-हुमा मसीह
नई दिल्ली | आयरिश सिंगर और सॉन्ग राइटर सिनैड ओ’कॉनर का सोमवार 26 जुलाई 2023 को निधन हो गया. वह 56 वर्ष की थी. आयरलैंड की इस प्रसिद्ध संगीतकार ने 2018 में इस्लाम धर्म अपना लिया था और अपना नाम बदलकर शुहादा सदाकत रख लिया था. हालांकि इसके बाद भी वह अपने कार्यक्रमों में सिनैड ओ’कॉनर के नाम से ही प्रदर्शन करती रहीं.
पश्चिमी मिडिया द्वारा सिनैड ओ’कॉनर की मृत्यु की ख़बरों में उनकी वर्तमान तस्वीरें इस्तेमाल न करते हुए पुरानी बिना हिजाब वाली तस्वीरें प्रकाशित की गई हैं. इस्लाम अपना लेने के बाद से ही ओ’कॉनर हिजाब के साथ ही अपनी सार्वजनिक उपस्थिति सुनिश्चित किया करती थीं.
पश्चिमी मिडिया की इन खबरों में उनके निधन पर उनके जीवन के बारे में बताते हुए उनके धर्म (इस्लाम) परिवर्तन जैसे बड़े और क्रांतिकारी क़दम का कहीं भी ज़िक्र नहीं किया गया है.
विश्व स्तर पर ओ’कॉनर को उनके हिट सॉन्ग ‘नथिंग कंपेयर्स टू यू’ के लिए जाना जाता है. उन्होंने अपना सिंगिंग कैरियर डबलिन की गलियों से शुरू किया था. 20 साल की उम्र के आस पास उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर ली थी और अरबों संगीत प्रेमियों के दिल जीत लिए थे. अपने पूरे कैरियर में कुल 20 एलबम उन्होंने रिलीज़ किए. संगीत की दुनिया के सबसे बड़े पुरुस्कार ग्रैमी में भी उन्हें तीन बार नामांकित किया गया था. उन्हें 1991 में रॉलिंग स्टोंस ने आर्टिस्ट ऑफ द ईयर का खिताब भी दिया था.
दुनिया भर में पाए जाने वाले सिनैड ओ’कॉनर के संगीत प्रेमी प्रशंसकों ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि मुस्लिम आइकन और गायिका सिनैड ओ’कॉनर की मृत्यु की ख़बर देने वाली पश्चिमी एजेंसियों की रिपोर्टों में सिनैड ओ’कॉनर के धर्म वाले पहलू को जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया है. ज्ञात हो कि साल 2018 में उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था.
अक्तूबर 2018 में इस्लाम क़ुबूल करने के बाद उन्होंने ट्विटर पर लिखा था, “मुस्लिम बनने पर मुझे गर्व है, यह किसी भी बुद्धिमान धर्मशास्त्री की यात्रा का स्वाभाविक निष्कर्ष है. सभी धर्मग्रंथों का अध्ययन इस्लाम की ओर ले जाता है. जो अन्य सभी धर्मग्रंथों को अप्रासंगिक बना देता है.”
आयरलैंड के ‘द लेट लेट’ नामक शो में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने इस्लाम की अपनी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया था.
उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा था, “मैंने अलग-अलग धर्मों के धर्मग्रंथों का अध्ययन करना शुरू किया, ईश्वर के बारे में ‘सत्य’ खोजने की कोशिश की… मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं किसी धर्म को अपनाऊंगी, लेकिन मैंने अपने धार्मिक अध्ययनों में इस्लाम को छोड़ दिया था, क्योंकि मेरे मन में इस्लाम के बारे में बहुत सारे पूर्वाग्रह थे.”
उन्होंने बताया था कि, “लेकिन फिर जब मैंने (इस्लाम) पढ़ना शुरू किया, और मैंने कुरान का सिर्फ़ दूसरा अध्याय ही पढ़ा था कि मुझे एहसास हुआ, ‘या खुदा! मैं तो घर आ गई हूं’, “मैं तमाम उम्र मुसलमान ही थी और मुझे इसका एहसास तक नहीं हुआ.”
सिनैड ओ’कॉनर को 20वीं सदी के उत्तरार्ध की सबसे निडर और क्रांतिकारी सेलिब्रिटी के तौर पर जाना जाता है. एक बार रिकॉर्ड एग्ज़ीक्यूटिव द्वारा बाल बड़े कर सुंदर दिखने के लिए कहे जाने पर उन्होंने अपने सर के बाल मुंडवा लिया था और ऐसे ही प्रस्तुति दी.
1989 में प्रतिष्ठित ग्रैमी सेरेमनी में भाग न लेकर इस अवार्ड की आलोचना करते हुए उन्होंने बयान दिया था कि ये बहुत कमर्शियलाइज्ड है. उन्होंने ग्रैमी अवार्ड के लिए कहा कि यह एक कलाकार की योग्यता सांसारिक सफलता से आंकने जैसा है. उन्होंने अपने कन्सर्ट्स से पहले यूएस के नेशनल एंथम को बजाने से भी मना कर दिया था.
1992 में, ओ’कॉनर ने कैथोलिक चर्च में हुई बाल यौन शोषण की घटना के विरोध में सैटरडे नाइट लाइव यूएस टेलीविजन कार्यक्रम में प्रतिरोध में पोप जॉन पॉल द्वितीय की एक तस्वीर फाड़ दी थी.
सिनैड ओ’कॉनर ज़िंदगी और समाज को प्रभावित करने वाले मामलों पर मौन रहने वाली सेलिब्रिटी नहीं थी. वो अपने शानदार संगीत के साथ-साथ अपने क्रांतिकारी कदमों के लिए भी जानी गईं. ऐसे कलाकार की मृत्यु पर उनके धर्म परिवर्तन जैसे पहलू को पश्चिमी मिडिया द्वारा ख़बरों में प्रकाशित न किया जाना मीडिया का इस्लामोफोबिया दर्शाता है.
भारत में अंग्रेज़ी की प्रसिद्ध कवयित्री रही कमला सुरैया की मृत्यु पर मुख्यधारा के मीडिया द्वारा भी इसी प्रकार का रवैया अपनाया गया था. उनका नाम पहले कमला दास था. बाद में इस्लाम कबूल करने के बाद नाम बदलकर उन्होंने कमला सुरैया रख लिया था लेकिन वामपंथी, नारीवाद वर्ग उन्हें हमेशा कमला दास कहकर ही संबोधित करता रहा.
बड़ी शख्सियतों द्वारा इस्लाम कबूल करने की घटनाओं पर पश्चिमी मीडिया, नारीवादी तबका और लिबरल कहे जाने वाला समाज आंखे मूंद लेना चाहता है, लेकिन आंखें बंद कर लेने से सत्य नहीं बदल सकता.
आयरलैंड के ‘द लेट लेट’ नामक शो में दिए एक इंटरव्यू में शीनेड ओ कोनर इस्लाम कुबूल करने के बारे में बताते हुए कहा था कि सत्य और ईश्वर की खोज के लिए उन्होंने अनेक धर्मों के धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया लेकिन इस्लाम के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के कारण उन्होंने शुरुआत में इसका ही अध्ययन नहीं किया था.
यहां उनकी इस्लाम के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित होने वाली बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए. आखिर क्यों वो इस्लाम के बारे में गलतफहमियों का शिकार हुईं, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पश्चिमी मीडिया और नारीवाद के ध्वजवाहक हमेशा इस्लाम के बारे में दुष्प्रचार करते आए हैं.
इनके द्वारा ऐसा करने की वजह शायद यह है कि पश्चिमी मीडिया, नारीवादी लेखकों व कार्यकर्ताओं और लिबरल वर्ग द्वारा हमेशा इस्लाम को महिलाओं के अधिकारों का दुश्मन कहकर प्रचारित किया जाता रहा है. इन्होंने हमेशा इस्लाम को एक रूढ़िवादी धर्म बताकर दुष्प्रचार किया है.
आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि जिस मज़हब को यह हमेशा नारी विरोधी कहकर दुष्प्रचार करते रहे हों, उसी मज़हब को पश्चिमी समाज की एक आज़ाद और हर एतबार से कामयाब महिला क़ुबूल कर लें!