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Thursday, May 16, 2024
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देश को उबलने देने की अनुमति नहीं दी जा सकती: शहरों का नाम बदलने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | “आप देश को उबलते हुए रखना चाहते हैं। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। आपको या इस अदालत को तबाही का साधन नहीं बनना चाहिए। यहां समाज के सभी वर्गों को एक साथ रहना होगा।” यह महत्वपूर्ण बात सुप्रीम कोर्ट ने “नामकरण आयोग” के गठन करने के लिए मांग करने वाली एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है।

ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के मूल नामों का पता लगाने और दोबारा वही नाम रखने के लिए “नामकरण आयोग” के गठन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका को याचिकाकर्ता अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था और सुप्रीम कोर्ट से इसके लिए “नामकरण आयोग”के गठन करने की मांग की थी।

इस याचिका की सुप्रीम कोर्ट में 27 फरवरी 2023 को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने इसकी सुनवाई की।सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, “यह सत्य है कि हमारे देश पर विदेशी शासकों ने आक्रमण किया और शासन भी किया। लेकिन अतीत को वर्तमान और भविष्य को इतना परेशान नहीं करने दिया जा सकता कि भारत अतीत का बंदी बनकर रह जाए।”

सुप्रीम कोर्ट की पीठ के जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने विदेशी आक्रांताओं की ओर से बदले गए प्राचीन, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के मूल नामों का पता लगाने व दोबारा वही नाम रखने के लिए “नामकरण आयोग” के गठन की मांग किए जाने वाली याचिका की सुनवाई की। पीठ ने इसकी सुनवाई करते हुए इस पर कड़ी टिप्पणी की।

पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि, “याचिका के ज़रिए आप देश को उबलते हुए रखना चाहते हैं। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। आपको या इस अदालत को तबाही का साधन नहीं बनना चाहिए। यहां समाज के सभी वर्गों को एक साथ रहना होगा।”

पीठ ने इस कड़ी टिप्पणी के बाद इस जनहित याचिका को खारिज कर दिया। इस पर पीठ के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता अश्वनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी को वापस लेने और अपनी बात गृह मंत्रालय के सामने रखने की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अनुमति देने से इंकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ यहीं पर ही नहीं रुकी। पीठ ने कहा कि,”इस तथ्य के बाद कि हमारे देश पर विदेशी आक्रांताओं ने शासन किया, हम इतिहास के हिस्सों को अपने हिसाब से नहीं चुन सकते।”

पीठ ने कहा कि, “आप गड़े मुर्दे उखाड़ कर उन्हें वर्तमान पीढ़ी के सामने रखना चाहते हैं। जो दफन है, उसे दफन ही रहने दें। हम नहीं चाहते कि वे मुद्दे जीवित होकर देश के नागरिकों के सौहार्द को खराब करें।”

यही नहीं इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने संविधान की प्रस्तावना का भी जिक्र किया। पीठ ने कहा कि, “भारत कानून के शासन, धर्मनिरपेक्षता और संविधान से बंधा हुआ है, जिसका अनुच्छेद 14 राष्ट्र के व्यवहार में समानता और निष्पक्षता की गारंटी देता है। हमारे संस्थापकों ने भारत को ऐसा गणराज्य माना है, जो केवल निर्वाचित राष्ट्रपति तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। यह एक लोकतंत्र है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि देश को आगे बढ़ना चाहिए.”

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्राचीन, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के मूल नामों का पता लगाने और दोबारा वही नाम रखने के लिए “नामकरण आयोग” बनाने की मांग करने वाली जनहित याचिका खारिज कर दिए जाने से देश में अनावश्यक होने वाला विवाद अब नहीं होगा। इससे अब देश में सौहार्द को भी कोई ख़तरा नहीं पैदा होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की याचिका खारिज कर और महत्वपूर्ण फैसला देकर देश के शांतिपूर्ण माहौल को खराब करने वाले लोगों के मंसूबे पर पानी फेर दिया है।

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