-समी अहमद
गुवाहाटी | असम में हाल ही में बाल विवाह के खिलाफ़ अभियान के तहत हुई गिरफ्तारियों के बाद कहा जा रहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कथित रुप से असम के मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं.
राज्य में 3 फरवरी को बाल विवाह के खिलाफ अभियान शुरू होने के बाद से मंगलवार तक कम उम्र की लड़कियों से शादी करने के आरोप में 2528 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. यह जानकारी सरमा ने अपने निजी ट्विटर हैंडल पर साझा की है.
हालांकि, राज्य में कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों का कोई सटीक आंकड़ा नहीं है. लेकिन मुख्यमंत्री के एक ट्वीट में बताया गया है कि जनवरी से दिसंबर 2022 के बीच राज्य के सरकारी अस्पतालों में पंजीकृत किशोर गर्भवती महिलाओं की संख्या 1.04 लाख थी, जो राज्य में सालाना होने वाले बाल विवाह की बड़ी संख्या को दर्शाता है.
मुख्यमंत्री ने सूचना के स्रोत के रूप में आरसीएच का हवाला दिया है. आरसीएच (प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य) के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल 6.20 लाख गर्भधारण के मामलों में से 16.8 प्रतिशत किशोर मामले गर्भावस्था के हैं.
बाल विवाह के खिलाफ जारी कार्रवाई के तहत गिरफ्तार किए गए हिंदुओं और मुसलमानों की संख्या के बारे में भी कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. राज्य पुलिस ने जो एकमात्र आंकड़ा दिया है, वह कम उम्र की लड़कियों की शादी कराने वाले 50 हिंदू पुजारियों और मुस्लिम काज़ियों की गिरफ्तारी का है.
हालांकि, आमतौर पर यह माना जा रहा है कि कार्रवाई मुख्य रूप से मुसलमानों के खिलाफ है. लेकिन सीएम सरमा का कहना है कि इस अभियान का उद्देश्य बाल विवाह को रोकना है और किसी भी व्यक्ति को चाहे वह किसी भी धर्म का हो, विवाह की न्यूनतम आयु का उल्लंघन करते हुए पाया जाएगा तो उसे गिरफ्तार किया जाएगा.
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत भारत में विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष है. इसके उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है.
लेकिन राज्य सरकार ने लोगों में विवाह की कानूनी उम्र और उसके परिणामों के बारे में बहुत कम जागरूकता पैदा की है, एक बड़े वर्ग को कानून के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता अब भी है. फिर भी मुख्यमंत्री के एक बयान के बाद अचानक इस पर कार्रवाई शुरू हो गई.
एक आधिकारिक ट्वीट में, मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने असम पुलिस से “महिलाओं के खिलाफ अक्षम्य और जघन्य अपराध के खिलाफ ज़ीरो टोलरेंस की भावना के साथ कार्य करने के लिए कहा है.”
सरमा ने अपने ट्वीट में कहा, बाल विवाह के खिलाफ हमारा अभियान सार्वजनिक स्वास्थ्य और जन कल्याण के लिए है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21 (एनएफएचएस-5) के मुताबिक, 20 से 24 साल की उम्र की 23 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल से पहले हो गई थी. लेकिन असम में यह आंकड़ा 31 फीसदी है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि कम उम्र में शादी करने वाले लोगों की इतनी बड़ी आबादी पर अचानक नकेल कसना न्यायोचित नहीं है. उनका तर्क है कि इसके बजाय असम सरकार को पहले एक जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिए था और फिर उल्लंघन किए जाने पर कार्रवाई शुरू करनी चाहिए थी.
लेकिन विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार असम के मुख्यमंत्री की यह कार्यवाई मुस्लिम अल्पसंख्यकों को परेशान करने के लिए किया गया एक कृत्य है, जो पहले से ही भाजपा शासित राज्यों में पीड़ित हैं.
भाजपा सरकार ने कई मुस्लिम मदरसों, मस्जिदों और घरों को अवैध रूप से बनाए जाने का बहाना बनाकर बुलडोज़र चलावाया है. लेकिन मुसलमानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस दावे का विरोध करते हुए कहा कि यह मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के अलावा कुछ नहीं था, जो आमतौर पर अपने मुस्लिम विरोधी राजनीतिक एजेंडे के लिए जानी जाने वाली भाजपा को वोट नहीं देते हैं. राज्य की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 34 फीसदी है.
राजनीतिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब परिवार के एकमात्र कमाने वाले महिला के पति को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जायेगा तो यह जनकल्याण और महिलाओं के हित का काम कैसे हो सकता है? इस कार्रवाई ने महिलाओं को और भी मुश्किल में डाल दिया है. जेल में बंद अपने पतियों के लिए रोती हुई महिलाओं के वीडियो अब वायरल हो रहे हैं.
लेकिन बाल विवाह अपराधों पर यह अचानक ‘कार्रवाई’ क्यों? और मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा इसे लेकर इतने उत्साहित क्यों हैं?
ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) की हसीना अहमद ने इंडिया टुमॉरो को बताया कि, हेमंत को असली मुद्दे से ध्यान भटकाने और मुस्लिम विरोधी उन्माद पैदा करने की रणनीति के लिए जाना जाता है, और यह तथाकथित कार्रवाई इसका एक और उदाहरण है. असम की 3.3 करोड़ आबादी में मुस्लिम लगभग 34% हैं.
हसीना समझाते हुए कहती हैं, “कोई भी इस बात से इनकार नहीं करता है कि यह एक मुद्दा है, लेकिन ‘पुरुषों को गिरफ्तार किया जाना’ यह समाधान समस्या से भी बदतर है.”
सुब्रत तालुकदार ने Indiatomorrow.net को बताया कि, हेमंत बिस्वा को समस्या की जड़ तक जाने और उसका समाधान खोजने में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने मुख्यमंत्री पर मीडिया में हंगामा पैदा करने और रातों-रात ‘हीरो’ बनने की कोशिश करने का आरोप लगाया. उन्होंने पूछा, “ऐसे पुरुषों की पत्नियों और बच्चों की देखभाल कौन करेगा जिन्हें गिरफ्तार किया गया है?”
हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी असम सरकार की कार्रवाई पर आपत्ति जताई है. उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि, असम में भाजपा की असम सरकार मुसलमानों के साथ भेदभाव करती है.
नेशनल फेडरेशन ऑफ गर्ल्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन (GIO) ने यह तर्क देते हुए इस कार्रवाई का कड़ा विरोध किया है, कि इसकी वजह से गिरफ्तार किए गए परिवारों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है. फेडरेशन के मुताबिक गिरफ्तार किए गए लोगों में ज़्यादातर मुस्लिम हैं.
एक बयान में, फेडरेशन ने कहा कि, “बाल विवाह वाकई अनुचित है और इस मुद्दे पर तत्काल बात की जानी चाहिए”. हालाँकि, इस मुद्दे पर पिछले 20 वर्षों में कभी चर्चा नहीं हुई. जीआईओ ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि “जागरूकता अभियान शुरू करने का इरादा रखने वाले छात्र संगठनों को कम या न के बराबर सहयोग मिलता है. इस संबंध में अब तक जो सर्वे हुआ है उसके अनुसार ज़्यादातर दंपति पहले से ही माता-पिता थे या गर्भधारण कर चुके थे.”
बयान में कहा गया है कि, “सरकार यह महसूस करने में विफल रही है कि बाल विवाह और कम उम्र में गर्भधारण कानूनी से अधिक एक सामाजिक मुद्दा है. जिन समुदायों को लम्बे समय से मानक जीवन परिस्थितियों से वंचित किया गया है, उन्हें अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए समानांतर तरीके चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्हें POCSO या बाल विवाह रोकथाम अधिनियम जैसे कानून के बारे में बहुत कम जानकारी है. यहां की महिलाएं राज्य द्वारा कैद किए गए अपने परिवार के पुरुषों पर हर तरह से निर्भर हैं.
फेडरेशन ने अपने बयान में कहा कि, “राज्य का मौजूदा कदम बड़े पैमाने पर कई नए सामाजिक, आर्थिक और मानवीय मुद्दों को और बढ़ा देगा या पैदा कर देगा.”
जीआईओ फेडरेशन ने राज्य सरकार से प्रदर्शनकारी महिलाओं की दलीलें सुनने का आग्रह किया. GIO ने कहा है, “अच्छे बसे परिवारों को नहीं उजाड़ना चाहिए. महिलाओं और बच्चों को बिना किसी सहारे के छोड़ना किसी भी तरह से उचित कदम नहीं है. सरकार को गैर-सरकारी संगठनों और छात्र संगठनों के साथ हाथ मिलाना चाहिए और इस खतरे के लिए एक व्यापक, समग्र और गरीबों के अनुकूल दृष्टिकोण के साथ आना चाहिए. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस कदम का ध्यान ज़ख्मों को भरने पर हो, न कि जीवन को कुचलने पर. फेडरेशन ने सुझाव दिया कि “दीर्घकालिक विकास और शिक्षा-उन्मुख कदम बेहद ज़रूरी हैं और बहुत सराहनीय भी हैं. शिक्षा और सुधार के क्षेत्र में निष्पक्ष कदम उठाए जाने चाहिए.”
असम में बाल विवाह के कितने मामले?
असम के डीजीपी जीपी सिंह के मुताबिक, पुलिस ने बाल विवाह में शामिल लोगों के खिलाफ प्रथम दृष्टया साक्ष्य के आधार पर 4,076 मामले दर्ज किए हैं. 4,076 पंजीकृत मामलों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 8,000 लोग शामिल हैं.
असम के मुख्यमंत्री ने एक टीवी साक्षात्कार में कहा कि बाल विवाह अधिनियम के उल्लंघन के मामलों की संख्या एक लाख से अधिक थी और शुरूआत के लिए लगभग चार हज़ार मामले दर्ज किए गए थे. उन्होंने यह भी बताया कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए बाल विवाह निषेध अधिकारियों को नियुक्त किया गया है.
कैसे हुई ‘अपराधियों’ की पहचान?
असम के डीजीपी का कहना है कि मुख्यमंत्री द्वारा बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दो महीने पहले निर्देश जारी करने के बाद, हमने “गाँव बुरहास”, ग्राम रक्षा दलों और अन्य स्टेकहोल्डर्स (हितधारकों) के साथ बातचीत की और बाल विवाह पर डेटा एकत्र किया. हमने पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों के आधार पर मामले दर्ज किए हैं. नतीजतन, हमारे पास लड़कियों की शुरुआती किशोरावस्था – 11, 12, या 13 साल – में शादी करने के प्रथम दृष्टया प्रमाण हैं. उनमें से कई ने गर्भधारण भी कर लिया है.
जहां डीजीपी का कहना है कि पिछले तीन वर्षों के आंकड़े एकत्र किए गए, वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सरमा ने कथित तौर पर कहा था कि सरकार पिछले सात वर्षों के बाल विवाह के मामलों में शामिल सभी लोगों को सज़ा दिलाएगी.
लेकिन AAMSU की हसीना अहमद का तर्क है कि डेटा अस्पतालों से एकत्र किया गया है, जो ‘राज्य द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन है क्योंकि आधार कार्ड की जानकारी का उपयोग चिकित्सा सुविधाओं के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता है.’
प्रभावित परिवारों का क्या होगा?
कांग्रेस विधायक कमलाखा डे पुरकायस्थ का कहना है कि, उनकी पार्टी भी बाल विवाह के खिलाफ है, लेकिन यह ‘असंवेदनशील और अमानवीय’ कार्रवाई सवालों के घेरे में है. “गिरफ्तार किए गए लोगों के बच्चों का क्या होगा?”
उन्होंने सुझाव दिया कि, सरकार को गिरफ्तार व्यक्तियों के परिवारों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए, नहीं तो पत्नी और बच्चों के पास जीने का कोई साधन नहीं बचेगा.
पुरकायस्थ ने बालविवाह को ‘सामाजिक बुराई’ करार दिया और एक सामाजिक तंत्र के ज़रिए इससे निपटने को कहा. हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि गरीब और अशिक्षित परिवारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई उनके दुखों को और बढ़ाएगी.
असम के डीजीपी ने कहा था कि बाल वधुओं की भलाई की ज़िम्मेदारी जिलाधिकारियों और समाज कल्याण विभाग की है.
मुख्यमंत्री हिमंत ने प्रभावित परिवारों को लेकर शर्त रखती हुए कहा था कि अगर बाल वधुओं की देखभाल करने वाला कोई नहीं है तो सरकार ने बाल वधुओं के पुनर्वास की योजना बनाई है. हालाँकि, इस शर्त की वजह से मुख्यमंत्री का वादा अस्थिर हो जाता है. उन्होंने इस संबंध में एक दीर्घकालिक पुनर्वास व्यवस्था स्थापित करने की घोषणा की.
बाल विवाह रोकने के लिए भी काम करने वाली हसीना अहमद का कहना है कि शादीशुदा लोगों के खिलाफ यह कार्रवाई समझ से परे है और वह भी इतने समय के बाद जब कि वे पारिवारिक जीवन में पूरी तरह बस चुके हैं.
मुस्लिम पुरुषों की उम्र और POCSO की समस्या
हालांकि यह साबित करने के लिए कोई ठोस डेटा नहीं है कि यह कार्रवाई मुस्लिम समुदाय के खिलाफ थी, लेकिन ऐसे संकेत मिलते हैं कि यह असल में मुस्लिम पुरुषों को परेशान करने के लिए ही है. हसीना का कहना है कि पीड़ित केवल मुसलमान ही नहीं हैं, लेकिन “यकीनन निशाने पर मुसलमान हैं.”
मुस्लिम युवकों को पॉक्सो के तहत फंसाने को भी इसी तरह से देखा जा रहा है.
सुब्रत तालुकदार सवाल करते हैं कि, “सरकार को क्यों लगता है कि POCSO के तहत गिरफ्तार करने और पुरुषों को जेल में डालने से महिलाओं को मदद मिलेगी?”
गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के कमेटी सदस्य हाफिज़ रशीद अहमद चौधरी कहते हैं, ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक मुस्लिम समुदाय की लड़की 15 साल की उम्र के बाद शादी कर सकती है. अपने एक फैसले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी कहा है कि एक मुस्लिम लड़की 15 साल की उम्र में अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकती है. इस प्रकार के विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार भी अवैध नहीं हैं.
मैरिज रजिस्ट्रेशन के काज़ी सिस्टम पर हमला
असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की चेयरपर्सन सुनीता चांगकाकती का कहना है कि आयोग ने सभी उपायुक्तों (डीसी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि विवाह संपन्न कराने वाले पुजारियों और काज़ियों को दूल्हा और दुल्हन की उम्र सत्यापित करने के लिए आधार कार्ड या पैन कार्ड की जांच करनी चाहिए. लेकिन एक टीवी इंटरव्यू में, मुख्यमंत्री ने काज़ी मैरिज रजिस्ट्रेशन सिस्टम पर हमला बोला.
उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार लंबे समय से चली आ रही घुसपैठ करने वाली इस प्रणाली को समाप्त करने के लिए काम करेगी. हालांकि मुख्यमंत्री ने एक बार पंडितों का भी ज़िक्र किया, लेकिन काज़ियो को लेकर वो दृढ़ और स्पष्ट थे.
50 से अधिक काज़ियों और पुजारियों को भी गिरफ्तार किया गया था, हालांकि दोनों की अलग अलग संख्या अनुपलब्ध है. इससे भी पता चलता है कि हेमंत सरमा की कार्रवाई वास्तव में मुसलमानों के खिलाफ निशाना साध कर की गई है.
जल्दी गर्भधारण की समस्या
नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे -5 (NFHS-5) के अनुसार असम में बाल विवाह की दर 31% है. मुख्यमंत्री हेमंत सरमा अपने ट्विटर हैंडल पर कहते हैं कि असम में किशोर गर्भावस्था अनुपात काफी खतरनाक है.
उन्होंने कहा कि असम में हर साल करीब तीस से चालीस हज़ार बाल विवाह होते हैं. लेकिन, उन्होंने आरोप लगाया, “पिछले 20 वर्षों में बाल विवाह रोकने के लिए ज़िम्मेदार सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों ने ईमानदारी से काम नहीं किया.”
बाल विवाह का कारण: “समन्वय की कमी”
असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष सुनीता चांगकाकती का कहना है कि स्टेकहोल्डर्स (हितधारकों) के बीच समन्वय की कमी समाज में बाल विवाह के प्रचलित होने का एक मुख्य कारण है.
उन्होंने गुवाहाटी में प्रकाशित एक अंग्रेज़ी दैनिक अखबार को बताया कि, विभिन्न ज़िलों का दौरा करने के दौरान, उन्होंने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, समाज कल्याण विभाग, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कर्मियों आदि जैसे हितधारकों के बीच कोई समन्वय नहीं देखा, जिसके कारण समाज में बाल विवाह का प्रचलन जारी है.
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यदि पुजारियों और काज़ियों को कोई संदेह हो तो वे तुरंत पुलिस को सूचित करें.
उन्होंने असम सरकार की ज़ोरदार कार्रवाई की सराहना की लेकिन कहा कि जब तक सभी हितधारकों के बीच उचित समन्वय नहीं होगा तब तक बाल विवाह जारी रहने की संभावना है. दूसरी ओर, मुख्यमंत्री हेमंत सरमा का मानना है कि स्कूल की लड़कियों को अपने उन दोस्तों से जानकारी साझा करनी चाहिए, जिनकी शादी हो रही है.
एडवोकेट राशिद कहते हैं, ‘बाल विवाह पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन इस तरह की कोई कार्रवाई करने से पहले सरकार को पहले इसके खिलाफ जागरुकता फैलानी चाहिए.’