इंडिया टुमारो
बेंगलुरु | विभिन्न क्षेत्रों के 3,200 से अधिक लोगों ने 24 जुलाई को एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया, जिसमें भारतीय राष्ट्रपति से पूर्वोत्तर भारतीय राज्य मणिपुर में जातीय संकट को समाप्त करने के लिए “तत्काल हस्तक्षेप” करने का आग्रह किया गया.
ज्ञापन का मसौदा नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स (एनएपीएम) द्वारा तैयार किया गया था, जो देश भर के सैकड़ों आंदोलनों और संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले समान विचारधारा वाले शिक्षाविदों, कलाकारों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों और संबंधित नागरिकों का एक संघ है.
आदिवासी समुदाय से आने वाले देश के पहले राष्ट्रपति को संबोधित अपील में कहा गया है, “हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप राज्य का दौरा करें और सभी पीड़ित लोगों, विशेष रूप से कुकी ज़ो महिलाओं, जिन्होंने अत्यधिक शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा का सामना किया है, को न्याय का आश्वासन दें”.
हस्ताक्षरकर्ता चाहते हैं कि राष्ट्रपति केंद्रीय गृह मंत्री और मणिपुर के मुख्यमंत्री को राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में “उनकी भारी विफलता” के लिए नैतिक और कानूनी ज़िम्मेदारी लेते हुए तुरंत इस्तीफा देने के लिए कहें, जहां 3 मई से जातीय झड़पें जारी हैं.”
यह अपील दो कुकी महिलाओं पर यौन हमले का सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आने के बाद की गई, जिन्हें सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र घुमाया गया था. 4 मई की घटना मणिपुर में इंटरनेट बंद होने के कारण 19 जुलाई को सुर्खियों में आई.
जेसुइट फादर सेड्रिक प्रकाश की अध्यक्षता में आंदोलन ने राष्ट्रपति से सभी अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और संघर्षग्रस्त राज्य में शांति और न्याय की बहाली सुनिश्चित करने का आग्रह किया.
ज्ञापन की एक प्रति भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ को भी सौंपी गई. इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सराहना की जिसके बाद सरकार ने इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है.
ज्ञापन में कहा गया है, “हम मणिपुर में शांति बहाल करने और तत्काल कार्रवाई के लिए सख्त बयान जारी करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के आभारी हैं.” अदालत ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार मणिपुर पर कार्रवाई करने में विफल रहती है तो कोर्ट स्वयं कार्रवाई करेगा.
अपील में केंद्रीय और राज्य सरकारों की भूमिका की निंदा की गई, जो न केवल तीन महीने तक जलते हुए राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने में विफल रही है, बल्कि जातीय तनाव को गहरा कर दिया है और बहुसंख्यक हिंसा को बढ़ावा दिया है, जिससे मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है.
इसने न केवल यौन हिंसा और हत्याओं के ‘वायरल’ मामले में, बल्कि सैकड़ों अन्य मामलों में, सम्बंधित अधिकारियों की उचित कानूनी प्रक्रिया और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक और समयबद्ध न्यायिक जांच का आह्वान किया है. जैसा कि मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने स्वीकार किया है.
अपील में राष्ट्रपति से सभी कमजोर वर्गों, विशेषकर आदिवासी महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया गया कि अनुसूचित जनजातियों की सूची में कोई असंवैधानिक और अनुचित परिवर्तन न हो.
राष्ट्रपति से वन कानूनों में प्रतिगामी संशोधनों को मंजूरी देने से रोकने का भी आग्रह किया गया है, जिसका पूरे भारत में वन क्षेत्र और वन-निवास समुदायों पर दूरगामी और प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
अपील में अफसोस जताया गया है कि भीड़ द्वारा दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने और उनके साथ यौन उत्पीड़न किए जाने के 60 से अधिक दिनों के बाद भी दोषी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं.
(सौजन्य से : मैटर्सइंडिया.कॉम)