रताड़ना से परेशान होकर 2020 से आयशा अपने घरवालों के साथ अहमदाबाद में रह रही थी. 25 फरवरी गुरुवार की दोपहर आयशा ने साबरमती की लहरों में छलांग लगाकर अपनी ज़िन्दगी को खत्म कर लिया.
पुलिस के अनुसार नदी की लहरों के बीच अपनी ज़िंदगी को खत्म करने के तुरंत पहले आयशा ने अपनी ज़िंदगी खत्म कर लेने के विचारों के बारे में अपने पति आरिफ को बताया था, लेकिन आरिफ जो कि पहले कई बार दहेज़ की मांग के लिए आएशा को मारा और प्रताड़ित कर चुका था, ने आएशा को मर जाने को कहा और यह भी कहा कि मरने से पहले विडियो बनाकर उसे भेज दे ताकि वो यकीन कर सकें.
आएशा ने बाद में आत्महत्या करने से पहले अपने माता-पिता से फोन पर बात भी की थी, उसके बाद उस ने दो मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड किया जिसमें उसने अपने पिता से एक भावनात्मक अपील की थी, जिसमें उसने अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस न करने का अनुरोध किया था, लेकिन जैसे ही आयशा की खुदकुशी का दिल दहला देने वाला वीडियो वायरल हुआ, पुलिस ने आरिफ के खिलाफ़ आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर लिया.
“एक मज़बूत समाज और खुशहाल परिवार” अभियान के तहत अपने काउंसिलिंग सेंटर्स के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास कर रही “जमात ए इस्लामी हिंद” ने कहा है कि आज स्थिति यह है कि एक शिक्षित महिला को भी आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया जाता है और यह तथ्य मुस्लिम समुदाय के नेताओं और धर्मगुरुओं के लिए एक चिंता का विषय होना चाहिए.
जमात-ए-इस्लामी हिंद, गुजरात इकाई के अध्यक्ष शकील अहमद ने कहा कि, “दहेज प्रथा और अन्य धार्मिक रिवाजों के साथ-साथ घरेलू हिंसा के खिलाफ धार्मिक लोगों की मदद से जागरूकता अभियान चलाने का समय आ गया है.”
ऑल-इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की महिला विंग की चीफ ऑर्गेनाइज़र डॉ अस्मा ज़हरा ने कहा कि, “दहेज हराम है और एक पाप के समान कृत्य है.” उन्होंने मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि, “दहेज़ के खिलाफ़ युद्ध किया जाए और इस बुराई को समाज से मिटा दिया जाए. पवित्र पैगंबर मुहम्मद (सल्ल०) की सुन्नत के अनुसार शादी को बहुत सरल और आसान बनाया जाना चाहिए.”
उन्होंने समुदाय के बुज़ुर्गों, विशेष रूप से उलेमा और इमामों से आग्रह किया कि, “वे “आसान शादी” के बारे में जागरूकता फैलाएं और मस्जिदों में शुक्रवार के खुतबा (उपदेश) में किसी भी रूप में दहेज लेने और देने को गलत घोषित करें.”
डॉ ज़हरा दुख प्रकट करते हुए कहती हैं कि, “आएशा, पति और ससुराल वालों द्वारा की जा रही हिंसा से पीड़ित थी. वह गहरे अवसाद और शोक में थी और पूरी तरह उम्मीद खो चुकी थी और उसपर सामाजिक दबाव भी था. उसके अंतिम शब्द कि “वह किसी भी इंसान का चेहरा नहीं देखना चाहती है” उसकी अथाह वेदना और पीड़ा को दर्शाता है और उसके अंतिम विडियो में मौजूद दर्द ने पूरे समुदाय विशेषकर महिलाओं को हिला दिया है.”
उन्होंने शोक प्रकट करते हुए कहा कि, “हमारे समाज की बेटियाँ अनमोल मोती के समान हैं. उनकी सुरक्षा और संरक्षण समुदाय की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. बेटियों के प्रति मुस्लिम समुदाय की सामूहिक अपराधिक उपेक्षा के लिए यह आत्मनिरीक्षण और पश्चाताप करने का समय है.”
गुजरात उच्च न्यायालय के अधिवक्ता इकबाल मसूद खान ने indiatomorrow.net को बताया कि, “मुस्लिम समुदाय की हज़ारों महिलाएं असहाय और अभाव की भावना का सामना कर रही हैं.” उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि, “मोलानाओं द्वारा दिए जाने वाले फतवों का शुक्रिया, जिनका एकमात्र काम इन महिलाओं को सब्र का पालन करने और अपने पतियों की दासियों की तरह सेवा करने की सलाह देना है.”
उन्होंने कहा कि, “मौलाना यह बताते हैं कि, यदि औरतें अपनी आवाज़ उठाएंगी तो अल्लाह उन्हें नरक में डाल देगा, आएशा ने अपने पति के नरक पर अल्लाह के नरक को प्राथमिकता दी. मसूद खान जो अनुभवी पत्रकार भी हैं, ने कहा कि, “मुस्लिम समाज को किसी भी चीज़ से ज़्यादा शिक्षा की ज़रूरत है, शिक्षा ही नकली मौलवियों की गिरफ़्त से निकलने की एकमात्र उम्मीद है.”
मुंबई में मुस्लिमों व अन्य हाशिए पर रहने वाले लोगों के अधिकारों के लिए मुहिम चलाने वाले महिला समूह “बेबाक कलेक्टिव” की हसीना खान के मुताबिक आएशा की आत्महत्या, घरेलू हिंसा और मानसिक तनाव की अन्य ‘दर्दनाक’ घटनाएं महामारी के प्रतिबंधों के दौरान बढ़ी हैं.
कार्यकर्ता और पत्रकार कलीम सिद्दीकी जो विवादास्पद नागरिकता कानून के विरोध के कारण पुलिस द्वारा परेशान किए गए, यह महसूस करते हैं कि भले ही एक पीड़ित महिला ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया हो, लेकिन पुलिस की निष्क्रियता की वजह दहेज़ के मामले सालों तक लम्बे चलते हैं. ससुराल द्वारा प्रताड़ित की जा रही समाज की कई आएशाओं को बचाने के लिए कठोर दहेज विरोधी कानून समय की आवश्यकता है.
सामाजिक कार्यकर्ता देव देसाई ने बताया कि घरेलू हिंसा के कानूनों में कई खामियों के कारण हत्यारे बच जाते हैं. उन्होंने दहेज की मांग करने वालों के लिए कठोर, दंड की भी मांग की.
मुस्लिम समुदाय के एक नेता ज़ाहिद कादरी ने कहा कि, “आएशा की आत्महत्या मुस्लिम समुदाय के चेहरे पर एक थप्पड़ है और माता-पिता व ससुराल वालों के लिए एक आंख खोलने वाली घटना है, जो लड़कियों की भावनाओं और आकांक्षाओं को जानने की परवाह नहीं करते हैं,”