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Saturday, May 18, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम व्यवस्था पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणी पर आपत्ति जताई

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | भारत में जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर देश के काननू मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई है और कहा है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कॉलेजियम प्रणाली के बारे में की गई टिप्पणी और कॉलेजियम की सिफारिशों को सरकार द्वारा मंजूरी नहीं देने पर आपत्ति जताई.

कानून मंत्री किरेन रिजिजू, ने वर्तमान नियुक्ति व्यवस्था पर हमला करते हुए कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए “एलियन” है.

सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू द्वारा टीवी पर की गई हालिया टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए इसे खारिज कर दिया और कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था.

बार & बेंच के अनुसार, जस्टिस संजय किशन कौल और एएस ओका की पीठ ने भी सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक आदेश पारित करने के खिलाफ आगाह किया कि कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों को मंजूरी दी जाए.

जस्टिस कौल ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि से कहा, “श्रीमान अटार्नी जनरल, मैंने सभी प्रेस रिपोर्टों को नज़रअंदाज़ कर दिया है, लेकिन यह किसी ऐसे व्यक्ति से आया है जो काफी उच्च पद पर आसीन व्यक्ति …मैं और कुछ नहीं कह रहा हूं. अगर करना होगा तो हम फैसला लेंगे.”

पीठ ने कहा, “कृपया इसे हल करें और हमें इस संबंध में न्यायिक निर्णय न लेने दें.”

कोर्ट ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन यह स्पष्ट है कि टाइम्स नाउ समिट में कानून मंत्री रिजिजू द्वारा दिए गए साक्षात्कार का जिक्र कर रहा था.

साक्षात्कार में, रिजिजू ने कहा था कि केंद्र सरकार पर कॉलेजियम द्वारा की गई ‘सिफारिशों पर बैठने’ का आरोप नहीं लगाया जा सकता है और न्यायाधीशों का निकाय सरकार से यह उम्मीद नहीं कर सकता है कि सरकार उसके द्वारा की गई सभी सिफारिशों पर हस्ताक्षर करेगी.

कानून मंत्री ने आगे कहा था कि सरकार कॉलेजियम प्रणाली का सम्मान तब तक करेगी जब तक कि इसे एक बेहतर प्रणाली से बदल नहीं दिया जाता है.

उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से, एक अदालत के फैसले के माध्यम से कॉलेजियम बनाया, यह देखते हुए कि 1991 से पहले सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी.

क़ानून मंत्री ने टाइम्स नाउ समिट में बोलते हुए कहा कि, “भारत का संविधान सभी के लिए, विशेष रूप से सरकार के लिए एक “धार्मिक दस्तावेज” है. कोई भी चीज जो केवल अदालतों या कुछ न्यायाधीशों द्वारा लिए गए फैसले के कारण संविधान से अलग है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि फैसला देश द्वारा समर्थित होगा.”

अदालत ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित हाईकोर्ट के लिए नामों को मंजूरी देने में देरी पर केंद्र को अदालत की भावनाओं से अवगत कराने के लिए कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “ज़मीनी हकीकत यह है… नामों को मंजूरी नहीं दी जा रही है. सिस्टम कैसे काम करेगा? कुछ नाम पिछले डेढ़ साल से लंबित हैं.”

अदालत ने कहा कि, “ऐसा नहीं हो सकता है कि आप नामों को रोक सकते हैं, यह पूरी प्रणाली को निराश करता है … और कभी-कभी जब आप नियुक्ति करते हैं, तो आप सूची से कुछ नाम उठाते हैं और दूसरों को स्पष्ट नहीं करते हैं. आप जो करते हैं वह प्रभावी रूप से वरिष्ठता को बाधित करता है.”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई सिफारिशें चार महीने से लंबित हैं, और समय सीमा पार कर चुकी हैं, समयसीमा का पालन करना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रेखांकित किया कि जहां सरकार कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों पर अपनी आपत्ति व्यक्त कर सकती है, लेकिन वह बिना किसी आपत्ति के नाम वापस नहीं ले सकती.

कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल द्वारा अदालत को आश्वासन दिए जाने के बाद कि वे मामले को देखेंगे, मामले को 8 दिसंबर को सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया गया.

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