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Sunday, September 8, 2024
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जमाते इस्लामी ने की केंद्रीय बजट की आलोचना; गरीबों, उपेक्षितों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बताया निराशाजनक

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने केंद्रीय बजट की आलोचना करते हुए इसे भारत के गरीबों, उपेक्षितों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए निराशाजनक बताया है.

मीडिया को जारी एक बयान में उन्होंने कहा, “जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द एक बार फिर यह कहना चाहती है कि केंद्रीय बजट एक महत्वपूर्ण कदम है जो देश की आर्थिक नीतियों को संचालित करता है और इसका उपयोग व्यापक आर्थिक चुनौतियों को स्थिर करने के साथ-साथ आम आदमी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए.”

मीडिया को दिए एक बयान में, प्रो सलीम ने बजट के कुछ सकारात्मक पहलुओं को स्वीकार किया, उन्होंने कहा कि इन उपायों का उद्देश्य कीमतों को स्थिर करना और विभिन्न क्षेत्रों में सीमा शुल्क को कम या समाप्त करके भारतीय निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना है.

प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा, “इन सकारात्मक पहलुओं के बावजूद, हमें लगता है कि बजट 2024-25 भारत के गरीबों, उपेक्षितों, अनुसूचित जातियो, जनजातियों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को कोई राहत नहीं देता है. ऐसा लगता है कि बजट का उद्देश्य समाज के केवल एक वर्ग को लाभ पहुंचाना है.”

उन्होंने कहा, “इस वर्ष स्वास्थ्य आवंटन में वृद्धि हुई है, लेकिन यह अभी भी सकल घरेलू उत्पाद का 1.88% है. शिक्षा क्षेत्र में आवंटन वृद्धि के बावजूद यह सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 3.07% है. बजट, सरकार के “सबका विकास” नारे के प्रति असंवेदनशील रहा है क्योंकि अल्पसंख्यकों के कई योजनाओं के बजटीय आवंटन में भारी कटौती की गई है.”

प्रो. सलीम ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को कुल बजट का मात्र 0.06% ही आवंटित किया गया है. हम उम्मीद करते हैं कि बजट का कम से कम 1% अल्पसंख्यकों के कल्याण पर खर्च किया जाएगा.”

उन्होंने कहा, “हमारा मानना है कि यह बजट संकुचित प्रकृति का है. हमें विस्तारवादी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. राजस्व में पर्याप्त वृद्धि हो रही है फिर भी व्यय में वृद्धि न के बराबर है, यह संकुचित दृष्टिकोण बेरोज़गारी, मुद्रास्फीति और असमानता की स्थिति को और बढ़ाएगा. सरकारी व्यय में कटौती की गई है जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक क्षेत्रों के आवंटन में कमी आई है.”

मीडिया को जारी बयान में उन्होंने कहा, “जब बेरोज़गारी ऐतिहासिक उच्च स्तर पर है, तब मनरेगा योजना के लिए आवंटन में वृद्धि नहीं की गई है. बजट का एक और चिंताजनक पहलू यह है कि विभिन्न सब्सिडी में कटौती की गई है. खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडियों में कटौती की गई है. यह अतार्किक एवं निंदनीय है,”

उन्होंने कहा, “असमानता के भयावह स्तर के बावजूद, बजट अमीरों का समर्थन करने वाला और बड़े कॉरपोरेटों की ओर झुका हुआ है. कॉर्पोरेट कर राजस्व (17%), आयकर राजस्व (19%) से कम है. अप्रत्यक्ष कर अभी भी बहुत अधिक है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग पर बोझ पड़ रहा है. नई रोज़गार प्रोत्साहन योजना के तहत रोज़गार सृजन के नाम पर कॉरपोरेट्स को भारी सब्सिडी दी जा रही है.”

जमाअत के उपाध्यक्ष ने कहा, “हमारा मानना है कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन जुटाने हेतु भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के उपायों की आवश्यकता है, साथ ही धनवानों पर प्रत्यक्ष करों में वृद्धि तथा गरीबों पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करने के लिए अप्रत्यक्ष करों में कमी की आवश्यकता है।”

अपने बयान में जमात ने कहा कि सरकार को दलितों, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के कल्याण के लिए प्रतीकात्मक संकेतों के बजाय ठोस योजनाओं और पर्याप्त बजट के साथ विशेष उपायों और नीतियों को लागू करना चाहिए. इसके अलावा, हमारे बजट का 19% हिस्सा ब्याज भुगतान पर खर्च हो रहा है. हमारे बजट का 27% हिस्सा उधार और अन्य देनदारियों पर खर्च होता है.

उन्होंने कहा, “हमें ऋण के प्रति अपने दृष्टिकोण को कम करने का प्रयास करना चाहिए तथा ब्याज मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए. ऋण पर ब्याज की अत्यधिक दरों पर सख्ती से अंकुश लगाया जाना चाहिए. हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह बड़े पैमाने पर ब्याज मुक्त माइक्रोफाइनेंस और ब्याज मुक्त बैंकिंग को बढ़ावा दे. इससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, रोज़गार का सृजन होगा और सामाजिक अशांति कम होगी.”

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