अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के तहखाने में जिला जज ने हिंदू पक्ष को पूजा की अनुमति देने के कुछ ही घंटों के बाद प्रशासन की मौजूदगी में तहखाने में पूजा भी शुरु कर दी है.
हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में मुस्लिम पक्ष को उच्च अदालत का रुख करने का मौका नहीं दिया गया और दूसरे पक्ष का इंतज़ार किए बगैर ही जिला प्रशासन ने हिंदू पक्ष द्वारा पूजा शुरु करवा दी गई.
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में जिला अदालत द्वारा तहखाने में पूजा की अनुमति देने के फैसले के खिलाफ अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी ने रात में ही सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने के लिए कहा.
आज अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी रिट याचिका दायर की. इस मामले पर जल्द सुनवाई हो सकती है.
वाराणसी में जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास ने 25 सितंबर 2023 को एक वाद दायर किया था और कहा था कि तहखाना जिलाधिकारी के सुपुर्द किया जाए और 1993 से पहले की तरह पूजा पाठ करने की अनुमति दी जाए.
बाद में अदालत में यह आशंका जताई गई थी कि तहखाने पर अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी इस पर कब्जा कर सकती है. 17 जनवरी 2024 को जिला जज ने जिलाधिकारी को तहखाने का रिसीवर बना दिया.
इसके बाद बुधवार 31 जनवरी 2024 को जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश ने इस पर अपना फैसला सुना दिया और ज्ञानवापी परिसर में स्थित तहखाने में अदालत ने हिंदू पक्ष को पूजा – पाठ की अनुमति दे दी.
जिला जज ने बुधवार को व्यास परिवार और काशी विश्वनाथ ट्रष्ट बोर्ड के पुजारी से तहखाने में स्थित मूर्तियों की पूजा और राग – भोग कराने का आदेश दिया.
जिला जज ने रिसीवर जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि वह सेटलमेंट प्लाट नंबर – 9130 स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने में पुजारियों से मुतियों की पूजा व राग – भोग कराएं. रिसीवर को 7 दिन में लोहे की बाड़ का उचित प्रबंध कराने का भी निर्देश दिया.
इस मामले में सबसे जल्दबाजी और चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें कोर्ट के आदेश का बड़ी जल्दबाजी में पालन भी कर दिया गया. जिलाधिकारी एस राजलिंगम ने कहा है कि, “मैंने कोर्ट के आदेश का पालन करवा दिया है और कोर्ट द्वारा दिया गया आर्डर का कम्प्लायंस हो गया है.”
उधर दूसरी ओर वाराणसी के पुलिस कमिशनर मुथा अशोक जैन ने कहा है कि, “सुरक्षा के लिहाज से समुचित व्यवस्था की गई है।”
तहखाने में रात में ही पूजा -पाठ शुरु कर दिया गया है मस्जिद परिसर में रात में ही दर्जनों की संख्या में मजदूर भी पहुंच गए हैं. मंदिर की ओर जाने वाले सभी रास्तों पर प्रशासन ने अपना पहरा बैठा दिया कि और तलाशी लेकर आने-जाने दिया जा रहा है.
अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी ने हिन्दू पक्ष के दावे को किया ख़ारिज
इस मामले में अंजुमन इंतजामियां मस्जिद कमेटी का दावा है कि, “व्यास परिवार के किसी सदस्य ने कभी तहखाने में पूजा नहीं की. दिसंबर 1993 के बाद पूजा से रोकने का कभी सवाल ही नहीं उठता है. उस जगह पर कभी कोई मूर्ति नहीं थी. यह कहना गलत है कि व्यास परिवार के लोग तहखाने पर काबिज थे.”
मसाजिद कमेटी ने कहा है कि, “तहखाना हमेशा से मस्जिद कमेटी के कब्जे में चला आ रहा है. तहखाने में किसी देवी-देवता
की मूर्ति नहीं थी.”
अंजुमन इंतजामियां मस्जिद कमेटी ने यह भी दलील दी है कि, “यह मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रवधान) से बाधित है. तहखाना ज्ञानवापी मस्जिद का हिस्सा है. ऐसे में वाद सुनवाई योग्य नहीं है. इसे ख़ारिज किया जाये.”
इस पर अदालत ने मस्जिद कमेटी की आपत्ति पर वादी पक्ष से आपत्ति मांगते हुए इसकी अगली सुनवाई के लिए 8 फ़रवरी की तारीख निर्धारित कर दी.
वाराणसी जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध
इस मामले में वाराणसी के जिला प्रशासन की भूमिका बड़ी संदिग्ध है. जिस प्रकार से आनन-फानन में रातों रात तहखाने पर हिंदू पक्ष को कब्जा कराया गया और रात में ही पूजा -पाठ शुुरु कर दी गई उससे ऐसे तमाम सवाल खड़े होते हैं जो कि जिला प्रशासन को कटघरे में खड़ा करते हैं.
जिला प्रशासन इन सवालों के जवाब नहीं देगा क्योंकि जिला प्रशासन ने गलत किया है. इस सबसे इतर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब केंद्र सरकार ने पूजा स्थल विधेयक 1991 बना रखा है, तो इसका उल्लंघन कर निचली अदालतें संसद और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का क्यों उल्लंघन कर रही हैं?
सवाल ये है कि इन्हें संसद के फैसले को नहीं मानने के लिए किसने कहा है या आदेश दिया है. निचली अदालतों की यह कार्यवाही देश की न्यायिक प्रक्रिया के लिए शुभ संकेत नहीं है. इससे न्यायिक प्रक्रिया पर संकट खड़ा हो सकता है, इसलिए ऐसे मसलों पर धैर्य से निर्णय करने की आवश्यकता है.
जिस तरह से इस मामले में निर्णय दिया गया है वह ठीक नहीं है क्योंकि मुस्लिम पक्ष को इसके खिलाफ कोर्ट जाने के लिए समय ही नहीं दिया गया है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ ऊपरी अदालत का रुख किया है.