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Sunday, September 8, 2024
Home मानवाधिकार पुरोला "लव जिहाद" मामला अदालत में झूठा साबित हुआ

पुरोला “लव जिहाद” मामला अदालत में झूठा साबित हुआ

एस.एम.ए. काज़मी

देहरादून | उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में पुरोला ‘लव जिहाद’ मामले का इस्तेमाल 2023 की गर्मियों में सत्तारूढ़ भाजपा और आरएसएस द्वारा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में ‘इस्लामोफोबिया’ के लिए किया गया था और इसके बाद शहर में रह रही छोटी सी मुस्लिम आबादी को भगा दिया गया था.

अब इस मामले में हिंदू समूहों की धमकियां अदालत में विफल हो गई हैं.

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियाँ बटोरने वाली इस घटना के एक साल बाद, उत्तरकाशी की स्थानीय सेशन कोर्ट ने एक नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण के आरोपी दो लोगों, एक हिंदू और एक मुस्लिम को आरोपों से बरी कर दिया है.

दो व्यक्तियों – 22 वर्षीय उबैद खान और उसके 24 वर्षीय दोस्त जितेंद्र सैनी पर “लव जिहाद” के तहत एक नाबालिग हिंदू लड़की से जबरन इस्लाम धर्म कबूलवाने के इरादे से उसका अपहरण करने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था और फिर इस मामले में दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था. दोनों व्यक्तियों पर लड़की को भगाने के इरादे से उससे बातचीत कर फुसलाने का आरोप था.

उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत कथित अपहरण और नाबालिग की खरीद-फरोख्त और पोक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था. “लव जिहाद” मुस्लिम समुदाय से नफरत के प्रोपेगेंडा के तहत आरएसएस और भाजपा द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है, जिसमें मुस्लिम पुरुषों पर हिंदू महिलाओं को प्यार के जाल में फंसाने और अंततः उनसे इस्लाम धर्म कुबूल करवाने का आरोप लगाया जाता है.

इन घटनाओं के माध्यम से पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा सुनियोजित घृणा अभियान चलाया गया था. भाजपा को पूर्ण समर्थन देने वाले राज्य के स्थानीय व्यापारी संगठनों के आह्वान पर आयोजित विशाल जुलूसों के दौरान मुसलमानो की दुकानों और घरों पर हमला किया गया.

विश्व हिंदू परिषद और देवभूमि रक्षा अभियान नामक दक्षिणपंथी संगठनों ने मुसलमानों पर ‘लव जिहाद’ में शामिल होने का आरोप लगाते हुए 15 जून, 2023 तक पुरोला छोड़ने की धमकियाँ और चेतावनी दी थी. पुरोला के 40 मुस्लिम परिवारों में से 14 ने तब शहर छोड़ दिया जब उनकी दुकानों पर पोस्टर चिपकाए गए और उनमें से कुछ पर काले क्रॉस का निशान लगाया गया, जो नाज़ी युग के जर्मनी की याद दिलाता है.

15 जून को दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों ने पूरे पहाड़ी इलाकों से मुसलमानों को बाहर करने के लिए एक ‘महापंचायत’ बुलाई थी. नैनीताल उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद, ‘महापंचायत’ रद्द कर दी गई लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान बदस्तूर जारी रहा.

इस घटना के बाद एक साल से भी कम समय में, उत्तरकाशी सेशन कोर्ट ने 10 मई, 2024 को फैसला सुनाया कि दोनों युवाओं के खिलाफ आरोप झूठे थे. दिलचस्प बात यह है कि मुकदमे के दौरान, कथित तौर पर अपहरण की जा रही 14 वर्षीय लड़की ने अदालत को बताया कि पुलिस ने उसे उबैद खान और जितेंद्र सैनी पर आरोप लगाने के लिए कहा था.

अदालत ने मामले के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य आशीष चुनार के बयान में भी विसंगतियां पाईं. जून 2023 से जेल में बंद दोनों आरोपियों को मामले में जुलाई 2023 में ज़मानत दे दी गई थी.

उत्तरकाशी, सेशन जज गुरुबख्श सिंह ने अगस्त 2023 से मई 2024 के बीच मामले की 19 सुनवाई के दौरान दोनों के खिलाफ अपहरण, नाबालिग की खरीद-फरोख्त और यौन उत्पीड़न के आरोपों को झूठा पाया.

उस दिन घटना के मुख्य प्रत्यक्षदर्शी, पुरोला में कंप्यूटर की दुकान चलाने वाले आरएसएस सदस्य आशीष चुनार ने नाबालिग लड़की के चाचा को फोन करके बताया था कि शहर के पेट्रोल पंप के पास दो लोग उसकी भतीजी को टैंपो में चढ़ा कर अपने साथ ले जाने की कोशिश कर रहे थे.

पुरोला पुलिस स्टेशन में लड़की के चाचा द्वारा दर्ज करवाई गई पहली सूचना रिपोर्ट के अनुसार, लोग उसे 18 किमी दूर एक शहर नौगांव ले जाने की कोशिश कर रहे थे. शिकायत के अनुसार, चुनार के हस्तक्षेप के बाद वे दोनों भाग गए. इसके बाद आरएसएस कार्यकर्ता चुनार लड़की को अपनी दुकान पर ले आया.

शिकायत में नाबालिग लड़की के चाचा ने बताया कि उनकी भतीजी ने उनसे क्या कहा था. शिकायत के अनुसार खान और सैनी उसे धोखे से पेट्रोल पंप पर ले आए थे. खान ने अपनी पहचान अंकित के रूप में बताई थी. शिकायत में कहा गया है कि पेट्रोल पंप पर, उन्होंने एक टेम्पो चालक को बुलाया और लड़की को शादी का लालच देकर अपने साथ ले जाने की कोशिश की, तभी चुनार और एक अन्य व्यक्ति ने उन्हे देख लिया और लड़की को बचा लिया.

मुकदमे के दौरान, जब प्रतिवादी के अधिवक्ताओं द्वारा नाबालिग के चाचा से जिरह की गई, तो उन्होंने अदालत को बताया कि उनकी भतीजी ने “उन्हें घटना के बारे में कुछ नहीं बताया” और उन्होंने शिकायत “आशीष चुनार के निर्देश पर” लिखी थी. अदालत के फैसले में उन्हें यह कहते हुए पाया गया है, “मैंने वही लिखा जो आशीष चुनार ने मुझसे कहा था.”

जिरह के दौरान, लड़की की चाची ने अदालत को यह भी बताया कि उसकी भतीजी ने “उसे घटना के बारे में नहीं बताया और आरोपी का नाम भी नहीं बताया”. फैसले में कहा गया, “लड़की ने सिर्फ इतना कहा था कि वह कुछ कपड़े सिलवाने के लिए घर से निकली थी और आशीष चुनार उसे अपनी दुकान पर ले गया.” मुकदमे के दौरान खान और सैनी को चुनार के सामने पेश किया गया.

चुनार ने अदालत को बताया कि 26 मई को उसने दो लोगों को नाबालिग से बात करते देखा था लेकिन खान और सैनी वे दो व्यक्ति नहीं थे. चुनार ने इस आरोप से इनकार किया कि नाबालिग के चाचा ने उनके निर्देश पर पुलिस शिकायत लिखी थी.

महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत में नाबालिग लड़की के बयान ने 27 मई, 2023 को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत एक सिविल जज को दिए गए उसके बयान का खंडन किया. अपने उस बयान में, लड़की ने कहा था कि जब उसने दोनों युवकों से दर्जी की दुकान का रास्ता पूछा, तो खान और सैनी उसे पेट्रोल स्टेशन पर ले गए और एक टेम्पो बुलाया.

लड़की के अनुसार “उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे टेम्पो के अंदर बैठाने की कोशिश की,” “मैंने कहा मेरा हाथ छोड़ो.” तभी मेरे रिश्तेदार आशीष चुनार आ गये. उसे देखते ही दोनों व्यक्ति भाग गये. उन्होंने (चुनार) मुझे अपनी दुकान में बैठाया और मेरे परिवार को बुलाया.”

अपनी जिरह के दौरान, नाबालिग ने अदालत को बताया कि पुलिस ने उसे खान और सैनी को फंसाने वाला बयान देने के लिए कहा था. लड़की ने सेशन कोर्ट जज के सामने कहा “बयान देने से पहले, पुलिस ने मुझे समझाया था कि मुझे क्या कहना था और यही मैंने मैडम (सिविल जज])को बताया था” , “मैंने बयान नहीं पढ़ा, केवल उस पर हस्ताक्षर किए. सेशन कोर्ट में उसने उस दिन जो कुछ हुआ था, उसे बताया.

फैसले में कहा गया, ”उसने ज्यादातर यही कहा कि उसने आरोपी से एक दर्जी की दुकान के बारे में पूछा.” “वह आरोपी के साथ दर्जी की दुकान पर गई. उसने यह भी कहा कि आरोपी उसे कहीं नहीं ले जा रहे थे. जिरह करने पर उसने कहा कि आरोपी ने उसका पीछा नहीं किया था.

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