https://www.xxzza1.com
Monday, May 20, 2024
Home देश राज्य के अन्याय को याद करने के लिए उमर ख़ालिद को याद...

राज्य के अन्याय को याद करने के लिए उमर ख़ालिद को याद करें : रवीश कुमार

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | जाने-माने पत्रकार रवीश कुमार ने दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में बोलते हुए कहा कि, 1000 दिनों से जेल में बंद जेएनयू के पूर्व शोध छात्र उमर ख़ालिद को भुलाया नहीं जाना चाहिए और राज्य के अन्याय को याद करने के लिए उन्हें याद किया जाना चाहिए.

रवीश, शुक्रवार को यहां प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में दिल्ली दंगों की साज़िश के मामले में उमर ख़ालिद के 1000 दिनों की जेल पर आयोजित कार्यक्रम ‘डेमोक्रेसी, डिसेंट एंड सेंसरशिप’ नामक कार्यक्रम में बोल रहे थे. शरजील इमाम, खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा सहित कई अन्य लोग भी इसी मामले में लंबे समय से जेल में बंद हैं.

यह कार्यक्रम पहले गांधी पीस फाउंडेशन में आयोजित होने वाला था. लेकिन फाउंडेशन ने अंतिम समय में बुकिंग रद्द कर दी और कार्यक्रम को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में स्थानांतरित कर दिया गया.

रवीश ने कहा कि, दिल्ली में इस तरह के कार्यक्रम के लिए जगह कम हो गई है. उन्होंने कहा, “लेकिन यह अच्छा है कि हमारे पास प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया जैसी जगह है जहाँ लोग अपनी आवाज़ उठा सकते हैं.”

यह कहते हुए कि उमर ख़ालिद 1000 दिनों से जेल में है, उन्होंने कहा, “हमने न्यायाधीशों के बयान पढ़े कि ज़मानत एक नियम है और जेल अपवाद है लेकिन इसे उमर ख़ालिद के मामले में लागू नहीं किया गया.”

उन्होंने कहा कि, जानबूझकर यह कोशिश की गई कि उमर ख़ालिद की लड़ाई को अदृश्य कर दिया जाए.

रवीश ने आगे कहा, “लेकिन लोगों ने उनके लिए आवाज़ उठाई तो साबित हो गया कि वह अकेले नहीं हैं. जेल के अंदर उसका संघर्ष उसका है लेकिन बाहर उसकी यातना महसूस की जा रही है.”

उन्होंने बताया कि पिछले नौ वर्षों के दौरान हिंसा का उपयोग करने की राज्य की नीति बदल गई है. मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पत्रकार ने कहा, “अब राज्य मानसिक हिंसा में शामिल होने के लिए अपनी पार्टी, गोदी मीडिया और आईटी सेल का उपयोग करता है. राज्य आपका नाम खराब करता है और यह संगठित बदनामी उमर ख़ालिद के साथ शुरू हुई.”

रवीश ने कहा कि, “जब उमर अनजाने में टीवी चैनलों पर गए तो उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें वहां अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा. लेकिन तब तक आने वाले कई सालों तक टीवी चैनलों ने अपना रुख बदल लिया था. गोदी मीडिया, राजनीतिक दल और आईटी सेल ने पीएच.डी. छात्र उमर खालिद को देशद्रोही बताया. वह समाज की नज़रों में कमज़ोर था. वह आपकी और हमारी तरह एक छात्र था, जिसे उस व्यवस्था की जानकारी नहीं थी, जिसने हमला करने के लिए सभी हथियारों को इकट्ठा कर लिया है.”

उन्होंने कहा कि, राज्य की हिंसा में दूसरा बदलाव भी हम सभी को देखना है. उन्होंने विस्तार से बताया कि, “पहले राज्य कानून की आड़ में हिंसा करता था, लेकिन अब वह हिंसा का इस्तेमाल करने के लिए कानून बना रहा है, ताकि वह खुलेआम हिंसा कर सके. हम सभी इस बदलाव को देख रहे हैं और यह केवल उमर खालिद ही नहीं बल्कि सोमा सेन भी हैं जो भीमा कोरेगांव मामले में पांच साल से विचाराधीन हैं.”

ज़मानत और जेल के नियमों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “जब मैंने उच्चस्तरीय जजों से विचाराधीन और ज़मानत के बारे में सुना तो मुझे एहसास हुआ कि शायद ये कुछ मामले उन्हें पता नहीं हैं या उन्होंने भी अपने आराम के लिए इन मामलों को सुनना बंद कर दिया है. ऐसा लगता है कि उन्होंने इन मामलों को छोड़कर सभी मामलों के बारे में बात करने का फैसला किया है.”

उन्होंने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के संबंध में टिप्पणी की है, और ये मामले सभी जानते हैं. हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि एक दिन न्याय व्यवस्था की अंतरात्मा जागे और यह महसूस करे कि कानून का हाथ लंबा नहीं बल्कि रंगा हुआ है. न्यायिक प्रणाली इसे देखेगी और महसूस करेगी कि क्या चल रहा है.”

रवीश कुमार ने कहा, “हमने यह भी देखा है कि उमर ख़ालिद के मामले को मीडिया स्पेस से थोड़ा पीछे धकेल दिया जाता है और भूलने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए थोड़ा-थोड़ा करके किनारे कर दिया जाता है. मैं हमेशा सोचता हूं कि जो लोग आवाज उठाते थे, वे उससे थक गए हैं या उस प्रक्रिया का हिस्सा बन गए हैं, जिसने यह तय किया है कि जब किसी को गंभीर आरोपों में जेल भेजा जाएगा, तो उसे भूलना होगा. यह प्रक्रिया चाहती है कि ऐसे लोगों को मझधार में छोड़ दिया जाए.”

उन्होंने कहा कि, उमर खालिद की जो तस्वीरें या वीडियो सामने आती हैं, उनमें उन्हें एक मुस्कुराता हुआ लड़का नज़र आता है. लेकिन उस मुस्कान ने मुझे उदास किया है. उन्होंने आगे कहा, “वह मुस्कान बताती है कि आप एक सामान्य जीवन जी रहे हैं. लेकिन ऐसे व्यक्तियों को याद रखने का दायित्व पूरा नहीं किया. उमर खालिद का विषय एक ऐसा मुद्दा बन गया जिस पर लिखना या बोलना राज्य को घेरने जैसा है.”

रवीश ने कहा कि सरकार कई तरह के सेंसर लगा रही है, फिर भी लोग कैमरे हाथ में लिए खड़े हैं. उन्होंने कहा कि यह एक बड़ी बात है.

रवीश ने बेतवा शर्मा की दिल्ली दंगों की रिपोर्ट पर चर्चा की. उन्होंने कहा, “बेतवा ने अदालत में दिल्ली पुलिस की दलीलों में विसंगतियों को उजागर किया है. हम सभी को रिपोर्ट पढ़नी चाहिए और पत्रकारिता सीखनी चाहिए. रिपोर्ट में सच्चाई बताने के लिए बेतवा और टीम ने सैकड़ों पेज खंगाले. साथ ही उमर खालिद के अधिवक्ताओं ने उसे न्याय के दरवाज़े तक ले जाने के लिए सैकड़ों पन्नों की कानून की किताबों को खंगाला होगा. लेकिन ऐसा लगता है कि न्याय का द्वार दूर कर दिया गया है, शायद उमर खालिद या सोमा सेन के लिए विशेष रूप से. यह स्टैन स्वामी के लिए स्थायी रूप से बंद कर दिया गया था, जो संघर्ष करते हुए मर गए.”

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि उमर को याद करने का मतलब उन सभी को याद करना है, जिन्हें भीमा कोरेगांव मामले में सलाखों के पीछे डाल दिया गया था. उन्होंने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि रोना विल्सन और सोमा सेन को याद नहीं किया जाता है. उन्होंने आगे कहा, “उमर खालिद को याद करके हम विल्सन और सोमा को याद करेंगे.”

रवीश ने कहा, “प्रेस क्लब की यह बैठक आश्वस्त करती है कि राज्य में बेशक बहुत ताकत है लेकिन आपमें भी संकल्प कम नहीं है. जैसा कि आप यहां उमर खालिद को याद करने के लिए हैं, आपने यह सुनिश्चित किया कि उसकी 1000 दिनों की कैद पर किसी का ध्यान नहीं गया, ऐसा नहीं है. जहां कहीं भी अन्याय होगा, हम दर्ज करेंगे. हम उनके लिए आवाज़ उठाएंगे क्योंकि हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि एक दिन किसी की अंतरात्मा जागेगी, जैसे वह जागती है.”

उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस में अच्छे लोग हैं जो उनसे किए जा रहे अन्याय को महसूस करेंगे. उन्होंने कहा, “जब वे अन्याय के दौर का सामना करेंगे तो उनकी रातों की नींद हराम हो जाएगी. वे भी इंसान हैं; वे अपने द्वारा किए गए अन्याय को याद करेंगे”

रवीश ने दोहराया, “न्यायाधीशों द्वारा चिंता की आवाज़ मुझे खोखली लगती है क्योंकि उमर खालिद को जमानत और न्याय नहीं देने के लिए चुनिंदा रूप से उठाया जाता है.”

मीडिया पर जमकर बरसे रवीश ने कहा, गोदी मीडिया के एंकर नफरत की मानसिकता फैलाते हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. ऐसी गोदी मीडिया द्वारा बनाई गई धारणा के साथ, एक व्यक्ति को देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है और फिर राज्य और न्याय व्यवस्था उसके प्रति इतनी क्रूर हो जाती है और कोई दया नहीं करती है.

हाल ही में बुलंदशहर में मूर्तियों को हुए नुकसान की एक घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, एंकर दोषियों की कौम को पहले से ही भांप लेते हैं. उन्होंने कहा, “वे अब रिपोर्ट नहीं करते, वे कल्पना करते हैं. इसी तरह उन्होंने उमर खालिद के बारे में कल्पना की और उसे सच मान लिया. बुलंदशहर पुलिस का धन्यवाद कि उन्होंने मामले की जांच की और दोषियों को गिरफ्तार किया. चूंकि दोषियों का धर्म एंकर की कल्पना का नहीं था, इसलिए इसे दबा दिया गया. अन्यथा यह एक बड़ा मुद्दा होता.”

उन्होंने कहा कि, “उमर खालिद एक बड़ी साज़िश का निशाना था, जिसके तहत सिस्टम ने यह देखने के लिए अपने पहले मामले का परीक्षण किया कि क्या इस तरह से पहचाने गए एक निर्दोष छात्र को राष्ट्र-विरोधी घोषित करके देश के लिए खतरा बताया जा सकता है.” उन्होंने आगे कहा, “और यह प्रयोग उमर खालिद या भीमा कोरेगांव मामले में सफल होता दिख रहा है.”

उन्होंने दावा किया कि सरकार ने जनभावनाओं की परवाह करना बंद कर दिया है. उन्होंने कहा, “स्टेन स्वामी के निधन के बाद भी इसमें कुछ नहीं बदला. इस सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता, यही इस सरकार की पहचान है. उन टीवी एंकरों का कुछ नहीं होता जो दिन रात नफरत फैलाते हैं. लेकिन एक छात्र को दंगे के मामले में जेल भेज दिया गया है.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “हमें इस अंतर को पहचानना होगा कि कुछ लोगों को नफरत फैलाने, गोली मारो… जैसे नारे लगाने की आजादी मिली है, लेकिन शांति की अपील करने वाले को जेल में बंद कर दिया जाता है.”

उन्होंने कहा, “जेल में ये 1000 दिन न केवल उमर खालिद के हैं बल्कि भारत के नागरिक समाज और न्यायिक प्रणाली के लिए बहुत दुखद और परेशान करने वाली बात है.”

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ें: Remember Umar Khalid For Injustices Of the State: Ravish Kumar

- Advertisement -
- Advertisement -

Stay Connected

16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe

Must Read

ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को मोदी सरकार के इशारे पर काम करने वाली कठपुतली करार दिया

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान एक चुनावी रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री...
- Advertisement -

हलद्वानी हिंसा: आरोपियों पर लगा UAPA, क़ौमी एकता मंच ने की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग

-एस.एम.ए. काज़मी देहरादून | उत्तराखंड पुलिस ने 8 फरवरी, 2024 को हुई हल्द्वानी हिंसा मामले में सात महिलाओं सहित...

उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों- सरकारी कर्मचारियों का आरोप, “वोट डालने से किया गया वंचित”

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो लखनऊ | उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में सरकारी कर्मचारियों में से ख़ासकर पुलिस...

कांग्रेस का पीएम से सवाल, 20 हज़ार करोड़ खर्च करने के बावजूद गंगा और मैली क्यों हो गई ?

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी की लोकसभा सीट बनारस के मुद्दों को लेकर सवाल...

Related News

ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को मोदी सरकार के इशारे पर काम करने वाली कठपुतली करार दिया

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान एक चुनावी रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री...

हलद्वानी हिंसा: आरोपियों पर लगा UAPA, क़ौमी एकता मंच ने की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग

-एस.एम.ए. काज़मी देहरादून | उत्तराखंड पुलिस ने 8 फरवरी, 2024 को हुई हल्द्वानी हिंसा मामले में सात महिलाओं सहित...

उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों- सरकारी कर्मचारियों का आरोप, “वोट डालने से किया गया वंचित”

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो लखनऊ | उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में सरकारी कर्मचारियों में से ख़ासकर पुलिस...

कांग्रेस का पीएम से सवाल, 20 हज़ार करोड़ खर्च करने के बावजूद गंगा और मैली क्यों हो गई ?

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी की लोकसभा सीट बनारस के मुद्दों को लेकर सवाल...

MDH मसाले अमेरिका में मानकों पर खरे नहीं उतरे, यूएस खाद्य विभाग ने लगाई रोक, जांच शुरू

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | हाल ही में अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अमेरिकी खाद्य विभाग "फूड एंड ड्रग...
- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here