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Thursday, May 16, 2024
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भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति के मुकाबले नीतीश कुमार ने चला मंडल राजनीति का दांव

-समी अहमद

पटना | बिहार जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023 के सबसे महत्वपूर्ण परिणाम के रूप में, राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), पिछड़ा वर्ग (बीसी) और अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) समूह के लिए सरकारी नौकरियों में 15 प्रतिशत संयुक्त आरक्षण कोटा बढ़ाने का फैसला किया है.

यह कोटा अब पिछले 50% से बढ़कर 65% होगा. यदि इसमें आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) का 10% आरक्षण जोड़ दिया जाए तो राज्य में कुल आरक्षण 75% हो जाएगा. तेलंगाना और कर्नाटक के विपरीत, बिहार में मुसलमानों के लिए कोई कोटा नहीं है, यहां तक ​​कि पिछड़े मुसलमानों के लिए भी नहीं.

आरक्षण का कोटा बढ़ाने का प्रस्ताव राज्य कैबिनेट से पास हो गया है. राज्य विधानमंडल 9 नवंबर को आरक्षण बढ़ाने के लिए विधेयक पारित करने वाला है. मुख्य विपक्षी दल – भाजपा, बिहार जाति सर्वेक्षण के प्रति बहुत अनिच्छुक थी, हालांकि सरकार में रहते हुए वह इसके लिए सहमत थी. हालांकि बीजेपी सर्वे में गड़बड़ी का आरोप लगा रही है, लेकिन सर्वे का श्रेय लेने का दावा भी कर रही है.

आरक्षण सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव से विपक्षी भारतीय जनता पार्टी समेत सभी राजनीतिक दल खुश नज़र आ रहे हैं. हालांकि पहले जारी बिहार जाति सर्वेक्षण में मुसलमानों की आबादी 17.7 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन उनकी आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर कोई डेटा जारी नहीं किया गया था. सरकारी नौकरियों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का भी कोई डेटा नहीं है.

सत्तारूढ़ सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) के विधान परिषद सदस्य गुलाम गौस ने आरक्षण स्तर को 75% तक बढ़ाने के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन उन्होंने मांग की है कि ओबीसी और ईबीसी कोटा के भीतर ओबीसी और ईबीसी मुसलमानों के लिए एक अलग कोटा तय किया जाए और राज्य शासन में मुसलमानों के लिए उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करे.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि चूंकि राज्य में किसी भी पार्टी के लिए आरक्षण का विरोध करना संभव नहीं है, इसलिए बीजेपी ने आरक्षण का कुल प्रतिशत बढ़ाने के फैसले का स्वागत किया है. बीजेपी इस बात से खुश है कि नीतीश सरकार की ओर से मुसलमानों को अलग से कोटा नहीं दिया गया है क्योंकि बीजेपी की पूरी राजनीति मुसलमानों के विरोध पर ही केंद्रित है.

अगर नीतीश सरकार ने मुसलमानों के लिए अलग कोटा निर्धारित किया होता, तो इससे न केवल राज्य स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को राजनीतिक चारा मिलता.

जाति सर्वेक्षण के अनुसार, बक्खो जैसे मुस्लिम ईबीसी में गरीबी 44 प्रतिशत से अधिक है, जिसका अर्थ है कि 44% बक्खो 6000 रुपये प्रति माह से अधिक नहीं कमाते हैं. डफाली समुदाय के लिए यह आंकड़ा 35 फीसदी है. उन्तीस प्रतिशत रंगरेज गरीब हैं.

राज्य सरकार के प्रस्तावों के अनुसार, ईबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण कोटा मौजूदा 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है. बीसी के लिए इसे मौजूदा 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है. एससी समुदाय के लिए, प्रस्तावित आरक्षण कोटा मौजूदा 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत है, जबकि एसटी के लिए इसे मौजूदा एक प्रतिशत से बढ़ाकर दो प्रतिशत करने का प्रस्ताव है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) के लिए कोटा 10 प्रतिशत ही रहेगा.

आरक्षण में बढ़ोतरी के नये प्रस्ताव से नीतीश कुमार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस दावे को विफल करने में सफल हो गये हैं, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि सरकार ने यादवों और मुसलमानों की आबादी गलत तरीके से बढ़ायी है. ऐसा लगता है कि यह मुद्दा हाशिये पर चला गया है क्योंकि उपमुख्यमंत्री ने उस दावे का खंडन करते हुए कहा है कि अगर नीतीश कुमार चाहते तो वह अपनी जाति- कुर्मी की आबादी बढ़ा सकते थे.

नीतीश सरकार द्वारा राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का भाजपा ने स्वागत किया है, जिसे विश्लेषकों ने इसे भाजपा की समझौतावादी नीति के रूप में देखा है. भाजपा के लिए ऐसे किसी भी प्रस्ताव का विरोध करना राजनीतिक रूप से बुद्धिमानी नहीं है जबकि उसके मूल संगठन – आरएसएस – पर दीर्घकालिक आरक्षण का विरोधी होने का आरोप लगाया जाता है.

जहां पिछड़ी जाति के बीजेपी नेता खुले तौर पर बढ़े हुए आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं, वहीं ऊंची जाति के बीजेपी नेता इस पर चुप्पी साधे हुए हैं. आरक्षण प्रतिशत में प्रस्तावित वृद्धि पर अपने रुख पर भाजपा के उच्च जाति समर्थकों की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

आरक्षण बढ़ाने के फैसले को नीतीश कुमार का राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक माना जाता है क्योंकि इससे भाजपा की हिंदुत्व राजनीति का मुकाबला करने की उम्मीद है. बीजेपी की नज़र 2024 में एनडीए के लिए सभी 40 संसदीय सीटों पर है, जबकि 2019 में उसने 39 सीटें जीती थीं. 2019 में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) एनडीए में बीजेपी के साथ थी.

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