इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया है कि “किसी अपराध में कथित संलिप्तता संपत्ति को ध्वस्त करने को उचित नहीं ठहराती” और इस बात पर ज़ोर दिया है कि “ऐसे विध्वंस की धमकियाँ ऐसे देश में अकल्पनीय हैं जहाँ कानून का शासन है.”
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और एस.वी.एन. भट्टी शामिल थे, ने गुजरात के रहने वाले एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बयान दिया।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि नगर निगम के अधिकारियों ने 1 सितंबर, 2024 को परिवार के एक सदस्य के ख़िलाफ एफआईआर के बाद उसके परिवार के घर को ध्वस्त करने की धमकी दी थी.
अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी किया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाए. याचिकाकर्ता जावेद अली महबूब मियां सैयद का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता इकबाल सैयद ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता को खेड़ा जिले के काठलाल गांव के राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार संबंधित भूमि का सह-स्वामी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
सैयद ने बताया कि 21 अगस्त 2004 को काठलाल ग्राम पंचायत ने इस ज़मीन पर आवासीय मकान बनाने की अनुमति दी थी. याचिकाकर्ता का परिवार करीब दो दशक से यहां रह रहा है. इसके बावजूद 1 सितंबर 2024 को परिवार के एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद नगर निगम अधिकारियों ने कथित तौर पर याचिकाकर्ता के घर को ध्वस्त करने की धमकी दी.
सैयद ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने 6 सितंबर 2024 को नाडियाड, खेड़ा जिले के डिप्टी एसपी के समक्ष भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 333 के तहत शिकायत दर्ज कराई थी.
शिकायत में याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया कि आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए, लेकिन जोर देकर कहा कि नगर पालिका या उसके सहयोगियों को याचिकाकर्ता के कानूनी रूप से निर्मित और कब्जे वाले आवास को धमकाने या ध्वस्त करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.