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Saturday, September 21, 2024
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क्या मोदी-सरकार की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना सिर्फ एक ‘विज्ञापन’ नीति है?

इश्फाक-उल-हसन

नई दिल्ली | केंद्र सरकार की प्रमुख योजना ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ महज़ एक हवा हवाई नारा सिद्ध होते दिखाई दे रही है.

वीमेन एम्पावरमेंट कमेटी ने अपनी हालिया रिपोर्ट में इस योजना को लेकर धन के अनुचित उपयोग पर “निराशा” ज़ाहिर की है.

रिपोर्ट के अनुसार इस योजना के लिए दिये गए फंड का इस्तेमाल महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बुनियादी कामों पर न करके इसकी लगभग 80 प्रतिशत धनराशि का उपयोग सिर्फ विज्ञापन के लिए किया गया है.

2014-15 से 2019-20 तक, इस योजना के लिए कुल 848 करोड़ रुपये के बजट का आवंटन किया गया था, जिसमें से 2020-21 के कोविड-पीड़ित वित्तीय वर्ष के दौरान राज्यों को 622.48 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 25.13% धनराशि, यानी 156.46 करोड़ रुपये, राज्यों द्वारा खर्च किए गए हैं, जो योजना के स्तर पर खरे नहीं उतरते हैं, ये निराश करने वाली स्थिति है.”

समिति ने पाया कि 2016-2019 के दौरान जारी किए गए कुल 446.72 करोड़ रुपये में से 78.91% प्रतिशत रुपये मीडिया में महज़ एडवर्टाइज़मेन्ट पर खर्च कर दिये गए.

रिपोर्ट में कहा गया है कि “हालांकि समिति लोगों के बीच बेटी बचाओ, बेटी पढाओ (बीबीबीपी) के संदेश को फैलाने के लिए एक मीडिया अभियान चलाने की ज़रूरत को समझती है, लेकिन साथ ही समिति ने यह भी महसूस किया है कि योजना के उद्देश्यों को संतुलित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.”

पैनल ने सिफारिश की कि सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए नियोजित व्यय आवंटन पर ध्यान देना चाहिए.

रिपोर्ट के अनुसार “पिछले छह वर्षों में केंद्रित जागरूकता अभियानों के माध्यम से बीबीबीपी राजनीतिक नेतृत्व और आम जन में बालिकाओं महत्व समझाने में सफल रही है. अब, योजना के तहत शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित ज़रूरी परिणामों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए पर्याप्त वित्तीय प्रावधान करके अन्य कार्यक्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का समय है.

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के विशेष संदर्भ में शिक्षा के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण शीर्षक से एक रिपोर्ट गुरुवार को लोकसभा में पेश की गई.

बेटी बचाओ योजना जनवरी 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य लिंग निर्धारण करके किये जाने वाले गर्भपात और गिरते बाल लिंग अनुपात पर काम करना था, यह अनुपात 2011 में “प्रति 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियां” था. यह कार्यक्रम पूरे देश में 405 जिलों में लागू किया जा रहा है.

योजना के कार्यान्वयन दिशानिर्देशों के अनुसार, बीबीबीपी के दो प्रमुख घटक हैं. इनमें वकालत और मीडिया अभियान – हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में रेडियो स्पॉट या जिंगल, टेलीविजन प्रचार, आउटडोर और प्रिंट मीडिया, मोबाइल प्रदर्शनी वैन के माध्यम से सामुदायिक जुड़ाव, एसएमएस अभियान, ब्रोशर, आदि- और बाल लिंगानुपात के मामले में खराब प्रदर्शन वाले चयनित महत्वपूर्ण जिलों में बहु-क्षेत्रीय हस्तक्षेप शामिल हैं.

कमेटी ने कहा कि विज्ञापनों पर भारी खर्च फंड का उपयोग स्पष्ट रूप से निर्धारित करने के बावजूद किया गया. फण्ड उपयोग निर्धारण इस प्रकार था :- छह अलग-अलग घटकों के तहत उपयोग के लिए एक जिले के लिए प्रति वर्ष 50 लाख रुपये निर्धारित किए जाते हैं, इसमें से 16% धन अंतर-क्षेत्रीय परामर्श या क्षमता निर्माण के लिए, 50% नवाचार या जागरूकता पैदा करने की गतिविधियों के लिए, 6% निगरानी और मूल्यांकन के लिए, 10% स्वास्थ्य में क्षेत्रीय हस्तक्षेप के लिए, 10% शिक्षा में क्षेत्रीय हस्तक्षेप के लिए है, और फ्लेक्सी फंड के रूप में 8%.

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