रिपोर्टर – इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने 24 फरवरी को अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे पर मीडिया को रिपोर्टिंग से रोकने का अनुरोध करने वाली याचिका को खारिज कर दिया. यह याचिका अधिवक्ता मोहन लाल शर्मा द्वारा दायर की गई थी.
मुख्य न्यायधीश ने याचिका की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि, “मीडिया के बारे में किसी भी प्रकार का आदेश पारित करने का कोई सवाल ही नहीं है, मीडिया पर रोक का सवाल ही नहीं है. हम अपना आदेश पारित करेंगे, हम वही करेंगे जो हमें करना है.”
यह दूसरा मौक़ा है जब सर्वोच्च न्यायालय ने गौतम अड़ानी से जुड़े मामले में बहुत साफ़ गोई से अपना फ़ैसला दिया है.
इससे पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने निवेशकों की सुरक्षा के मामले को ध्यान में रखते हुए एक विशेष कमेटी का गठन किया था. कमेटी के सदस्यों के नामों को लेकर सरकार की माँग थी कि उन्हें कमेटी के सदस्यों के संभावित नामों के बारे में सुझाव सील बंद लिफ़ाफ़े के माध्यम से देने का अधिकार दिया जाए.
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते इसे हुए ख़ारिज कर दिया था की इससे “पारदर्शिता” ना होने का डर है.
अदालत ने कहा था कि, “हम आपके सुझाव सील बंद सुझावों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं. यदि हम आपके सुझावों को सीलबंद लिफाफे में स्वीकार करते हैं, तो दूसरा पक्ष (याचिकाकर्ता) उन्हें देख नहीं पाएगा. हम पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहते हैं.”
उन्होंने आगे कहा कि, “इससे ऐसा लग सकता है कि यह सरकार द्वारा बनाई गई समिति है. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है, भले ही हमने आपके सुझावों को स्वीकार नहीं किया हो. हम निवेशकों की सुरक्षा के हित में पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहते हैं”.
हालांकि, अदालत की टिप्पणी के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानते हुए कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी को स्वीकार कर लिया.
महाधिवक्ता तुषार ममेहता ने कहा कि, “सरकार को विशेषज्ञों की समिति के गठन पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन समिति का कार्यक्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है इससे अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि बाज़ार नियामक इससे निपटने के लिए सक्षम नहीं है.”