–सलीम अत्तार
जयपुर | राजस्थान के बाड़मेर के ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ आंगनबाड़ी केंद्रों में कई समस्याएं देखने को मिल रही हैं जो सरकारी दावों से विपरीत अलग कहानी बयान कर रहे हैं. बाड़मेर में आंगनबाड़ी केंद्रों के भवनो की स्थिति पूरी तरह जर्जर है. ग्राउंड रिपोर्ट में यह पाया गया कि शौचालय, पीने का पानी और अन्य बुनयादी आवश्यकताओं का अभाव था.
राज्य सरकार ने पूरे राजस्थान में आंगनबाड़ी केंद्रों में सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन बाड़मेर में ऐसे कई केंद्र हैं जहां सरकारी दावे ज़मीन पर नज़र नहीं आते.
राजस्थान में आंगनबाड़ी केंद्र एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. इन केंद्रों का लक्ष्य छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को समग्र विकास और देखभाल प्रदान करना है. यह केंद्र पोषण, स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और प्री-स्कूल शिक्षा सहित कई प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं. हालांकि, ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए पहला कदम माने जाने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल बेहद चिंताजनक है.
बाड़मेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ आंगनबाड़ी केंद्रों का दौरा करने पर पाया गया कि ज्यादातर आंगनबाड़ी केंद्रों में भवनो की स्थिति पूरी तरह जर्जर है. शौचालय और पीने के पानी तक का अभाव था.
राज्य सरकार ने पूरे राजस्थान में आंगनबाड़ी केंद्रों में सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन बाड़मेर में ऐसे कई केंद्र हैं जो अलग कहानी बयां करते हैं. ऐसा लगता है कि इन आंगनबाड़ी केंद्रों पर लंबे समय से ध्यान नही दिया गया है.
आंगनबाड़ी केंद्रों की समस्याएं
बाड़मेर जिले के धारणा गांव के निंबाला स्थित आंगनबाड़ी सहायिका चंदू देवी अपने आंगनबाड़ी केंद्र में आने वाले बच्चों के लिए 500 मीटर पैदल चलकर पानी भर के लाती हैं, एक कैंपर भर के वापस लौटने में करीब आधा घंटा खर्च होता है. चंदू देवी बताती हैं की पास में ही टंकी बनी है लेकिन उसमें पानी का कनेक्शन नहीं है जिसकी वजह से पानी दूर से लाना पड़ता है, अधिकारियों को अवगत करवाया परंतु कोई समाधान नहीं हुआ.
जिले में 3559 आंगनबाडी केन्द्र है. शहरी इलाकों में इन्ही केंद्रों की बात करे तो बाड़मेर बालोतरा में कुल 128 केन्द्र हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में 3431 केंद्र संचालित है. अगर इन केंद्रों में बुनियाद सुविधा की बात करे तो 90 प्रतिशत केंद्रों में शौचालय की सुविधा नहीं है जिसके चलते केंद्रों पर आने वाले नौनिहालों एवं महिलाओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
जिले के पादरू गांव स्थित आंगनवाड़ी केंद्र कोड 620′ बिजली की व्यवस्था न होने की वजह से हाथ के बने पंखे से बच्चों के लिए हवा की जा रही.
ग्राउंड रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि कुछ आंगनबाडी कर्मियों को एक किलोमीटर दूर से पानी लेकर केन्द्र पर आना पड़ता है. पानी एक बुनियादी ज़रूरत है लेकिन इन केन्दों पर उस बुनियादी ज़रूरत के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
बाड़मेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों की पड़ताल में पता चला कि, जहां सरकार एक और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा आमजन को मुहैया कराने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही है वहीं दूसरी ओर गांव की पहली सीढ़ी माने जाने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों पर ही नौनिहालों के लिए पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है.
नौनिहालों को पानी के लिए या तो वापस अपने घर जाना पड़ता है या घरों से ही पानी की व्यवस्था करके लाना पड़ता है. ऐसे में कई बार आंगनबाड़ी केंद्रों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्वयं अपने घरों से या आस-पड़ौस से पानी भरकर केंद्र पर लाती हैं.
बच्चों के लिए पानी जैसी बुनियादी ज़रूरत के लिए मेहनत के बाद बिजली की बारी आती है. केंद्र पर बिजली नहीं होने के कारण बच्चे दिन भर गर्मी में परेशान रहते हैं, बच्चे गर्मी से बेहाल अपनी किताब से पंखा झलते नज़र आते हैं.
प्रस्तावित फंड के बावजूद भी आंगनबाड़ी केंद्रों की स्तिथि दयनीय
वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, केंद्र सरकार ने राज्यों द्वारा कार्यान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना – सक्षम आंगनबाड़ी केंद्र और पोषण 2.0 के लिए 20,554 करोड़ रुपये आवंटित किए. इसने मिशन वात्सल्य या बाल संरक्षण सेवाओं और बाल कल्याण सेवाओं के लिए 1,472 करोड़ रुपये और मिशन शक्ति या संरक्षण और सशक्तिकरण मिशन के लिए 3,143 करोड़ रुपये आवंटित किए गए.
हरिजनों का वास, पादरू स्थित आंगनवाड़ी केंद्र कोड 620′ जिसमे केन्द्र का बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त है.
हरिजनों का वास, पादरू स्थित आंगनवाड़ी केंद्र कोड 620′ जिसमे केन्द्र का बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त है, आंगन पूरी तरह से टूटा हुआ है.
बजट के आंकड़े प्रभावशाली लग सकते हैं, हालाँकि मिशन शक्ति का बजट पिछले साल के आवंटन से थोड़ा कम है. लेकिन ज़मीनी स्तर पर इन आवंटित बजट को कहां खर्च किया गया इसका ज़मीन पर कुछ भी आंकड़ा नहीं है.
राजस्थान के आंगनबाड़ी केंद्रों में शौचालय नहीं हैं
पश्चिमी राजस्थान के विभिन्न जिलों में आंगनबाड़ी केंद्रों में शौचालयों की कमी एक गंभीर मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. यहां आने वाली गर्भवती महिलाओ के लिए शौचालयों ना होना महिलओं व बच्चो के लिए केंद्रों में उपस्थिति में बाधा डाल रहा है.
शौचालयों का नहीं होना न केवल बच्चों और देखभाल करने वालों की गरिमा और गोपनीयता से समझौता करती है, बल्कि गंभीर स्वास्थ्य और स्वच्छता जोखिम भी पैदा करती है.
शौचालयों की अनुपस्थिति के कारण विशेषकर लड़कियों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. आंगनबाड़ी केंद्रों में शौचालयों की कमी को दूर करने और बच्चों की वृद्धि और विकास के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार, स्थानीय समुदायों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच सहयोगात्मक प्रयास महत्वपूर्ण हैं.
बालोतरा ब्लॉक के मजीवाला गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कमला देवी ने बताया की उनके आंगनबाड़ी केंद्र पर आने वाली गर्भवती व धात्री महिलाओ के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है और वे बाहर जाने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि अधिकारी को अवगत करवाया परंतु अभी तक कोई सुविधा बनती नही दिख रही.
बच्चे व महिलाओं के लिए संसाधनों की अनियमितता
राजस्थान में आंगनबाड़ी केंद्रों को संसाधनों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, ख़ासकर जब बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने की बात आती है. आगनबाड़ी केंद्रों पर पर्याप्त संसाधन ना होने की वजह से बच्चों को कुर्सी की जगह आंगन में बैठना पड़ता है.
बालोतरा जिले के पाऊं गांव स्थित आंगनबाड़ी केंद्र में मौजूद कुछ महिलाएं व बच्चे।
बारिश के मौसम में जब जर्जर भवन की छत टपकने की वजह से आंगन पानी से भर जाता है जिसके चलते बच्चों को बैठने में परेशानी का सामना करना पड़ता है.
पोषाहार की संपूर्ण सुविधा से वंचित आंगनबाड़ी के बच्चे
कमज़ोर व कुपोषण के शिकार बच्चों का विकास और कल्याण ना होने की वजह से आंगनवाड़ी के बच्चे संपूर्ण पोषण सुविधाओं से वंचित हैं, आवश्यक विटामिन और खनिजों सहित पौष्टिक भोजन की अपर्याप्त पहुंच उनके स्वास्थ्य को खतरे में डालती है. वजह आगनवाड़ी केंद्र में उपलब्ध संसाधनों की कमी. पर्याप्त धन और संसाधनों की कमी बच्चो के विकास में बाधा डाल रही है.
ऐसे कई सारे मामले सामने आए है जहां आगनवाड़ी केंद्र में उपलब्ध सामग्री का अनियमित होना, पानी की कमी, बिजली का ना होना, जर्जर हालत में बने भवन आदि कारणों से रसोई सुविधा बाधित हो रही है. आंगनवाड़ी बच्चों के स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करने के लिए तत्काल ध्यान और कार्रवाई की आवश्यकता है.
राजस्थान इंदिरा महिला शक्ति उड़ान योजना का कम असर
राजस्थान सरकार की तीसरी वर्षगांठ पर 19 दिसंबर 2021 को महिला एवं बाल विकास विभाग राजस्थान सरकार द्वारा आई एम शक्ति उड़ान योजना की शुरुआत की गई. इस योजना के अंतर्गत 11 से 45 साल की महिलाओ के लिए 12 सेनेटरी नैपकिन प्रतिमाह मुफ्त वितरित किए जाने हैं.
आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार इस योजना के लिए प्रथम चरण में 200 करोड़ रुपए तथा दूसरे चरण में 600 करोड़ रुपए का बजट खर्च करने की योजना निर्धारित की गई है. जिसके जरिए सेनेटरी नैपकिन स्कूल कॉलेजों और आंगनबाड़ी केंद्रों पर निशुल्क वितरित किए जाएंगे. परंतु जानकारी के अभाव के चलते कई सारी महिलाए निशुल्क सेनेटरी नैपकिन योजना से वंचित है.
इस योजना में आने वाली महिलाओं का आंगनबाड़ी पर लगातार आना ही इस योजना को सफल बना सकता है. कुछ आंगनबाड़ी केंद्र की जर्जर हालत होने की वजह से सेनेटरी नैपकिन वहां मौजूद नही पाए गए, जब कार्यकर्ताओं से पूछा गया तो बताया भवन जर्जर है बरसात में पानी भरने की वजह से सारा सामान खराब हो जाने की वजह से किसी अन्य जगह पर रखा गया है.
सिवाना ब्लॉक स्तरीय सीडीपीओ भीमाराम बारूपाल ने बताया कि पूरे ब्लॉक में 280 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं. संचालन सुधार हेतु 11 सुपरवाइजर की पोस्ट पर मात्र 2 सुपरवाइजर को लगाया गया है जो 280 केंद्रों पर निरीक्षण करते हैं. उन्होंने बताया कि संचालन हेतु अलग-अलग केंद्रों पर कार्यकर्ताओ को लगाया गया है, सेंटर संचालन में कुछ जगह पर पढ़ी-लिखी कार्यकर्ता नहीं है.
ब्लॉक स्तरीय महिला एवं बाल विकास अधिकारी भीमाराम बारूपाल।
उन्होंने बताया, “हम कोशिश कर रहे हैं कि नई भर्ती में पढ़ी लिखी औरतों को लिया जाए. इसके अलावा राजस्थान सरकार की योजना महंगाई राहत शिविर में हमने आंगनबाड़ी केंद्रों के विकास को लेकर बात रखी गई है. हमने पंचायत स्तर पर सरपंचों को अवगत करा रखा है कि आप अपने स्तर पर आंगनबाड़ी केंद्रों की देखभाल करें. हम अपनी ऑफिशल गाइड लाइन के अनुसार पूरा काम कर रहे हैं.”