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Saturday, September 7, 2024
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वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक में बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका से भी पीछे है भारत

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) हर साल पूरी दुनिया में लैंगिक असमानता का मूल्यांकन कर अपनी रिर्पोट जारी करता है, इसमें हर देश को लैंगिक समानता और न्याय के आधार पर रैंकिंग दी जाती है.

वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने बीते मंगलवार (11 जून) को ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024’ जारी की है. इस रिपोर्ट में भारत 146 देशों की सूची में 129वें स्थान पर है.

भारत पिछले साल दो पायदान ऊपर था. दूसरी तरफ आइसलैंड जो एक दशक तक इस सूचकांक में पहले स्थान पर रहा है वो इस साल भी अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखने में कामयाब रहा है.

वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024 जारी करते हुए लिखा कि, “यह रिपोर्ट अब लाइव है. यह वैश्विक स्तर पर जेंडर गैप में मामूली सुधार दर्शाता है, प्रगति की वर्तमान दर पर समानता अभी भी पांच पीढ़ियों बाद हासिल की जा सकेगी. हालाँकि, एक ऐतिहासिक चुनावी वर्ष में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में सुधार का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है.”

इस सूची में भारत अपने पड़ोसी देशों भारत बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान और नेपाल से भी निचले पायदान पर है. सूची में बांग्लादेश
99वीं, नेपाल 111वें, श्रीलंका 125वें और भूटान 124वे स्थान पर है. भारत की रैंकिंग सऊदी अरब से भी नीचे है.

वैश्विक रैंकिंग में आइसलैंड शीर्ष पर है इसके बाद फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूजीलैंड और स्वीडन हैं. यूनाइटेड किंगडम 14वें स्थान पर है, जबकि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका 43वें स्थान पर है.

पाकिस्तान इस क्षेत्रीय रैंकिंग में सबसे नीचे से एक स्थान ऊपर यानि वैश्विक स्तर पर 145वें स्थान पर है. पाकिस्तान सूडान से थोड़ा आगे है, जो 146 देशों में अंतिम स्थान पर है.

डब्ल्यूईएफ रिपोर्ट के मुताबिक, भारत उन देशों में से एक है, जहां आर्थिक लैंगिक समानता सबसे कम है. भारत में अनुमानित अर्जित आय में 30% से कम लैंगिक समानता दर्ज की गई है. इन देशों की सूची में बांग्लादेश, सूडान, ईरान, पाकिस्तान और मोरक्को भी शामिल हैं. इन सभी देशों में श्रम बल भागीदारी दर में लैंगिक समानता का स्तर 50% से भी कम है.

हालांकि डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने साल 2024 में अपने लैंगिक असमानता को 64.1% तक कम कर लिया है. लेकिन, पिछले वर्ष के अपने 127वें स्थान से हुई भारत की गिरावट का कारण ‘शैक्षिक प्राप्ति’ और ‘राजनीतिक सशक्तिकरण’ के मापदंडों की कमी है.

डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत का आर्थिक समता स्कोर पिछले चार वर्षों से ऊपर की ओर बढ़ रहा है.

डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का माध्यमिक शिक्षा नामांकन के मामले में अच्छा प्रदर्शन है. यहां ये लैंगिक समानता में पहले स्थान पर काबिज़ है.

भारत तृतीयक नामांकन (Tertiary enrolment) में 105वें, साक्षरता दर में 124वें और प्राथमिक शिक्षा नामांकन में 89वें स्थान पर है. इससे शैक्षिक उपलब्धि उपसूचकांक (Educational attainment subindex) में 26वें से 112वें स्थान पर भारी गिरावट दर्ज की है.

भारत महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में 65वें स्थान पर है और पिछले 50 वर्षों में महिला/ पुरुष राष्ट्रअध्यक्षो की संख्या के मामले में यह 10वें स्थान पर है.

राजनीतिक सशक्तिकरण उपसूचकांक (Political empowerment subindex) में भारत ने राज्य प्रमुख संकेतक (Head-of-state indicator) में बेहतर काम किया है, लेकिन संघीय स्तर पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व में भारत ने बाकी देशों के मुकाबले कम स्कोर किया है.

भारत श्रम-बल भागीदारी दर के मामले में 134वें और समान काम के लिए वेतन समानता मामले में 120वें स्थान पर है, जो पुरुषों और महिलाओं के बीच कमाई में पर्याप्त असमानताओं को दर्शाता है.

महिला पुरुषों के बीच स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता सूचकांक (health and survival index) मामले में भारत 142वें स्थान पर कायम है.

डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि, हालांकि वैश्विक स्तर पर 68.5% लैंगिक अंतर को पाट दिया गया है, लेकिन वर्तमान गति से पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में 134 साल लग जायेंगे, जो पांच पीढ़ियों के बराबर है.

डब्ल्यूईएफ की प्रबंध निदेशक सादिया जाहिदी ने कहा कि हम लैंगिक समानता के लिए सन 2158 तक इंतज़ार नहीं कर सकते. अब निर्णायक कार्रवाई का समय आ गया है. कुछ सकारात्मक बदलावों के बावजूद, इस साल की जेंडर गैप रिपोर्ट ने धीमा विकास दर्शाया है, विशेष रूप से आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में. इस वजह से नए सिरे से वैश्विक प्रतिबद्धता की तत्काल ज़रूरत है.

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