अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | उत्तर प्रदेश में जातीय जनगणना के मुद्दे पर भाजपा बुरी तरह से घिर गई है और भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व असमंजस की स्थिति में है।
देश की संसद से महिलाओं को आरक्षण का विधेयक पारित करवा कर भाजपा बहुत ही इतरा रही थी और गुमान कर रही थी कि अब आगामी लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से देश की सत्ता पाने में कामयाब हो जाएगी।
भाजपा का यह मानना था कि महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने से देश की आधी आबादी यानी महिलाएँ उसको लोकसभा चुनाव में वोट देंगी, जिससे वह केंद्र सरकार में एक बार फिर से सत्ता प्राप्त करने में कामयाब हो जाएगी। जबकि हकीकत में महिला आरक्षण कानून के बनकर जमीनी स्तर पर इसके लागू होने में अभी बड़ा समय लगेगा।
हो सकता है कि शायद यह कानून 2029 के लोकसभा चुनाव में भी न लागू हो सके, क्योंकि अभी इसके लागू होने में इसको कई चरणों से होकर गुज़रना पड़ेगा। इसी बीच यूपी में जातीय जनगणना के मुद्दे के उठ कर खड़े होने से भाजपा राज्य में बुरी तरह से घिर गई है।
आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी में जातीय जनगणना का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा बनेगा। लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना का मुद्दा भाजपा के लिए बड़ी मुश्किलों वाला होगा। भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों ने यूपी में शतरंजी चाल चल दी है, जिसका अब भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है। जातीय जनगणना के मुद्दे पर अब भाजपा को उसके अंदर से और बाहर से सहयोगी दलों से चुनौती मिलना शुरु हो गई है।
यूपी में जातीय जनगणना कराये जाने की मांग तेजी के साथ उठने लगी है। इससे भाजपा की बेचैनी बढ़ गई है, क्योंकि भाजपा यह कतई नहीं चाहती है कि यूपी में जातीय जनगणना हो। भाजपा मुख्य रूप से अगड़ों की राजनीति करती है। जब उसकी गाड़ी फंसती है वह वह पिछड़ों को भी अपनी राजनीति में शामिल कर लेती है।
इसी प्रकार जब भाजपा की राजनीति गड़बड़ होने लगती है, तो वह मुसलमानों पर भी डोरे डालने लगती और उनको भी आपस में बाँटने का काम करने लगती है। कुछ समय पहले भाजपा ने मुसलमानों को भी अगड़ों और पिछड़ों में बाँटने के लिए पसमाँदा और गैर पसमाँदा के बीच बाँटने का प्रयास किया। लेकिन जब उनको हक देने की बात आई तो केवल प्रो तारिक मंसूर और दानिश आजाद अंसारी के आलावा किसी को कोई पद सरकार ने नहीं दिया।
कमोबश यही स्थिति भाजपा अन्य जातियों के साथ करती नज़र आती रही है। लेकिन अब यूपी में विपक्षी दलों ने जातीय जनगणना कराए जाने की मांग करके भाजपा को घेर दिया है और भाजपा को इसकी कोई काट नहीं नज़र आ रही है।
जातीय जनगणना कराए जाने को लेकर भाजपा को अपने अंदर से ही तगड़ी चुनौती मिलने लगी है। पिछड़ी जातियों में यादव के बाद कुर्मी जाति की आबादी का नंबर आता है। पिछले दिनों यूपी की राजधानी लखनऊ में गन्ना संस्थान में सरदार पटेल बौद्धिक विचार मंच के बैनर तले एक बैठक हुई, जिसमें यूपी सरकार के राज्यमंत्री संजय गंगवार, एम एल सी अवनीश पटेल, विधायक डा.एम पी आर्या, विधायक और पूर्व मंत्री नीलिमा कटियार जैसे लोग मौजूद रहे। इन लोगों ने जातीय जनगणना की वकालत की और आने वाले लोकसभा चुनाव में अपनी जाति की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग की।
इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव को शामिल होना था, लेकिन वह नहीं पहुँचे। इसकी वजह यह है कि वह अगर इसमें शामिल होते तो वह पार्टी लाइन के खिलाफ हो जाते और उनका मंत्री पद भी खतरे में पड़ जाता। यूपी में भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल एस ने भी जातीय जनगणना की मांग की है।
अपना दल एस की अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का कहना है कि, “उनकी पार्टी हमेशा से जातीय जनगणना कराए जाने की पक्षधर रही है। इस मुद्दे को लेकर उनकी पार्टी इसको सड़क से लेकर संसद तक इसको उठाती रही है।”
निषाद पार्टी इसको लेकर अपना रुख साफ नहीं करती है, लेकिन वह भी जातीय जनगणना कराए जाने के पक्ष में है। सुभासपा जातीय जनगणना कराए जाने को लेकर मुखर है। इसके अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर जातीय जनगणना कराए जाने को लेकर हजारों बार मांग कर चुके हैं। सुभासपा अति पिछड़े वर्गों की ही राजनीति करती है और जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी हो राजनीति में उतनी हिस्सेदारी की वकालत करती है।
यूपी में जातीय जनगणना कराए जाने के मामले की मांग पर भाजपा ने चुप्पी साध ली है। यूपी भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कहना है कि, “विपक्षी दलों के राजनेता जातीय जनगणना के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।”
हालांकि, उनसे यह कहने पर कि यूपी में उनके सहयोगी दल अपना दल और निषाद पार्टी जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। इस पर उनका कहना था कि, “यह हमारे सहयोगी दल हैं। लेकिन उनका राजनीतिक एजेंडा अलग है और भाजपा का एजेंडा अलग है।
इसी बीच बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी जातीय जनगणना की मांग करके भाजपा के लिए दिक्क़त पैदा कर दिया है। जातीय जनगणना की मांग यूपी में सबसे पहले सपा ने की थी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जब जातीय जनगणना कराए जाने की मांग की थी, तब अन्य राजनीतिक दलों ने चुप्पी साध ली थी। इसके बाद यह माना जा रहा था कि मायावती इस मुद्दे पर भाजपा के साथ खड़ी नजर आएंगी। लेकिन अब मायावती ने भी जातीय जनगणना कराए जाने की मांग कर भाजपा को मुसीबत में डाल दिया है।
मायावती ने कहा है कि, “यूपी सरकार को अब अपनी नीयत व नीति में जनभावना व जन अपेक्षा के अनुसार सुधार करके जातीय जनगणना एवं सर्वें अविलम्ब शुरु करा देना चाहिए। इसका सही समाधान तभी होगा, जब केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जातीय गणना कराए।”
यूपी में सपा के साथ ही कांग्रेस भी जातीय जनगणना कराए जाने की मांग कर चुकी है। विपक्षी दलों के साथ ही साथ भाजपा के सहयोगी दलों ने भी यूपी में जातीय जनगणना कराए जाने की मांग करके भाजपा की बोलती बंद कर दी है। भाजपा को अब इसका कोई समाधान नहीं नजर आ रहा है।
यह मुद्दा भाजपा पर भारी पड़ रहा है। आज यूपी में जातीय जनगणना कराए जाने का मुद्दा भाजपा की राह में रोड़ा बनकर खड़ा हो गया है। बगैर इसका समाधान किए भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी में लड़खड़ाती हुई नज़र आएगी और उसको करारी हार का सामना भी करना पड़ सकता है।