-अनवारुलहक बेग
सेवाग्राम (महाराष्ट्र) | जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने हाल ही में सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्धा ज़िले में स्थित गांधीजी के आश्रम का दौरा किया. महात्मा गांधी 1936 से 1948 तक अपनी मृत्यु तक यहीं रहे.
अपनी यात्रा के दौरान, प्रोफेसर सलीम ने सेवाग्राम आश्रम में स्थानीय जेआईएच इकाई द्वारा आयोजित एक सांप्रदायिक सद्भाव बैठक को भी संबोधित किया. आज जब देश नफरत और विभाजन से जूझ रहा है, उस समय इस बैठक में गांधी के शांति और अंतर-धार्मिक संदेश को दोहराया गया.
विभिन्न धर्मों के प्रमुख स्थानीय लोगों सहित विभिन्न श्रोताओं को संबोधित करते हुए, प्रोफेसर सलीम ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और भेदभाव के बढ़ते माहौल की निंदा की.
उन्होंने धार्मिक और राजनीतिक नेताओं से सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने का आग्रह किया. सभी को गांधीजी द्वारा सिखाए गए मूल्यों की याद दिलाते हुए उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह सभी नागरिकों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए.
सार्वजनिक कार्यक्रम के बाद, प्रो. सलीम ने सेवाग्राम आश्रम के प्रमुख अधिकारियों के साथ अहम मुलाकातें कीं, जिनमें सचिव विजय तांबे और मगन संग्रहालय, खादी उद्योग की निदेशक डॉ. विभा गुप्ता शामिल से मीटिंग की गई थीं.
प्रो. सलीम की ये चर्चा व्यावहारिक कदमों और आपसी सहयोग की पहल पर आधारित रही, ऐसी पहल जो जेआईएच और आश्रम, भाईचारे को बढ़ावा देने और सामाजिक सद्भाव के लिए समकालीन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए कर शुरु सकें. आश्रम के दौरे के बाद, जेआईएच नेता ने वर्धा में मीडियाकर्मियों को भी संबोधित किया.
जेआईएच महाराष्ट्र के सचिव सैयद रफीक पारनर और स्थानीय जेआईएच अध्यक्ष नियाज़ अली प्रोफेसर सलीम की यात्रा में उनके साथ थे.
प्रोफेसर सलीम ने मीडियाकर्मियों से कहा, “नफरती भाषण, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की जा रही हिंसा हमारे देश को सभी के लिए असुरक्षित बना रही है.”
सेवाग्राम आश्रम, महात्मा गांधी का पूर्व घर, अहिंसा, सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है. सेवाग्राम, एक छोटा सा गाँव है जिसे कभी शेगाँव के नाम से जाना जाता था, यह वर्धा से लगभग 8 किलोमीटर और नागपुर से लगभग 75 किलोमीटर दूर स्थित है.
गांधीजी ने इस गांव के बाहरी इलाके में एक आश्रम की स्थापना की थी, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन गया था. गांधीजी के शिष्य और वर्धा के सेठ जमनालाल बजाज द्वारा आश्रम के लिए ज़मीन दान दी गई थी.
सेवाग्राम आश्रम में गांधी जी की मिट्टी की झोपड़ी, प्रार्थना कक्ष, खेत और कार्यशालाएँ थीं. वहां से गांधीजी ने दांडी मार्च सहित कई सत्याग्रहों का नेतृत्व किया. आज, आश्रम एक संग्रहालय और स्मारक के रूप में जाना जाता है, जो दुनिया भर के सैलानियों को आकर्षित करता है.