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Tuesday, May 14, 2024
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विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर भारतीय अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकार पर वेबिनार

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के अवसर पर कई शैक्षिक संगठनों ने संयुक्त रूप से “भारतीय संविधान और अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकार: वादे और संभावनाएं” शीर्षक से एक वेबिनार आयोजित किया.

कार्यक्रम का आयोजन मरकज़ी तालीमी बोर्ड, ऑल इंडिया एजुकेशन मूवमेंट, इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी स्टडीज एंड एडवोकेसी (IPSA), होलिस्टिक एजुकेशन बोर्ड और एसोसिएशन ऑफ माइनॉरिटी स्टडीज एंड फेडरेशन ऑफ मुस्लिम एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस (FMEII) द्वारा किया गया था.

कार्यक्रम का संचालन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी स्टडीज एंड एडवोकेसी के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ जावेद आलम खान ने किया. इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी स्टडीज एंड एडवोकेसी के अध्यक्ष डॉ अब्दुर रशीद अगवान ने अपना स्वागत भाषण विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस की उत्पत्ति के संदर्भ में दिया.

डॉ जॉन दयाल ने अल्पसंख्यक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और शैक्षिक अधिकारों के संदर्भ में हो रहे संविधान के उल्लंघन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को चुनौतियां और अल्पसंख्यकों और हाशिये पर रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए बने प्रमुख आयोगों का का ख़तम किया जाना चिंता का विषय है।

जॉन दयाल ने कहा कि शिक्षा के साम्प्रदायिकीकरण का भी विरोध करना होगा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह चिंता का विषय है.

सुप्रीम कोर्ट के वकील एमआर शमशाद ने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के बारे में बात की और इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि भारत का संविधान जिसमें अनुच्छेद 19, 25, 29 और 30 शामिल हैं एक राजनीतिक दस्तावेज है, जो अल्पसंख्यकों को कई अधिकार देता है, जिन्हें कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को ध्यान में रखना चाहिए. संवैधानिक मूल्यों और अनुच्छेदों को लागू करने और उनकी व्याख्या करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि, भारतीय समाज और भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र में एकरूपता थोपने का प्रयास क्या जा रहा है, मानो एकरूपता भारतीय संविधान का मूल प्रावधान है, यह भी चिंता का विषय है.

उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का हवाला दिया जिसने बार-बार धार्मिक प्रथाओं और अधिकारों के सम्मान और संरक्षण के लिए तर्क दिया गया है, लेकिन कई निर्णयों में अनुच्छेद 19 और 25 को जोड़े बिना अनुच्छेद 30 का विशेष रूप से व्यवहार किया है.

सेंटर फॉर डेवलपमेंट पॉलिसी एंड प्रैक्टिस के संस्थापक अमीरुल्ला खान ने संविधान के मूल सार और सिद्धांतों जो न्याय और समावेश पर आधारित विशेष रूप से अल्पसंख्यकों और कमजोर आबादी के लिए है उसपर सत्तारूढ़ व्यवस्था के सीधे हमले पर प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा कि, अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए संविधान की प्रगतिशील दृष्टि पर प्रकाश डाला जाना चाहिए. अल्पसंख्यकों के अधिकारों में लगातार हो रही गिरावट खुद भारत की पहचान का सवाल है. भारत की आर्थिक चिंताओं को भी दरकिनार किया जा रहा है, और गरीबी के स्तर और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच के संबंध को भी पूरी तरह से संबोधित नहीं किया जा रहा है.

अशोक भारती, अध्यक्ष, NACDAOR (दलित और आदिवासी संगठनों का राष्ट्रीय परिसंघ) ने विभाजनकारी एजेंडे के आधार पर संघर्ष के लिए प्रेरित होने के बजाय अलग-अलग वंचित समुदायों को एक साथ काम करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.

उन्होंने अल्पसंख्यक आरक्षण के बारे में चर्चा और अल्पसंख्यक आरक्षण का दावा करते समय सटीक डेटा पर भरोसा करने की आवश्यकता के बारे में बात की.

हैदराबाद की एक स्वतंत्र शोधकर्ता डॉ ए सुनीता ने स्वतंत्र भारत के बाद के अल्पसंख्यकों के इतिहास के हवाले से बात की और तर्क दिया कि किस तरह उच्च शिक्षण संस्थान, विशेष रूप से सार्वजनिक विश्वविद्यालय खुले तौर से और महत्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्रों के रूप में कार्य करने के लिए बने थे.

हालांकि, एमएएनएफ को हटाने और अन्य छात्रवृत्तियों पर प्रतिबंध सहित हाल के घटनाक्रमों के आलोक में ऐसा प्रतीत होता है कि इन क्षेत्रों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है. इसके अतिरिक्त, डॉ सुनीता ने अल्पसंख्यकों के भीतर अल्पसंख्यकों, जैसे मुस्लिम महिलाओं के मुद्दों पर प्रकाश डाला.

भारतीय दलित अध्ययन संस्थान के शोधकर्ता डॉ खालिद खान, अखिल भारतीय शिक्षा आंदोलन के एडवोकेट असलम और गिरी विकास अध्ययन संस्थान के डॉ मंजूर अली ने भी वेबिनार को संबोधित किया.

मरकज़ी तलेमी बोर्ड के निदेशक सैयद तनवीर अहमद ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, वेबिनार के उद्देश्यों को बताते हुए उत्पीड़ित वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने की आवश्यकता जताई.

उन्होंने कहा कि, अल्पसंख्यकों की ज़रूरतों और उनके अधिकारों के लिए एक दिन समर्पित करना पर्याप्त नहीं है बल्कि एक सुसंगत और सतत प्रक्रिया होनी चाहिए. उन्होंने मदरसों, स्कूलों और उच्च संस्थानों सहित अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित संस्थानों, अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति और फेलोशिप के प्रति मौजूदा व्यवस्था के दृष्टिकोण को रखा.

उन्होंने अल्पसंख्यकों को अपने अधिकारों और अपनी जरूरतों के बारे में जागरूक होने और अधिकारों के हो रहे उल्लंघनों को समझने में सक्षम होने की आवश्यकता पर बल दिया.

सैयद तनवीर ने चिंता व्यक्त की, कि अधिकारों के इस उल्लंघन के बारे में ज्ञान, स्पष्टता और सुलभ डेटा और सूचना की कमी है. कार्यक्रम का समापन करते हुए, उन्होंने NEP-2020 में अल्पसंख्यक अधिकारों, संस्कृति के विचारों के समरूपीकरण के खतरों और सभी संगठनों को एक साथ आने और समाधान खोजने की दिशा में काम करने की आवश्यकता को भी दोहराया.

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