-सैयद अहमद अली
नई दिल्ली | मणिपुर में, दो सबसे बड़े समूहों: बहुसंख्यक हिंदू मैतेई और अल्पसंख्यक ईसाई कुकी के बीच चल रहे संघर्ष के बीच मुस्लिम समुदाय शांतिदूत के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
मणिपुर की कुल आबादी में मैतेइ समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 53.5 प्रतिशत है जबकि 42 प्रतिशत आबादी कुकी समुदाय की है. बाकी मुस्लिम और अन्य समूह हैं. दोनों समूहों के बीच झड़पें तब शुरू हुईं जब कुकी, जो अनुसूचित जनजाति हैं और राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं, ने मणिपुर उच्च न्यायालय के मैतेइ को एसटी का दर्जा देने के आदेश का विरोध किया.
इस आदेश के बाद कुकी लोगों को लगा कि एसटी होने के कारण उन्हें मिलने वाले विशेषाधिकारों को मैतेइ समुदाय के लोग हड़प लेंगे जो बहुमत में हैं और राज्य सरकार पर नियंत्रण रखते हैं.
3 मई को जब दोनों समुदायों के बीच हिंसा शुरू हुई, तो कुकी बहुल इलाकों में रहने वाले मैतेइ, और मैतेइ बहुल इलाके में रहने वाले कुकी अपने जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए भागने लगे. इतनी नफरत बढ़ गई कि कई मामलों में तो पड़ोसी ही अपने विरोधी गुट के पड़ोसी पर हमला कर दिए.
मणिपुरी मुसलमान, जिन्हें पंगल कहा जाता है और मैतेइ समुदाय से धर्मांतरित हैं, मई 1993 में मैतेइ हिंदुओं द्वारा निशाना बनाए गए थे. रिपोर्ट के अनुसार, 1993 की हिंसा में लगभग 140 मुसलमानों के मारे जाने पुष्टि हुई थी. मुसलमानों को भी अपनी संपत्तियों का भारी नुकसान उठाना पड़ा था.
लेकिन मुसलमान यह भूल गए कि अतीत में उनके साथ क्या हुआ था और अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर मैतेइ के साथ-साथ कुकी की मदद करने के लिए आगे आए क्योंकि दोनों समूहों ने मुसलमानों को अपने विरोधियों को मदद न देने की चेतावनी दी थी.
धमकियों को नज़रअंदाज़ करते हुए, मुसलमानों ने पीड़ितों को भोजन, आश्रय, कपड़े और अन्य राहत सामग्री की पेशकश की, भले ही वे किसी भी समूह के हों. इस प्रक्रिया में, कई मुसलमानों पर हमला किया गया और उन्हें चोटें भी आईं. हालाँकि, कोई मुस्लिम मारा नहीं गया.
यहां 4 मई की एक घटना का उल्लेख ज़रूरी है, जब कुकी समुदाय के लोगों ने राज्य की राजधानी इम्फाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्र हट्टा गोलापति में आश्रय मांगा. मैतेई मुसलमानों ने 3000 से अधिक कुकी लोगों की जान बचाने के लिए, अपनी सुरक्षा को खतरे में डालते हुए, बहादुरी से अपने घरों के दरवाज़े उनकी सुरक्षा के लिए खोल दिए. इसके बाद मैतेई मुसलमानों ने उन्हें सुरक्षित सुरक्षा बलों को सौंप दिया. इस प्रयास में हट्टा गोलापति के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महिलाओं ने शरणार्थियों के लिए खाना पकाया, जबकि पुरुषों और बच्चों ने कपड़े, भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराईं.
इसी तरह, पड़ोसी चुराचांदपुर जिले में, मैतेई लोग क्वाक्टा गांव पहुंचे, जहां लगभग 20,000 मुस्लिम रहते हैं. हालाँकि स्थानीय मुसलमान आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हैं, फिर भी उन्होंने पीड़ितों को खिलाने के लिए अपने घरों और मस्जिदों से अनाज, सब्ज़ियां और अन्य आवश्यक चीजें एकत्र कीं.
क्वाक्टा मुसलमानों ने कुकी लोगों को पास के मैतेई गांवों पर हमला करने से भी रोका और मैतेई को क्वाक्टा के पास कुकी गांवों पर हमला करने से भी मना किया. हालांकि, गोलीबारी में कई क्वाक्टा मुसलमान घायल हो गए.
अपने राहत प्रयासों के दौरान, मुस्लिम नागरिक समाज और मुस्लिम छात्र संगठन आस पास के मुस्लिम परिवारों से राहत सामग्री एकत्र कर रहे हैं और इसे शरणार्थी शिविरों में वितरित कर रहे हैं.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मणिपुर के अध्यक्ष मौलाना सैयद अहमद और मणिपुर में सभी मुस्लिम नागरिक समाज के शीर्ष निकाय, ऑल मणिपुर मुस्लिम ऑर्गेनाइजेशन कोऑर्डिनेटिंग कमेटी के अध्यक्ष एसएम जलाल ने हाल ही में मीडिया को संबोधित किया. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अहमद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “हम हमेशा एक पिता और मां की संतान के रूप में भाईचारे के साथ रहे हैं.” हिंसा ने दोनों समुदायों के सह-अस्तित्व और शांति को निशाना बनाया है, जो मणिपुर राज्य की स्थापना के बाद से शांतिपूर्वक रह रहे हैं.
विशेष रूप से, कई अंतरधार्मिक समूहों ने भी “शांति और सद्भाव के लिए इंटरफेथ फोरम” के बैनर तले शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए आगे कदम बढ़ाया है. इस मंच ने शांति की अपील करते हुए बैठकें, रैलियां और प्रार्थनाएं आयोजित की हैं, जिसमें जमात-ए-इस्लामी हिंद, कैथोलिक, बैपटिस्ट, फेडरेशन ऑफ मदरसा सना माही (मैतेई धार्मिक समूह), इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस, ब्रह्मा कुमारिस और विष्णु गौरव आदि सहित विभिन्न समूहों की भागीदारी शामिल है.
संकट के इस समय में, मुस्लिम समुदाय और अंतरधार्मिक संगठनों के सामूहिक प्रयास मणिपुर में शांति और सुलह के लिए आशा की किरण बन कर उभरे हैं.
बताया जाता है कि इन हिंसा में कम से कम 150 लोगों की जान चली गई, 400 घायल हो गए और 60,000 से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए. सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस सहित अधिकारी, हिंसा शुरू होने के ढाई महीने से अधिक समय बाद भी बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.