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Wednesday, May 15, 2024
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दिल्ली दंगों का एक साल: मृतक जमालुद्दीन की पत्नी ने कहा, सज़ा कौन देगा? सरकार तो ख़ुद दोषी है

इस सवाल पर कि सरकार से क्या मांग है, मृतक जमालुद्दीन की विधवा नाज़िश, इंडिया टुमारो से कहती हैं, “सरकार से हम क्या मांग करेंगे? दोषी तो सरकार ख़ुद है, यहाँ तीन दिन तक दंगा होता रहा अगर सरकार चाहती तो दंगे रोक सकती थी. मेरे शौहर तो पांचवे दिन मारे गए, अगर सरकार दंगे रोकना चाहती तो पहले दिन ही पुलिस भेज कर मामला शांत करा देती.”

नार्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों के एक साल बाद मृतकों के परिवारों का क्या हाल है? वो किस स्थिति से गुज़र रहे हैं और उनका परिवार दंगों के बारे में क्या सोचता है, यह जानने के लिए इंडिया टुमारो ने दंगे में मारे गए परिवारों से बात कर उनके हालात को जानने और आप तक पहुँचाने का प्रयास किया है. इस कड़ी में दूसरा इंटरव्यू है मृतक जमालुद्दीन के परिवार का.

मसीहुज़्ज़मा अंसारी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | नार्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों के एक साल बाद मृतकों के परिवारों का क्या हाल है? वो किस स्थिति से गुज़र रहे हैं, उनका परिवार दंगों के बारे में क्या सोचता है और सरकार से उनकी क्या मांग है यह जानने के लिए इंडिया टुमारो ने दंगे में मारे गए परिवारों से बात की है.

इस कड़ी में इंडिया टुमारो ने शिव विहार के जमालुद्दीन अहमद के परिवार से बात की है जिन्हें दंगाइयों द्वारा घर जाते वक़्त बुरी तरह मारा गया था और जिनकी 5 दिन बाद इलाज के दौरान मौत हो गई.

38 वर्षीय मृतक जमालुद्दीन बेकरी की फैक्ट्री में काम करते थे. उनके चार बेटे हैं जो दिल्ली में रहते हैं. वह फ़रुखाबाद से शादी से लौटे थे. उन्हें बताया गया था कि माहौल शांत हो चुका है.

मृतक जमालुद्दीन को दंगे के दौरान उनके घर में लूट की ख़बर मिली, उन्हें बताया गया कि घर का ताला तोड़ कर सामान लूट लिया गया है. जब दंगा शांत होने की ख़बर मिली तो वह अपने भाई निज़ामुद्दीन के साथ दिल्ली के शिव विहार पहुंचे जहां उनपर हमला हुआ.

हमले में बुरी तरह ज़ख़्मी होने के कारण घटना के पांच दिन बाद, तीन मार्च को जमालुद्दीन की मौत हो गई.

उनके परिवार ने बताया कि इस मामले में एफआईआर कराया गया है मगर अभी तक कोई कार्रवाई की ख़बर हमें नहीं मिली है.

इंडिया टुमारो को मृतक जमालुद्दीन के भाई निज़ामुद्दीन ने बताया कि, “27 फरवरी 2020 को जब हमें यह बताया गया कि दंगा शांत हो गया है तो हम शिव विहार पहुंचे और अपने घर की तरफ गली में गए जहां पहले से मौजूद दंगाइयों ने हमें पकड़ लिया और बुरी तरह हम दोनों भाइयों को मारने लगे.”

उन्होंने बताया कि, “दंगाइयों ने पहले रोक कर नाम पूछा, आधार कार्ड देखा और मुस्लिम नाम देखकर हमला कर दिया.”

शिव विहार के एक व्यक्ति ने नाम नहीं बताने की शर्त पर इंडिया टुमारो से कहा कि, “बहुत से लोगों को हम जानते हैं जो यहीं रहते हैं और जिन्होंने दंगाइयों का साथ दिया मगर हमें रहना यहीं है इसलिए उनका नाम लेने से डरते हैं.”

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने भी एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार मुसलमानों की दुकानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया जिसमें कुछ स्थानीय युवक भी शामिल थे और कुछ लोग बाहर से लाए गए थे.

मृतक जमालुद्दीन की पत्नी नाज़िश ने इंडिया टुमारो को बताया कि, “हम शादी में अपने घर फ़रुखाबाद गए थे. 24 फ़रवरी को हमें ख़बर मिली कि दिल्ली में दंगा हुआ है. फिर 27 को हमें बताया गया कि माहौल शांत हो गया है और हमारे घर पर तोड़-फोड़ और लूट की गई है. मेरे पति 27 को सुबह फ़रुखाबाद से दिल्ली आए लेकिन शाम को हमें ख़बर मिली को वो जीटीबी हॉस्पिटल में एडमिट हैं.”

उन्होंने बताया कि, “हमारी उनसे बात नहीं हो सकी क्योंकि बह बहुत ज़्यादा ज़ख़्मी थे. हमले के पांच दिन बाद तीन मार्च को उनकी मौत हो गई.”

इस हमले में निज़ामुद्दीन और मृतक जमालुद्दीन बुरी तरह घायल हुए जिनमें जमालुद्दीन ने इलाज के दौरान 3 मार्च को दम तोड़ दिया. ज़िन्दा बच गए निज़ामुद्दीन का दोनों हाथ टूट गया जिसमें ऑपरेशन कर रॉड डाला गया है मगर एक साल बाद भी कमज़ोरी के कारण वह कोई काम नहीं कर सकते.

मृतक जमालुद्दीन के भाई निज़ामुद्दीन ने इंडिया टुमारो को बाताया कि, “परिवार में शादी थी इसलिए 22 फरवरी को पूरा परिवार दिल्ली से फ़रुखाबाद घर गया था. 24 फरवरी को शादी में शामिल होने के बाद हम दोनों भाई दिल्ली लौटे. 26 फरवरी को बताया गया था कि दंगा शांत हो गया है. इसलिए 27 फरवरी को सुबह हम दोनों भाई शिव विहार में पहुंचे.”

निज़ामुद्दीन ने बताया, “जब हम शिव विहार में पहुंचे तो मोड़ पर पुलिस को लोग खड़े थे लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि अन्दर दंगाई मौजूद हैं वरना हम क्यों आते.”

इस सवाल पर कि सरकार से क्या मांग है, मृतक जमालुद्दीन की विधवा नाज़िश इंडिया टुमारो से कहती हैं, “सरकार से हम क्या मांग करेंगे? दोषी तो सरकार ख़ुद है, यहाँ तीन दिन तक दंगा होता रहा अगर सरकार चाहती तो दंगे रोक सकती थी. मेरे शौहर तो पांचवे दिन मारे गए, अगर सरकार दंगे रोकना चाहती तो पहले दिन ही पुलिस भेज कर मामला शांत करा देती.”

मृतक जमालुद्दीन की विधवा नाज़िश ने सरकार पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा, “दोषी को क्या सज़ा मिलेगी? और कौन सज़ा देगा? दोषी तो सरकार में ही बैठे हैं.”

उन्होंने बताया कि, मुआवज़ा तो मिला है मगर अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा और भविष्य को लेकर हम चिंतित हैं.

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग (डीएमसी) ने फरवरी 2020 में हुए दंगों को लेकर एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की थी जिसमें हिंसा को लेकर भाजपा नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाया गया था. साथ ही भाजपा नेताओं पर भाषण के जरिए कथित तौर पर लोगों को ‘उकसाने’ का आरोप भी लगाया गया था.

रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दंगे अपने आप नहीं भड़के बल्कि ये पूरी तरह सुनियोजित और संगठित थे और लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया था.

ज्ञात हो कि नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के विरोध में दिल्ली और देशभर में धरना चल रहा था. सरकार पर भारी दबाव था. अचानक कुछ भाजपा समर्थित नेता प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए उग्र बयान देने लगे. धीरे-धीरे बयान व्यवहार में बदलता गया और नार्थ ईस्ट दिल्ली में हिंसा शुरू हो गई जिसमें दोनों पक्षों के 54 लोगों की जानें गईं.

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