-उमाकांत लखेड़ा
भरतपुर | ग्रामीण बाहुल्य भरतपुर सभी सात विधानसभा सीटें त्रिकोण और चौकोर मुकाबले में फंसी हुई हैं। बुधवार को नाम वापसी की तारीख समाप्त होते ही प्रदेश सत्ताधारी कांग्रेस बनाम भाजपा की सीधी लड़ाई में जातियों के ध्रुवीकरण ने दोनों खेमों में कइयों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
उत्तर प्रदेश के आगरा और मथुरा से सटे होने के कारण यूपी की सियासत की रोमांचक जातीय जंग को यहां की कई सीटों पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। हरियाणा की मेवात क्षेत्र की सियासत का रंग भी कम रोचक नहीं। भरतपुर (मेन) राजस्थान की अकेली सीट है जहां कांग्रेस ने राष्ट्रीय लोकदल के लिए गठबंधन में सीट खाली छोड़ी है।
कांग्रेस समर्थन से आरएलडी उम्मीदवार सुभाष गर्ग यहां हैं वे यहां पंप निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी टक्कर भाजपा के विजय बंसल से है ले बसपा के गिरीश चौधरी भी मैदान में हैं. लेकिन टिकट न मिलने पर भाजपा के विद्रोही के तौर पर निर्दलीय गिरधर तिवारी ने नाम आखिरी दिन नाम वापस लेकर भाजपा के डॉ सुभाष गर्ग की जीत की संभावनाओं को मुश्किल बना दिया है।
सुभाष गर्ग गहलोत सरकार में राज्य मंत्री हैं. गहलोत सरकार में हुए कई पेपर लीक कांडों में उनकी कथित भूमिका को भाजपा चुनाव में उछाल रही हैं. जाट बहुल नदवई विधानसभा में भाजपा के जगत सिंह ने कांग्रेस व बाकी विपक्षी उम्मीदवारों के मुकाबले में भारी दिख रहे हैं. जगत सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री और केंद्र की कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह के पुत्र हैं. उनका मुकाबला बसपा से कांग्रेस का दाम थाम चुके जोगिंदर सिंह अवाना से है. आवाना भी जाट हैं और मूलत: गाजियाबाद निवासी हैं। पिछली बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन इस बार उन्होंने पाला बदलकर कांग्रेस से टिकट हासिल कर लिया।
जाट बनाम जाट की लड़ाई में आवाना नटवर सिंह के पुत्र जगत सिंह के पक्ष में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड का जातीय समीकरण भी साथ दे रहा है. पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के भानजा जगत सिंह के टिकट हासिल करने में सहायता की है. डीकुमेर विधानसभ सीट पर कांग्रेस के विश्वेंद्र सिंह का पलड़ा वैसे ही भारी दिखता है जैसा नदवई में भाजपा के जगत सिंह का है.
डीग को जिला बनवाने में विश्वेंदर सिंह की अहम भूमिका है. वे गहलोत सरकार में ताकतवर कैबिनेट मंत्री तो हैं ही यहां भरतपुर राज घराने के अंतिम शासक महाराजा ब्रजेंद्र सिंह पुत्र होने के नाते उनकी चमक के आगे बाकी उम्मीदवार कमहोर दिख रहे हैं. उनका सीधा मुकाबला भाजपा के शैलेंद्र सिंह से है जो 2018 का विधानसभा चुनाव मात्र 8000 वोटों से हारे थे. इस बार भी वे कांटे की लड़ाई में फंसे हैं. उनके प्रतिद्वंदी शैलेंद्र सिंह के पिता डा दिगम्बर सिंह भाजपा के बड़े कद के नेता थे 2008 में विश्वेंद्र सिंह का दिगम्बर सिंह से सियासी विवाद बढ़ा तो विश्वेंद्र सिंह ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया.
जाट वर्चस्व की लड़ाई में 2008 में दिगम्बर सिंह से चुनाव हारने के बावजूद विश्वेंद्र सिंह का राजस्थान की जाट राजनीति में कद लगातार मजबूत होता रहा. दूसरी ओर भरतपुर की कामा विधानसभा सीट पर हरियाणा के मेवात की राजनीति का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है. यहां मेव मुस्लिम आबादी 55 से 60 प्रतिशत के बीच आंकी जा रही है. हरियाणा की कांग्रेस राजनीति के कद्दावर नेता चौधरी तैयब हुसैन की बेटी जाहिदा खान गहलोत सरकार में मंत्री हैं लेकिन कांग्रेस के भीतर ही उनको टिकट देने का प्रबल विरोध हुआ.
भाजपा ने जाहिदा खान का मुकाबला कराने के लिए हरियाणा के पुन्हाना से चुनाव लड़ चुकी युवा फायर ब्रांड नौछम चौधरी नेत्री को मैदान में उतारा है. नौछम की मां जाटव है इसलिए वे यहां दलित मुस्लिम समीकरण साध रही हैं. भाजपा की यहां मेव बनाम हिंदू वोटों के ध्रुवी करण और कांग्रेस में जाहिदा खान के भीतरी विरोध और उनके व्यवहार से नाराज आम लोगों के असंतोष का सहारा है.
यहां मदन मोहन सिंघल ने टिकट न मिलने पर भाजपा से विद्रोह कर निर्देलीय पर ताल ठोक कर भाजपा के समीकरणों को बिगाड़ दिया है. वे दो बार भाजपा से विधायक थे, इस बार उनका टिकट कटा है. नगर विधानसभा एक और रोचक सीट है जहां मेव मुस्लिम और जाटव राजनीति का खासा दबदबा है.
पिछली बार बसपा के टिकट पर यहां आस्ट्रलिया में निजी विश्वविद्यालय चला रहे वाजिद अली ने इस बार कांग्रेस का टिकट हथिया लिया. यह दावा किया कि बसपा के जाटव वोटों पर भी उनकी पैैठ है. लेकिन बसपा ने उन्हें दल बदल का सबक सिखाने के लिए में समुदाय के खुर्शीद अहमद को मैदान में उतार दिया है. हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में करने को भाजपा ने यहां जवाहर सिंह गुर्जर को मैदान में उतार दिया है. दूसरी ओर आजाद समाज पार्टी ने नेमसिंह फौजदार ने जाटव वोटों के बूते यहां की लड़ाई को त्रिकोण बना दिया है.
बयाना विधानसभा (सुरक्षित) एक और सीट पर कांग्रेस के अमर सिंह जाटव और भाजपा के बच्चू सिंह जाटव के बीच रोचक मुकाबला है. ये दोनों प्रमुख उम्मीदवारों का गांव एक ही है. यहां भाजपा की विद्रोही रीतू बनावत ने पार्टी से विद्रोह कर निर्देलीय पर्चा कर भर दिया. उनके पति हाल तक भाजपा भरतपुर के जिलाध्यक्ष थे. पत्नी के निर्दलीय लड़ने पर भाजपा ने उनके पति ऋषि बी बंसल को पार्टी से निकाल दिया.
वेयर विधानसभा की दूसरी सुरक्षित सीट पर कांग्रेस के वर्तमान विधायक भजन सिंह और भाजपा के बहादुर सिंह कोली के बीच सीधा मुकाबला है. बहादुर सिंह कोली भाजपा से दो बार विधायक व एक बार सांसद रह चुके हैं. पूर्व में भजन लाल सचिन पायलट के खेमे में थे. लेकिन पाला बदलने के इनाम के तौर पर गहलोत से निकटता होने के कारण टिकट पाने में सफल हो गए.