–मसीहुज़्ज़मा अंसारी
नई दिल्ली | उत्तर-पूर्वी दिल्ली में साल 2020 में हुए दंगों के दौरान 23 साल के फैज़ान की मौत हो गई थी. अज्ञात पुलिसकर्मियों पर फैज़ान की पिटाई करने और उसे राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगा था जिसकी वीडियो भी वायरल हुई थी.
अब इस मामले में नया मोड़ आया है. 23 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट ने फैज़ान की मौत के मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने यह आदेश मृतक फैज़ान की मां किस्मतुन द्वारा दायर याचिका पर पारित किया है. फैज़ान की मां ने साल 2020 में कोर्ट की निगरानी में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) द्वारा जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की थी.
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआई को सौंपने का आदेश पारित किया. कोर्ट ने कहा कि यह घटना घृणा अपराध की श्रेणी में आती है फिर भी पुलिस जांच “धीमी और अधूरी” रही है.
दिल्ली पुलिस के अनुरोध पर, मामले की कुछ सुनवाई चैंबर में भी हुई. अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, सौतिक बनर्जी और देविका तुलसियानी ने फैज़ान की मां किस्मतुन का प्रतिनिधित्व किया.
दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद के अधिवक्ता अयोध्या प्रसाद, रुचिका प्रसाद, काव्या अग्रवाल और चान्या जेटली ने किया.
फैज़ान पर हमला करने के संदिग्ध लोगों (पुलिस अधिकारियों) को बख्शा गया है : कोर्ट
अपराध पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि फैज़ान पर हमला करने के संदिग्ध लोगों (पुलिस अधिकारियों) को बख्शा गया है. इसके बाद कोर्ट ने इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया.
इस घटना की सोशल मीडिया पर एक वीडियो क्लिप भी वायरल हुई थी जिसमें पुलिसकर्मी मृतक फैज़ान को डंडों से पीटते और उसे राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करते हुए दिखाई दे रहे थे.
इस वीडियो को लेकर पुलिस के बर्बरतापूर्ण रवैये और फैज़ान की मौत के मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे थे. यह मामला पहले दिल्ली पुलिस के हवाले था लेकिन दिल्ली पुलिस की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे थे.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को 23 वर्षीय फैज़ान की मौत के मामले में जांच का आदेश दिया है. दिल्ली दंगों के दौरान फैज़ान को दिल्ली पुलिस द्वारा लाठियों से पीटा गया था और उसे राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया गया था.
वे (पुलिसकर्मी) कट्टर मानसिकता से प्रेरित थे : कोर्ट
याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस भंभानी ने कहा, “सबसे बुरी बात यह है कि संदिग्धों (पुलिस अधिकारियों) को कानून के संरक्षक के रूप में काम करने के लिए सौंपा गया था, और वे शक्ति और अधिकार वाले पद पर थे, लेकिन ऐसा लगता है कि वे कट्टर मानसिकता से प्रेरित थे.”
न्यायालय ने कहा कि दिल्ली पुलिस की जांच से भरोसा नहीं होता है और मामले में अब तक की उसकी कार्रवाई “बहुत कम और बहुत देर से की गई” है.”
कोर्ट ने कहा कि, “वर्तमान मामले में, इस तथ्य के अलावा कि कानून के संरक्षकों पर खुद ही इसका उल्लंघन करने का आरोप है, अपराध के अपराधी खुद उस एजेंसी के सदस्य हैं जो उनकी जांच कर रही है. यह स्थिति भरोसा नहीं जगाती है.”
जस्टिस भंभानी ने कहा, “इसके अलावा, दिल्ली पुलिस द्वारा अब तक की गई जांच में कई विसंगतियां देखी गई हैं, इस न्यायालय की राय में, जांच की विश्वसनीयता की रक्षा करने और पीड़ितों में प्रक्रिया की निष्पक्षता के बारे में विश्वास जगाने के लिए वर्तमान मामले में जांच का स्थानांतरण आवश्यक है.”
कोर्ट ने जांच के स्थानांतरण का आदेश देते हुए कहा कि सीबीआई, मामले में पाए जाने वाले किसी भी अन्य अपराध को एफआईआर में जोड़ सकती है.
कोर्ट की सख्त टिप्पणी :
इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने पुलिस की जांच पर सवाल उठाते हुए चार साल की जांच के बाद भी फैज़ान को पीटने के मामले में शामिल पुलिसकर्मियों की पहचान करने में विफल रहने पर फटकार लगाई.
जस्टिस भंभानी ने कहा, “साढ़े चार साल से अधिक समय बीत चुका है. अब तक की जांच के दौरान दुर्व्यवहार और हमले में शामिल एक भी पुलिसकर्मी की पहचान नहीं हो पाई है.”
उन्होंने आगे कहा, “यह मामला मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन के आरोपों को पेश करता है क्योंकि पुलिसकर्मियों की गैरकानूनी कार्रवाई, जिनकी अभी तक पहचान नहीं की गई है, धार्मिक कट्टरता से प्रेरित थी और इसलिए यह हेट क्राइम के बराबर होगी.”
हाई कोर्ट ने कहा, “मौजूदा मामले में जांच स्पष्ट रूप से धीमी, अधूरी रही है और उन लोगों को सुविधाजनक रूप से छोड़ दिया गया है, जिनपर याचिकाकर्ता के बेटे पर क्रूरतापूर्वक हमले में शामिल होने का संदेह है.”
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में संदिग्ध आरोपी पुलिसकर्मियों पर कहा, “इससे भी बुरी बात यह है कि संदिग्धों को कानून के संरक्षक के रूप में कार्य करने का जिम्मा सौंपा गया था. वे शक्तिशाली और अधिकार प्राप्त पदों पर थे, लेकिन ऐसा लगता है कि वे कट्टरपंथी मानसिकता से प्रेरित थे.”
मृतक फैज़ान की मां ने दायर की थी याचिका :
कोर्ट ने यह आदेश मृतक फैज़ान की मां किस्मतुन द्वारा दायर याचिका पर पारित किया है. फैज़ान की मां किस्मतुन ने कोर्ट की निगरानी में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) द्वारा जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की थी.
यह याचिका फैज़ान की मां किस्मतुन द्वारा साल 2020 में दिल्ली दंगों के बाद दायर की गई थी. हालांकि उस याचिका को अब 23 जुलाई 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वीकार किया.
रिपोर्ट के अनुसार अपनी याचिका में फैज़ान की 65 वर्षीय मां किस्मतुन ने आरोप लगाया कि कर्दमपुरी में पुलिसकर्मियों ने फैज़ान पर बेरहमी से हमला किया और फिर उसे ज्योति नगर पुलिस स्टेशन में अवैध हिरासत में ले लिया, जहां उसे कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई, जिससे अंततः उसकी मौत हो गई.
फैज़ान की मां ने आरोप लगाया था कि रिहा करने से पहले उनके बेटे को पुलिस हिरासत में बुरी तरह यातना दी गई. ज्योति नगर पुलिस स्टेशन से रिहाई के 24 घंटे के भीतर 26 फरवरी 2020 को गुरु तेग बहादुर अस्पताल (जीटीबी) अस्पताल में फैज़ान की मौत हो गई थी.
रिपोर्ट के अनुसार किस्मतुन का यह भी आरोप है कि जब वह थाने गईं, तो पुलिस ने उन्हें फैज़ान से नहीं मिलने दिया. उनका यह भी कहना है कि फैजान को कुछ देर के लिए अस्पताल ले जाने के बाद उसे वापस थाने ले जाया गया था.
मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि फैज़ान को जीटीबी अस्पताल से ज्योति नगर पुलिस थाने में लाए जाने के बाद वहां क्या हुआ, इस संबंध में अभी तक कोई जांच नहीं की गई है.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की जांच एक दिखावा है, और यह जांच इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए की गई है.
दिल्ली पुलिस की जांच पर उठे सवाल :
किस्मतुन की वकील वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट में पुलिस पर आरोप लगाया कि उसने फैज़ान को गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखा और उसे आवश्यक स्वास्थ्य सुविधा नहीं दी गई.
वकील वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि फैज़ान की मौत के मामले में दिल्ली पुलिस की जांच केवल एक दिशा में आगे बढ़ी है और ज्योति नगर के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) की भूमिका की जांच करने के लिए कुछ नहीं किया है, जहां फैज़ान पर हमला किया गया था.
वकील ने कहा कि किरी नगर पुलिस स्टेशन के एसएचओ और अधिकारी रिकॉर्ड में हेराफेरी कर रहे हैं और फिर भी, वे पुलिसकर्मी जांच के दायरे से बाहर हैं. मामले की जांच हमेशा के लिए चल सकती है और जब तक अदालत की निगरानी में जांच नहीं की जाती, तब तक यह कभी खत्म नहीं होगी.
हालांकि, दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट को बताया कि वह घटना की जांच कर रही है, लेकिन जांच में समय लग रहा है क्योंकि कुछ वीडियो और सबूतों की फोरेंसिक जांच की जानी है.
दिल्ली दंगा :
ज्ञात हो कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद दक्षिणपंथी संघठनों ने लगातार प्रदर्शनों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था. प्रदर्शनों को निशाना बनाए जाने के बीच फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा शुरू हुई थी. हिंसा में 53 लोग मारे गए थे.
दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन की रिपोर्ट के मुताबित यह हिंसा सुनियोजित थी जिसमें मुसलमानों की जान और उनकी संपत्तियों को निशाना बनाया गया था और इस हिंसा में बड़े पैमाने पर मुसलमानों को नुकसान हुआ था.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने अगस्त 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों पर अपनी रिपोर्ट में फैजान की मौत का जिक्र करते हुए कहा था कि फैज़ान को कथित तौर पर पुलिस ने बिना किसी आरोप के करीब 36 घंटे तक हिरासत में रखा और उसकी हालत बिगड़ने पर उसकी मां को सौंप दिया.