इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | जमाअत इस्लामी हिन्द के दिल्ली स्थित मुख्यालय में मासिक प्रेस कांफ्रेंस में ज्ञानवापी मस्जिद के हालिया घटनाक्रम पर चिंता जताते हुए जमात ने मस्जिद के तहखाने में पूजा शुरू किए जाने पर आश्चर्य जताया और न्याय का दायरा सीमित किए जाने पर सवाल उठाया.
ज्ञानवापी मस्जिद पर जमाअत का पक्ष रखते हुए उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम ख़ान ने कहा कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद वाराणसी जिला प्रशासन और वादी (हिंदू पक्ष से) की मिलीभगत की कड़ी निंदा करती है, जिसने लोहे की दीवारों को काटकर और फिर ज्ञानवापी मस्जिद की निचली मंजिल पर मूर्तियां रखकर तुरंत पूजा की सुविधा दी.
उन्होंने कहा, हालांकि वाराणसी जिला न्यायालय ने इस काम के लिए प्रशासन को 7 दिन का समय दिया था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वाराणसी जिला प्रशासन वादी को पूजा शुरू करने में मदद करने की जल्दी में था, इससे पहले कि अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी राहत पाने के लिए उच्च अदालतों में अपील करती, वहां प्रशासन की मदद से पूजा शरू कर दी गई.
इस प्रेस कांफ्रेंस को जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम ख़ान एवं प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर तथा जमाअत के मीडिया विभाग के सचिव के के सुहैल ने सम्बोधित किया. मीडिया विभाग के सह-सचिव सैयद ख़लीक अहमद भी उपस्थित रहे.
प्रेस वार्ता में अपनी बात रखते हुए मलिक मोतसिम ख़ान ने कहा, “जमाअत का मानना है कि वाराणसी जिला न्यायालय का फैसला पूरी तरह से काल्पनिक घटनाओं की बुनियाद पर और निराधार था. जिसमें दावा किया गया था कि 1993 तक ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में पूजा की जाती थी और इसे केवल तत्कालीन राज्य सरकार के आदेश पर रोका गया था, जो कि असत्य है.”
उन्होंने कहा, “मामले का तथ्य यह है कि तहखाने में कभी कोई पूजा नहीं हुई और इसका कोई सबूत भी नहीं है. इसी तरह, मीडिया के एक वर्ग ने मस्जिद के भीतर पहले से मौजूद मंदिर की मौजूदगी का दावा करने वाली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को एकतरफा प्रकाशित किया है. फिलहाल एएसआई की इस रिपोर्ट की स्थिति दावे से ज्यादा कुछ नहीं है.”
मलिक मोतसिम ख़ान ने कहा कि, “जमाअत -ए-इस्लामी वाराणसी में इन अभूतपूर्व घटनाओं की निंदा करती है क्योंकि इससे उन लोगों का हौसला बढ़ना तय है जो मथुरा की शाही ईदगाह, सुनहरी मस्जिद दिल्ली और देश भर में कई अन्य मस्जिदों और वक्फ संपत्तियों पर निराधार दावे कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि, “जमाअत -ए-इस्लामी हिंद ने मंगलवार को महरौली में 600 साल पुरानी मस्जिद को मनमाने ढंग से ध्वस्त करने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की भी निंदा करती है. अखोनजी मस्जिद, जिसमें मदरसा बहरुल उलूम और कई महान हस्तियों की कब्रें थीं, को पूरी तरह से ढहा दिया गया था और यहां तक कि आमजन से इसे छिपाने के लिए मलबे को भी हटा दिया गया था.”
प्रेस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका शोषितों और पीड़ितों का अंतिम सहारा होती है. लेकिन अगर अदालतें भी पक्षपाती और पूर्वाग्रही होने लगें तो न्याय कौन सुनिश्चित करेगा? उच्च न्यायालय को मस्जिद पर नाजायज प्रभुत्व हासिल करने की हताशा के इन कृत्यों को पलटना चाहिए.”
उन्होंने यह भी कहा कि, “जमाअत पूजा स्थल अधिनियम 1991 का पालन करने की आवश्यकता पर जोर देती है. अधिनियम सार्वजनिक इबादतगाह के धार्मिक स्वरुप के संरक्षण की गारंटी प्रदान करता है क्योंकि वे 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में थे. भारत सरकार को इस अधिनियम के समर्थन में सशक्त रूप से सामने आना चाहिए और घोषणा करनी चाहिए कि वे इसका अक्षरशः पालन करेंगे.”
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद देशवासियों से इतिहास को बदलने की इन कोशिशों को रोकने और वोट-बैंक की राजनीति करने के लिए भावनात्मक मुद्दों को उछालने वालों को हराने की की.