लखनऊ | अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि जब सर्वे का आदलती आदेश ही पूजा स्थल अधिनियम 1991 और असलम भूरा बनाम भारत सरकार के 1997 के निर्देश के विरुद्ध था तो इसे एक वृहद राजनितिक उद्देश का हिस्सा ही माना जाएगा।
इसका इस्तेमाल मीडिया के एक हिस्से द्वारा मंदिर के पक्ष में साक्ष्य मिलने के प्रचार के बतौर किया जा रहा है ताकि इसे भविष्य में बहुसंख्यक समाज के आस्था से जोड़कर माहौल बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि यह पूरी साज़िश पूजा स्थल अधिनियम 1991 को खत्म करने के लिए की जा रहा है।
शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 स्पष्ट करता है कि 15 अगस्त 1947 तक धार्मिक स्थलों का जो भी चरित्र था वो यथावत रहेगा, इसे चुनौती देने वाली किसी भी अपील को किसी न्यायालय, न्यायाधिकरण (ट्रीब्युनल) या प्राधिकार (ऑथोरिटी) के समक्ष स्वीकार ही नहीं किया जा सकता।
इसी तरह 14 मार्च 1997 को मोहम्मद असलम भूरा बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर, ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह की स्थिति में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। अपने पुराने निर्णय (रिट पटिशन 541/1995) का हवाला देते हुए कोर्ट ने यह भी कहा था कोई भी अधीनस्थ अदालत इस फैसले के विरुद्ध निर्देश नहीं दे सकती।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि वहीं दीन मुहम्मद बनाम सरकार मुकदमे में भी 1937 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मस्जिद और मंदिर के छेत्रों का बैरिकेटिंग करके बंटवारा कर दिया था।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पूरी कवायद पूजा स्थल अधिनियम 1991 को खत्म करने के लिए की जा रही है जिसे बाबरी मस्जिद फैसले में भी संविधान के मौलिक ढांचे को मज़बूत करने वाला बताया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी संवैधानिक पीठ का फैसला है कि मौलिक ढांचे में कोई बदलाव संसद भी नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम को खत्म करने के लिए ही भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय की याचिका को 13 मार्च 2021 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने पहले स्वीकार किया और उसके बाद पूरे योजना बद्ध तरीके से बनारस, बदायूं की ऐतिहासिक जामा मस्जिद, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, आगरा के ताज महल और क़ुतुब मीनार के मंदिर होने के दावे वाली याचिकाएं डलवाई गयीं। उसी दौरान ज्ञानवापी मस्जिद के सामने योगी आदित्यनाथ के संगठन हिंदू युवा वाहिनी ने हथियार लेकर प्रदर्शन भी किया जिसके खिलाफ़ बनारस प्रशासन ने कोई कार्यवाई नहीं की।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मीडिया इसे बाबरी मस्जिद के एएसआई सर्वे की रिपोर्ट से जोड़ कर प्रचारित कर रहा है जबकि बाबरी मस्जिद की एएसआई की सर्वे में शामिल दो विशेषज्ञों प्रोफेसर सुप्रिया वर्मा और जया मेनन ने मंदिर के अवशेष होने के निष्कर्ष को गलत बताते हुए अपनी टिप्पणी दर्ज कराई थी। वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद प्रोफेसर डी मण्डल ने उस रिपोर्ट को कटघरे में खड़ा करते हुए पुस्तक लिखी थी।
उन्होंने कहा कि यह धार्मिक या आस्था से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि विशुद्ध राजनितिक मुद्दा है जिसमें न्यायालय का एक हिस्सा भी शामिल है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की अवमानना कर रहा है और जिसके खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट तक ज्ञापन भेजने के वावजूद संज्ञान नहीं लेता। उन्होंने कहा कि 10 साल में मोदी सरकार की यही उपलब्धि है कि वो अपने किसी भी काम के नाम पर वोट मांगने का साहस नहीं जुटा पा रही है और ऑक्सिजन के लिए मन्दिर-मस्जिद पर निर्भर है।