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Thursday, May 16, 2024
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ईसाइयों के खिलाफ भारत में बढ़ते ‘हेट क्राइम’ को लेकर मानवाधिकार संगठनों ने जताई चिंता

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | देश भर में हो रही ईसाइयों पर अत्याचार की घटनाओं के खिलाफ हाल ही में 15 हज़ार से भी अधिक लोगों ने दिल्ली में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया.

ईसाई धर्म से जुड़ी पारंपरिक सफेद पोशाक पहने और काली पट्टी बांधे, प्रदर्शनकारियों में 80 से अधिक चर्चों के सदस्य शामिल थे. इसमें युवा, चर्च के पादरी, संगीतकार, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता, शिक्षाविद् और अन्य पेशों से ताल्लुक रखने वाले भी शामिल हुए.

विरोध में मध्य भारत के छोटा-नागपुर क्षेत्र, पंजाब, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु और उत्तर पूर्व राज्यों के विभिन्न जातीय ईसाई समूहों ने कई अलग-अलग भाषाओं और संगीत शैलियों में पूजा और प्रोत्साहन गीत भी प्रस्तुत किए.

ऐतिहासिक रूप से मिशनरियों द्वारा इन विभिन्न आदिवासी व जनजातीय क्षेत्रों में लाई गई शिक्षा के कारण कई क्षेत्रीय भाषाएँ बची हैं और मज़बूत हुई हैं.

विरोध प्रदर्शन के दौरान छत्तीसगढ़ के एक कार्यकर्ता, भूपेंद्र कोरा ने नारायणपुर क्षेत्र के ईसाई आदिवासियों पर हुए अत्याचारों का प्रत्यक्ष विवरण दिया.

दिसंबर 2022 को, एक हज़ार से अधिक ईसाई आदिवासियों को उनके पुश्तैनी घरों और गांवों से खदेड़ कर भगा दिया गया था. हमलावरों द्वारा उन्हें धमकी दी गई थी कि या तो वे “घर वापसी” करें, गाँव छोड़ दें, या मारे जाएँ. जिन लोगों ने हमलावरों की बातें मानने से इनकार किया, उन पर हमला किया गया, उनके घरों और पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया गया, उनकी फसल जला दी गई, और उनके पशुओं को मार कर खा लिया गया.

पीड़ितों के पास घर आने के लिए कुछ भी नहीं था. अधिकारियों की संवेदनहीनता, रिश्तेदारों और लोगों से दुश्मनी और राहत में देरी जैसे कारणों से इन आदिवासी ईसाइयों के पास जंगल में छिपकर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

27 दिसंबर 2022 की सुबह, तीन आदिवासी ईसाई महिलाओं को एक गाँव की बैठक में “बुलाया” गया और उन्हें उनकी आस्था छोड़ने के लिए कहा गया. उनके मना करने पर, उन्हें सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र कर पीटा गया. स्थानीय अधिकारियों और राष्ट्रीय महिला आयोग ने इसकी शिकायत दर्ज कराई है.

2 जनवरी को, एक भीड़ ने ज़िले के एडका गांव में एक कैथोलिक चर्च, ईसा मसीह की मूर्ति और मदर मैरी की कुटी को तोड़ दिया. जिस समय अपराधियों ने चर्च पर हमला किया उस समय उसी परिसर में एक स्कूल भी चल रहा था.

भले ही उच्च न्यायालय ने 4 और 11 जनवरी 2023 को सरकार को इन विस्थापित लोगों को क्षेत्र में स्थापित सरकारी शिविरों में राहत प्रदान करने का निर्देश दिया, लेकिन कुछ दिनों के बाद अपने गांव वापस भेज दिए जाने के डर से अधिकांश आदिवासियों ने छिपे रहना ही पसंद किया. कई लोगों का कहना है कि वे अपनी पैतृक स्थान और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लौटना चाहते हैं लेकिन अपराधियों के खिलाफ पुलिस सुरक्षा और कार्रवाई की मांग करते हैं.

कोरा ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे ईसाईयों के बुनियादी मानवाधिकारों और आस्था की पवित्रता को राज्य में कुचला जाता है – कभी-कभी भोजन और पानी जैसी मूलभूत ज़रूरतों को काटकर और कई बार शोकग्रस्त परिवारों को अपनी भूमि पर अपने दिवंगतों को दफनाने की अनुमति तक नहीं दी जाती है.

कई फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट्स ने राज्यों में इन मानवाधिकारों के उल्लंघन पर प्रकाश डाला है.

धार्मिक हिंसा के शिकार लोगों के साथ बड़े पैमाने पर काम करने वाले उत्तरप्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता पेटसी डेविड, और फतेहपुर (जहां कथित जबरन धर्मांतरण का मामला पिछले साल से चल रहा है) के ईसाई शिवदेश ने उत्तर प्रदेश राज्य में रहने वाले ईसाई के रुप में अपने अनुभवों के बारे में बताया. इस राज्य में, इसके 2021 में अधिनियमित धर्मांतरण विरोधी कानून को अक्सर अल्पसंख्यकों के खिलाफ लागू किया जाता है और यहां से उत्पीड़न की अधिकतम घटनाएं रिपोर्ट की जाती हैं. यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) की रिपोर्ट में हाल ही में दावा किया गया था कि 2022 की कुल 598 घटनाओं में से 186 यहां से रिपोर्ट की गई थीं. इसी रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि राष्ट्रव्यापी धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत ईसाइयों के खिलाफ दर्ज 74 मामलों में से 56 उत्तर प्रदेश से आए हैं – यानी चार में से तीन मामले.

शिवदेश ने गुरुवार (14 अप्रैल 2022) की शाम को भीड़ द्वारा किए गए हमले के दुःस्वप्न को याद किया और बताया कि कैसे वहां के समुदाय पर जबरन धर्मांतरण का गलत आरोप लगाया गया. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे उनके परिवार को अधिकारियों की असंवेदनशीलता का सामना करना पड़ा, यहां तक कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में 25 दिन जेल में बिताने पड़े थे. पैट्सी डेविड ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि वो मूल एफ आई आर, जिसके तहत फतेहपुर के 50 से अधिक ईसाइयों (एक 11 वर्षीय लड़की सहित) को गिरफ्तार किया गया था और पुलिस द्वारा परेशान किया गया था, उस को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अनुचित घोषित किया गया है, क्योंकि इसे एक पीड़ित व्यक्ति द्वारा दायर नहीं किया गया है, बल्कि एक स्थानीय विजिलेंट ग्रुप के सदस्य द्वारा लगाया गया था.

डेविड ने एक और विचित्र घटना पर भी प्रकाश डाला जब 2022 में एक ऐसे ईसाई के खिलाफ दर्ज कर गई थी जिसकी दो साल पहले मृत्यु हो गई थी, ये घटना जांच प्रक्रियाओं (या इसकी कमी) और स्थानीय अधिकारियों की योग्यता पर भी सवाल खड़े करती है. डेविड ने दावा किया कि साल 2023 के पहले 50 दिनों के अंदर ही, उत्तर प्रदेश में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की ऐसी 40 से अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं.

2017 के बाद से, आठ राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को अधिनियमित या फिर से लागू किया है, जिनका अक्सर धार्मिक कट्टरपंथियों और हिंदुत्व समर्थकों द्वारा अल्पसंख्यकों को उनके धर्म से नफरत के कारण निशाना बनाने के लिए दुरुपयोग किया जाता है.राष्ट्रीय स्तर पर “जबरन धर्मांतरण” पर अंकुश लगाने के उपायों की मांग करते हुए तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका फिर से दायर की गई है. यह याचिका निराधार आरोपों और असत्यापित सोशल मीडिया “निष्कर्षों” पर आधारित है और कई अल्पसंख्यक समूहों ने इसके खिलाफ अभियोग आवेदन दायर किए हैं. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को झूठे दावों वाला एक अतिरिक्त हलफनामा वापस लेने का निर्देश दिया था. न्यायालय इस याचिका के साथ विभिन्न उच्च न्यायालयों में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की सभी चुनौतियों को टैग करने पर भी विचार कर रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में भारत संघ बनाम तहसीन पूनावाला को एक उदाहरण के रुप में प्रस्तुत किया गया, इस याचिका में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा पर भी प्रकाश डाला गया है, और कोर्ट से हिंसा को कम करने के निर्देश देने के लिए कहा गया है. कोर्ट ने केंद्र को याचिका में उल्लिखित शीर्ष आठ राज्यों में घटनाओं की सूची को सत्यापित करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.

लगभग दो दशकों से एक और मामले को सुना जा रहा है, यह मामला 1950 के उस भेदभावपूर्ण राष्ट्रपति आदेश को एक चुनौती है, जो ईसाई और मुस्लिम धर्मों के दलित सदस्यों की अनदेखी करते हुए केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलितों को लाभ और सुरक्षा प्रदान करता है. वर्षों से स्थापित कई समितियों ने व्यापक रूप से निष्कर्ष निकाला है कि सभी दलित समूहों के साथ होने वाले भेदभाव और अत्याचार कमोबेश समान हैं, सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक इस मामले पर फैसला नहीं सुनाया है.

एक मानवाधिकार समूह, यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ), ने 2015 में बताया कि उसकी हेल्पलाइन पर केवल 142 सत्यापित घटनाओं को रिपोर्ट किया गया था. इसके विपरीत, 2021 में 505 घटनाएं दर्ज की गईं. और 2022 में यह बढ़कर 598 हो गईं.

यूसीएफ ने बताया कि, “जनवरी में यह संख्या पहले ही 57 तक पहुंच चुकी है, – लगभग दो घटनाएं प्रतिदिन औसतन के रुप में दर्ज की गईं. समुदाय के खिलाफ बढ़ती नफरत और हिंसा के कारण उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक असुरक्षित राज्य बने हुए हैं. एनआरआई डॉक्यूमेंटर्स द्वारा सूचीबद्ध की गई 1200 से अधिक घटनाओं के साथ कई अन्य समूहों, जैसे कि इवेंजेलिकल फ़ेलोशिप ऑफ़ इंडिया, और यूएस-आधारित FIACONA द्वारा दर्ज की घटनाओं का आंकड़ा काफ़ी ज़्यादा है.”

वरिष्ठ लेखक, संगठन के आधिकारिक प्रवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ जॉन दयाल ने प्रदर्शन में कहा कि “विरोध प्रदर्शन सिर्फ विरोध जतलाने के लिए नहीं है, बल्कि यह मुख्य रूप से अधिकारियों, सरकार, सर्वोच्च न्यायालयों और स्थानीय अधिकारियों का ध्यान राष्ट्रीय स्तर पर ईसाइयों के खिलाफ हिंसा में हो रही तेज़ वृद्धि की ओर दिलाने के लिए है.

उन्होंने कहा कि जहां समुदाय का देश के नेतृत्व और कानूनी व्यवस्था में विश्वास बना हुआ है, वहीं यह साथी नागरिकों से उनके साथ सहानुभूति और एकजुटता के साथ खड़े होने की हार्दिक और गंभीर अपील करता है.

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