-सैयद ख़लीक अहमद
नई दिल्ली | असम में हाल ही में बाल विवाह को लेकर हुई कार्रवाई विवादों में घिर गई है. असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सर्मा ने कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों की गिरफ्तारी के लिए एक्शन लेकर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं है. इस पूरे विवादित घटनाक्रम में गिरफ्तार किए गए लोगों में वे लोग भी शामिल हैं जिनकी पत्नियां शादी के बाद 18 साल या उससे अधिक उम्र की हो चुकी हैं. भारत में पुरुषों के लिए विवाह की कानूनी उम्र 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष है और इसका उल्लंघन दंडनीय अपराध है.
बाल विवाह के विरुद्ध कानून के बावजूद बाल विवाह पूरे भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों द्वारा अमल में लाया जाता रहा है, खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीब लोगों के बीच यह प्रचलित रहा है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ऐसी शादियों की संख्या बहुत कम नहीं है. कुछ राज्यों में, बाल विवाह वार्षिक विवाहों के 40 प्रतिशत से अधिक हैं.
असम के अलावा बिहार और पश्चिम बंगाल बाल विवाह की उच्चतम दर वाले राज्यों में से हैं, क्योंकि इन राज्यों की एक बड़ी आबादी गरीब है.
हालांकि, लगभग एक दशक पहले कांग्रेस छोड़ने के बाद कट्टर हिंदुत्ववादी नेता बने हेमंत सरमा ने राज्य में बाल विवाह के सम्बन्ध में ये छवि स्थापित करने की कोशिश की है कि केवल मुस्लिम पुरुषों ने कम उम्र की लड़कियों से शादी की है और विवाह कानूनों का उल्लंघन किया है.
कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों को गिरफ्तार करने के लिए अभियान चलाने वाली असम पुलिस ने मुख्यमंत्री के कथन को साबित करने के लिए धर्म के आधार पर गिरफ्तारी के आंकड़े जारी नहीं किए है.
लेकिन मुख्यधारा के मीडिया द्वारा प्रकाशित अधिकांश तस्वीरों में मुस्लिम पुरुषों को ही पुलिस द्वारा गिरफ्तार करते हुए दिखाया गया है. क्या इससे यह पता नहीं चलता है कि सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय ही बाल विवाह का दोषी है.
हालांकि, स्वतंत्र सूत्रों का कहना है कि मौजूदा विवाह कानूनों के तहत लागू उम्र की सीमा का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों में से लगभग 45 प्रतिशत हिंदू हैं. लेकिन जिस तरह से भाजपा के नेताओं, खासकर मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने बयान दिया है, वह मुसलमानों को बदनाम करने के इरादे से दिया गया बयान प्रतीत होता है.
लेकिन मुसलमानों में बाल विवाह के मामलों और उन्हें इस्लाम धर्म से जोड़ने के बारे में सरमा या किसी अन्य राजनेता द्वारा किए जा रहे दावे हकीकत को झुठलाते हैं.
लेकिन 2019-21 के दौरान के नेशनल हेल्थ एंड फैमिली सर्वे (NHFS) द्वारा दिए गए बाल विवाह के प्रतिशत के बारे में दिए गए डेटा से हेमंत बिस्वा सरमा के दावों की पोल खुल जाती है, ये डेटा भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं.
नेशनल हेल्थ एंड फैमिली सर्वे (NHFS) ने धर्म के आधार पर आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं. हालांकि, अध्ययन के अनुसार, देश में कुल विवाहों में से 23 प्रतिशत से अधिक में नव-विवाहित स्त्रियां 18 वर्ष से कम उम्र की थीं.
इसके अलावा, अध्ययन से पता चलता है कि बाल विवाह केवल महिलाओं के ही नहीं होते हैं. वे कमोबेश पुरुषों में भी प्रचलित हैं. सर्वेक्षण के अनुसार, स्टडी पीरियड के दौरान पाया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर पुरुषों के बाल विवाह का प्रतिशत 17 प्रतिशत से ऊपर है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा कानून के अनुसार देश भर में एक बड़ी संख्या में विवाह के लिए न्यूनतम आयु के महिलाओं और पुरुषों का विवाह हो चुका था.
जहां इस तरह के विवाहों में 27 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में थे, वहीं शहरी क्षेत्रों में 14.7 प्रतिशत महिला बाल विवाह हुए, जहां विवाह की उम्र के बारे में जागरूकता अधिक होती है.
नेशनल हेल्थ एंड फैमिली सर्वे (NHFS) 2019-20 के सर्वेक्षण के अनुसार पुरुषों के मामले में कम उम्र में विवाह का राष्ट्रीय औसत 17.7 प्रतिशत था, ग्रामीण क्षेत्रों में इसका 21 प्रतिशत और शहरी केंद्रों में 11 प्रतिशत से अधिक था. भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि देश भर में कम उम्र में पुरुषों की शादी के मामले भी अच्छी खासी संख्या में देखने को मिलते हैं.
हालांकि सर्वेक्षण में बाल विवाह का कारण नहीं बताया गया है, लेकिन स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों और लड़कों के कम उम्र में विवाह के पीछे मुख्य कारण वर वधु और उनके माता पिता की खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति और शिक्षा की कमी है. पुरुषों के बाल विवाह मामले में कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों से है.
हालांकि, राज्यों के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. उदाहरण के लिए, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों – जम्मू और कश्मीर, और लक्षद्वीप – में देश के अन्य राज्यों की तुलना में महिलाओं और पुरुषों के बीच बाल विवाह का प्रतिशत सबसे कम है.
यहां तक कि सिख बहुल पंजाब में भी महिलाओं और पुरुषों, दोनों के मामले में कम उम्र में विवाह के मामले बहुत कम हैं.
इसी तरह, पूर्वोत्तर में ईसाई बहुसंख्यक नागालैंड और मिजोरम ऐसे राज्य हैं जहां पुरुषों और महिलाओं के बीच बाल विवाह का प्रतिशत बहुत कम है.
इससे क्या पता चलता है? स्टडी दर्शाती है कि बाल विवाह में धर्म की कोई भूमिका नहीं है. विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए अधिक सीटें हासिल करने के लिए उत्तर-पूर्वी राज्यों में राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए सरमा चाहते हैं कि उनके मतदाता यह मानें कि इस्लाम धर्म बाल विवाह का कारण है. यदि इस्लाम धर्म की वजह से ऐसा है तो बाल विवाह के आंकड़े केंद्र शासित केंद्र शासित प्रदेशों कश्मीर और लक्षद्वीप में बहुत अधिक होने चाहिए थे.
नैशनल हैल्थ एंड फैमिली सर्वे के डेटा असम के मुख्यमंत्री की थीसिस को खारिज करते हैं कि केवल मुसलमान ही बाल विवाह के दोषी हैं. अप्रामाणिक जानकारी के आधार पर, उन्होंने विवाह कानूनों का उल्लंघन करने वालों की गिरफ्तारी करवाना शुरु कर दिया.
उनकी इस अजीबोगरीब हरकत से मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों का ही उत्पीड़न हुआ है. उनकी यह असामान्य विवादित कार्रवाई तभी रुकी जब गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने उन्हें यह कहते हुए फटकार लगाई कि सरकार ने अनावश्यक रूप से लोगों के निजी मामलों में दखल दिया है.
इसके विपरीत आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, दादरा और नगर हवेली में बाल विवाह की घटनाएं बहुत अधिक हैं. यहां तक कि महाराष्ट्र के बाद नंबर दो माने जाने वाले औद्योगिक गुजरात में भी बाल विवाह की उच्च दर है. महाराष्ट्र में भी महिलाओं और पुरुषों के बीच कम उम्र में विवाह की उच्च दर है.
इस्लाम बाल विवाह को बढ़ावा नहीं देता
सरमा और उनके भाजपा सहयोगी इस बात से अवगत नहीं हैं कि इस्लाम बाल विवाह को हतोत्साहित करता है. इसके विपरीत, शादी या ‘निकाह’ के लिए महिला की सहमति लेने को अनिवार्य बनाकर, इस्लाम बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है.
इस्लामी कानून के अनुसार, अगर महिला की सहमति नहीं ली गई है तो निकाह या विवाह मान्य नहीं होगा. और यह सहमति माता-पिता या अभिभावकों के दबाव में नहीं होनी चाहिए.
इससे पता चलता है कि शादी के बारे में महिला का फैसला उसके माता-पिता या अभिभावकों के शादी के फैसले ऊपर होगा. एक महिला अपने जीवन के ऐसे आवश्यक पहलू के बारे में तभी निर्णय ले सकती है जब वह भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व हो.
यही बात लड़कों की शादी के बारे में भी है. लड़कियों की तरह मुस्लिम लड़के से भी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ शादी नहीं की जा सकती है. वैध ‘निकाह’ के लिए उसकी भी सहमति ज़रूरी है.
शादी के लिए लड़के और लड़कियों की सहमति को अनिवार्य बनाकर इस्लाम ने बाल विवाह पर सख्ती से रोक लगा दी है और जब लड़के और लड़कियां एक ऐसे मुकाम पर पहुंच जाते हैं, जहां वे अपने फैसले खुद ले सकते हैं, तो ऐसे लोगों के विवाहों को बढ़ावा दिया जाता है. विवाह के बारे में यह इस्लामी मार्गदर्शन विवाह के बारे में मौजूदा राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप ही है.
हालाँकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में मुसलमानों में बाल विवाह होता है. लेकिन ये महज़ अपवाद हैं. और ये अपवाद प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रभाव के कारण हैं जिसमें बाल विवाह की न केवल अनुमति रही बल्कि यह एक नियम भी रहा है.
इस्लाम को अपनाने वाले समूहों और परिवारों के बीच इस अवैज्ञानिक रस्म को हतोत्साहित किया जाता है. लेकिन प्राचीन संस्कृति और परंपरा के निशान अभी भी कुछ मुसलमानों में मौजूद हैं, खासकर से उनमें जो शैक्षिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. लेकिन न सिर्फ मुसलमानों में बल्कि बाकी आबादी के सामूहिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा को शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से हटाने की ज़रूरत है.
‘राजा’ राम मोहन राय द्वारा चलाया गया था बाल विवाह के खिलाफ अभियान
18वीं शताब्दी के महान भारतीय सामाजिक सुधारकों में से एक, ‘राजा’ राम मोहन राय, जिन्होंने अरबी में कुरान का अध्ययन किया था, ने बाल विवाह के खिलाफ बंगाल और अन्य प्रांतों में एक अभियान चलाया था. उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए एक व्यापक आंदोलन भी चलाया, खासकर बंगाल में, जहां युवा विधवाओं की एक बड़ी आबादी थी. उस दौर में विधवाएँ अत्यंत दयनीय जीवन व्यतीत करती थीं, क्योंकि हिन्दू समाज में विधवा पुनर्विवाह वर्जित था. हालाँकि, यह ज्ञात नहीं है कि रॉय ने इस्लाम के प्रभाव में अपना सुधारवादी अभियान चलाया था.
बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 और शारदा अधिनियम, 1949
शायद, ‘राजा’ राम मोहन राय के आंदोलन से प्रभावित होकर, भारत में ब्रिटिश सरकार ने 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम बनाया, जिसमें लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की उम्र 18 साल तय की गई. इससे पता चलता है कि उस समय भारत में लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती थी.
हालाँकि, ब्रिटिश सरकार ने इसके बारे में जागरूकता पैदा नहीं की, खासकर छोटे शहरों और गाँवों में. उन्होंने इसे इसलिए भी लागू नहीं किया क्योंकि अंग्रेज़ो को लगा कि इससे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक वर्ग नाराज़ हो जाएंगे, खासकर ऐसे समय में जब भारत की स्वतंत्रता के लिए एक ज़ोरदार आंदोलन चल रहा था. यहां तक कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में बाल विवाह के सुधार पर अंग्रेज़ों की ‘दोहरी नीति’ की आलोचना की है. नेहरू चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार कानून को लागू करे और लोगों में इसके बारे में जागरूकता पैदा करे.
स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने 1949 में शारदा अधिनियम पारित किया, जिसमें लड़कियों के लिए न्यूनतम विवाह की आयु 15 वर्ष और लड़कों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई. इस अधिनियम में 1978 में संशोधन किया गया था, जिसमें लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष बढ़ा दी गई थी. इसे 2006 में फिर से बाल विवाह निषेध अधिनियम के रूप में संशोधित किया गया था.
भारत सरकार ने 2021 में बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक पेश किया, जिसे लोकसभा ने पारित कर दिया है. हालाँकि, इसे अभी कानून बनना बाकी है क्योंकि यह राज्यसभा में लंबित है. विधेयक ने महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष बढ़ा दी है.
विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाल विवाह का प्रतिशत दर्शाती सारणी
S.No | States | Women(%) | Men(%) |
1 | Lakshadweep | 1.3 | 0 |
2 | Ladakh | 2.5 | 20.2 |
3 | Jammu & Kashmir | 4.5 | 8.5 |
4 | Himachal Pradesh | 5.4 | 4.6 |
5 | Kerala | 6.3 | 1.4 |
6 | Nagaland | 5.6 | 5 |
7 | Mizoram | 8 | 11 |
8 | Uttarakhand | 9.8 | 16.7 |
9 | Delhi (National Capital Region) | 9.9 | 12 |
10 | Haryana | 12.5 | 16 |
11 | Sikkim | 10.8 | 5.1 |
12 | West Bengal | 41.6 | 20 |
13 | Tripura | 40 | 20.4 |
14 | Telangana | 23.5 | 16.3 |
15 | Tamil Nadu | 12.8 | 4.5 |
16 | Uttar Pradesh | 15.8 | 23 |
17 | Madhya Pradesh | 23.1 | 30 |
18 | Odisha | 20.5 | 13.3 |
19 | Rajasthan | 25.4 | 28.2 |
20 | Punjab | 8.7 | 11.4 |
21 | Arunachal Pradesh | 18.9 | 20.8 |
22 | Jharkhand | 32.2 | 22.7 |
23 | Karnataka | 21.3 | 6.1 |
24 | Gujarat | 21.8 | 27.7 |
25 | Goa | 5.8 | 8.9 |
26 | Dadra & Nagar Haveli | 26.4 | 12.6 |
27 | Bihar | 40.8 | 30.5 |
28 | Assam | 31.8 | 21.8 |
29 | Maharashtra | 22 | 10.5 |
30 | Meghalaya | 16.9 | 17.9 |
31 | Manipur | 16.3 | 15.3 |
32 | Andhra Pradesh | 29.3 | 14.5 |
33 | Andaman & Nicobar | 16.2 | 7.1 |
34 | Chandigarh | 9.7 | 0 |
35 | Chhattisgarh | 12.1 | 16.2 |
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