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Saturday, September 7, 2024
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SCO शिखर सम्मेलन में भाग न लेने के पीएम मोदी के फैसले से देश की विदेश नीति को होगा दीर्घकालिक नुकसान

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | कज़ाकिस्तान में अगले महीने होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शामिल ना होने का फैसला किया है. मोदी के इस फैसले से लगता है कि उनके समर्थकों द्वारा पिछले दस वर्षों में बनाई गई एक प्रभावशाली विश्व नेता की उनकी छवि टूट गई है.

इस महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटना के सम्बन्ध में भारत की विदेश नीति को समझने में मोदी की असमर्थता की वजह से कूटनीतिक नाकामी में और वृद्धि हुई है.

मोदी ने 3 और 4 जुलाई को होने वाले शिखर सम्मेलन के लिए कज़ाकिस्तान के अस्ताना की यात्रा नहीं करने का फैसला किया है, हालांकि उन्होंने पहले ही इस कार्यक्रम में उपस्थित होने की पुष्टि की थी और एक अग्रिम सुरक्षा दल ने वहां अपना खोजी सर्वेक्षण भी किया था. हालांकि अब आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री एस जयशंकर के उनके स्थान पर कार्यक्रम में शामिल होने की संभावना है.

एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग न लेने को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय की कूटनीतिक चूक मोदी के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही सामने आ गई है. इस बात ने मोदी को लेकर बनाई गई एक प्रभावशाली वैश्विक राजनेता की छवि के भ्रम को उजागर कर दिया है.

उनके अंध समर्थक दावा करते हैं कि उन्होंने भारतीय छात्रों को निकालने के लिए यूक्रेन में युद्ध को कुछ समय के लिए रोकने के लिए रूस पर दबाव डाला था और रमज़ान के दौरान गाज़ा पर इज़राइली हमलों को रोकने के लिए भी इज़राइल से मोदी ने ही कहा था.

मध्य एशियाई देशों के साथ संवाद स्थापित करने में भारतीय नेतृत्व की विफलता और एससीओ में भाग ना लेकर एससीओ के माध्यम से मिलने वाली क्षेत्रीय सुरक्षा नीतियों में भागीदारी को कम कर देना, इन सब का देश की विदेश नीति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, जोकि भारतीय जनता पार्टी के शासन के पिछले 10 वर्षों के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल की ओर झुक चुकी है.

जी-7 शिखर सम्मेलन जिसका भारत सदस्य नहीं है, इसमें भाग लेने के लिए पिछले सप्ताह मोदी द्वारा की गई इटली की यात्रा पहले ही असफल साबित हो चुकी है.

कजाख राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायेव की मेज़बानी में आयोजित इस शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, मध्य एशियाई नेता और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शहबाज़ शरीफ के शामिल होने की उम्मीद है.

अस्ताना में एससीओ प्रमुखों की परिषद में शामिल न होने के मोदी के फैसले का असर इस साल के अंत में पाकिस्तान की मेज़बानी में इस्लामाबाद में होने वाले एससीओ शासनाध्यक्षों के सम्मेलन में भारत की भागीदारी पर भी पड़ सकता है.

आधिकारिक सूत्रों ने मोदी के इस फैसले के लिए संसद सत्र को ज़िम्मेदार बताया है, जो 24 जून को शुरू हुआ और 3 जुलाई तक चलेगा, लेकिन असली वजह कुछ और है. स्पीकर के चुनाव और दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण के अलावा, 2 से 4 जुलाई के बीच लोकसभा और राज्यसभा में राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का जवाब प्रधानमन्त्री द्वारा दिए जाने की उम्मीद भी जताई जा रही है.

एससीओ, मूल रूप से 2001 में रूस और चीन द्वारा संचालित एक यूरेशियन सुरक्षा और आर्थिक समूह है, जिसमें कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताज़िकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हैं. इस वर्ष ईरान और बेलारूस को भी शामिल किया जाएगा.

अन्य अंतरराष्ट्रीय नेताओं की उपस्थिति के बावजूद, एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी की अनुपस्थिति से इस समूह के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर सवाल उठने की पूरी पूरी संभावना है, जिसमें वह सात साल पहले पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ था.

मोदी ने 2017 में एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कज़ाकिस्तान का दौरा किया था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह माहौल भारत के लिए और अधिक परेशानी भरा हो गया है.

पाकिस्तान जिसे 2017 में भी शामिल किया गया था, उसके साथ भारत का तनाव अक्सर सम्मेलन में मुख्य परेशानी का कारण रहा है, दोनों देशों के नेताओं ने आतंकवाद के मुद्दे पर एक-दूसरे पर निशाना साधते रहे हैं.

2020-21 में कोविड 19 महामारी के दौरान, एससीओ शिखर सम्मेलन वर्चुअल स्पेस में आयोजित किया गया था. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिरोध और 2020 की घातक गलवान झड़प और संबंधों में दरार के बाद से, मोदी ने कहीं भी द्विपक्षीय बैठक के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात नहीं की है.

हालांकि बैठक से इतर 2022 में इंडोनेशिया में जी-20 और 2023 में दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मोदी ने जिनपिंग के साथ थोड़ी औपचारिक बातचीत की थी.

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने भी 2022 के बाद से मास्को के साथ बातचीत को और अधिक कठिन बना दिया है. हालांकि मोदी ने उस वर्ष उज्बेकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी, लेकिन बातचीत पर संघर्ष का प्रभाव पड़ा.

भारत और रूस ने तब से वार्षिक पुतिन-मोदी शिखर सम्मेलन आयोजित नहीं किया है, 2023 में जब भारत ने पहली बार एससीओ की मेज़बानी की थी लेकिन शेड्यूलिंग कठिनाइयों के कारण सरकार द्वारा शिखर सम्मेलन वर्चुअल रूप से आयोजित करने का फ़ैसला करने के कारण मोदी पुतिन की एक संभावित बैठक टल गई थी.

इस महीने की शुरुआत में, पुतिन के विदेश नीति सहयोगी और वरिष्ठ राजनयिक यूरी उशाकोव ने कहा था कि रूसी राष्ट्रपति सम्मेलन में मोदी से मिलने के लिए उत्सुक थे, क्योंकि भारत में अभी अभी चुनाव समाप्त हुए हैं.

एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी की अनुपस्थिति को पिछले सप्ताह इटली में जी-7 शिखर सम्मेलन में उनकी उपस्थिति के ठीक विपरीत देखा जाएगा, क्योंकि जी-7 में तो भारत सदस्य भी नहीं है, लेकिन नौ अन्य देशों के साथ “आउटरीच” के लिए भारत को आमंत्रित किया गया था.

सभी की निगाहें इस पर होंगी कि क्या मोदी इस साल अक्टूबर के अंत में राष्ट्रपति पुतिन की मेज़बानी में आयोजित कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे! भारत इस समूह का संस्थापक सदस्य है, वह इस वर्ष पांच नए सदस्यों, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान, मिस्र और इथियोपिया का स्वागत करेगा.

एससीओ अपने सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद- निरोध और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है. यह संगठन यूरेशियन भूभाग के 60% से अधिक, विश्व की 40% आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 30% को कवर करता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक, एससीओ शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान के पीएम शहबाज़ शरीफ के साथ जुड़ने में मोदी की अनिच्छा उनके समर्थकों को खुश कर सकती है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समूह में भारत की अनुपस्थिति दीर्घकालिक रूप से राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने वाली है.

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