इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | भारत के शीर्ष मुस्लिम संगठनों में से एक, जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र से स्थायी युद्धविराम सुनिश्चित करने और असहाय फिलिस्तीनियों पर अत्याचार के लिए इज़राइल पर प्रतिबंध लगाने की अपील की है.
यह मांग 24 से 26 नवंबर तक गुजरात में आयोजित केंद्रीय सलाहकार परिषद (सीएसी) की बैठक में पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से की गई थी.
जमात-ए-इस्लामी हिंद ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से फ़िलिस्तीन मुद्दे का उचित समाधान खोजने के लिए एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य के लिए गंभीर प्रयास करने का भी आग्रह किया.
यह कहते हुए कि 7 अक्टूबर से कुछ दिन पहले तक फिलिस्तीनियों पर इज़रायल के हमलों ने युद्ध के सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया, निहत्थे नागरिकों, विशेष रूप से निर्दोष बच्चों और महिलाओं का नरसंहार और हत्या की गई, अस्पतालों जैसी सामान्य शहरी सुविधाओं पर अंधाधुंध बमबारी युद्ध के समान है. इसके लिए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में मुकदमा चलाया जाए.
इस प्रस्ताव के माध्यम से कहा गया है कि हालिया इज़रायल आक्रमण ने ज़ायनिस्ट, संयुक्त राज्य अमेरिका और कई यूरोपीय देशों के असली चेहरों को उजागर कर दिया है. फ़िलिस्तीनी लोगों ने जिस साहस के साथ इज़रायल की आक्रामकता का विरोध किया है और जिस असाधारण धैर्य का परिचय दिया है, वह अत्यंत सराहनीय है.
जेआईएच सीएसी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से युद्ध से नष्ट हुए क्षेत्रों का पुनर्निर्माण करने और आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की भी अपील की.
यह कहते हुए कि दुनिया भर के न्यायप्रिय लोगों ने फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन किया है और इज़रायली आक्रामकता की निंदा की है, हमारे देश के आम लोगों, गैर सरकारी संगठनों और विभिन्न मीडिया आउटलेट्स ने भी फ़िलिस्तीनी मुद्दे का पूरा समर्थन किया है.
जमात-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद ने भारत सरकार से यह भी आग्रह किया है कि वह फिलिस्तीन पर देश के लंबे समय से चले आ रहे रुख का पालन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक प्रयासों के माध्यम से एक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना में प्रभावी भूमिका निभाने का भी आग्रह किया.
बैठक में देश के कुछ मीडिया संगठनों द्वारा इज़राइली आक्रामकता की एकतरफा, पक्षपातपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग पर गहरी चिंता व्यक्त की गई और उनका ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया गया कि उनकी गैर-ज़िम्मेदाराना कवरेज से देश में सांप्रदायिक वैमनस्य और इस्लामोफोबिया को बढ़ावा मिल सकता है.
भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में लोकतांत्रिक और नैतिक मूल्यों की गिरावट पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, जमाअते इस्लामी हिन्द ने देश में मूल्य-आधारित राजनीति की वकालत की.
जमात-ए-इस्लामी हिंद के केंद्रीय सलाहकार परिषद ने प्रस्ताव के माध्यम से सत्तारूढ़ दल द्वारा अपने राजनीतिक हितों को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग और यहां तक कि राज्यपालों के कार्यालयों के दुरुपयोग पर भी चिंता व्यक्त की.