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Sunday, May 19, 2024
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UP में डेंगू का कहर, जाँच किट व दवाओं की कमी, कई मौतें मगर योगी सरकार का नियंत्रण का दावा

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

लखनऊ | यूपी में डेंगू ने बड़े पैमाने पर अपने पैर पसारे हुए हैं और लोगों की मौत के मामले सामने आरहे हैं, लेकिन सरकार द्वारा डेंगू पर नियंत्रण के दावे किये जा रहे हैं। डेंगू मरीजों की संख्या 12 हज़ार से अधिक हो गई है। डेंगू पर नियंत्रण के लिए दवाओं का छिड़काव तक नहीं किया गया है, पर्याप्त दवा भी उपलब्ध नहीं कराई गई है, लेकिन दवाओं के छिड़काव का दावा हो रहा। योगी सरकार झूठी बयानबाजी कर रही है और केवल कागजों पर डेंगू खत्म हो रहा है।

यूपी में डेंगू का कहर जारी है और डेंगू के कहर से कई जिलों में मौतें हो गई हैं। यूपी में इस समय डेंगू ने कहर बरपा रखा है और डेंगू के डंक से राज्य में लोग परेशान हैं। कोरोना के बाद राज्य में यह एक बड़ी महामारी के रूप में सामने आया है। डेंगू के डंक से लोगों को बुखार आ रहा है और लोगों की मौत हो रही है। डेंगू से बचाव के लिए राज्य में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का अकाल पड़ा हुआ है।

डेंगू के इलाज के लिए इसकी जांच की जरूरत होती है और बिना जांच के इसका इलाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन राज्य में स्वास्थ्य विभाग के पास डेंगू के बचाव के लिए की जाने वाली जांच के लिए पर्याप्त जांच किट तक नहीं हैं। जांच किट की बहुत बड़ी किल्लत है। जांच किट की किल्लत का सबसे बड़ा सबूत यूपी का रायबरेली जिला है। इस जिले में डेंगू की जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग ने 50 किट की मांग की थी, लेकिन उसको मात्र 4 किट मिली हैं।

रायबरेली जिले में सुल्तानपुर और अमेठी जिले के डेंगू की जांच के भी सैंपल पड़े हुए हैं। इसी जिले से सुल्तानपुर और अमेठी जिले के डेंगू की जांच होनी है और इन जिलों के सैंपल जांच के लिए रायबरेली में पड़े हुए हैं। लेकिन जांच किट ही नहीं उपलब्ध हैं, तो जांच कैसे हो। बगैर जांच के डेंगू होने की पुष्टि नहीं हो सकती है।

स्वास्थ्य विभाग बिना जांच के डेंगू होने की पुष्टि नहीं कर रहा है। डेंगू की जांच किट न होने से रायबरेली जिले के डेंगू से पीड़ित मरीज़ों की जांच नहीं हो पा रही है। सुल्तानपुर और अमेठी जिले के सैंपल भी जांच के लिए इस जिले में पड़े हुए हैं। जब जांच ही नहीं हो सकेगी, तो डेंगू का इलाज कैसे होगा, यह सबसे बड़ा सवाल है?

यूपी में डेंगू से निबटने के लिए जांच किट पर्याप्त संख्या में नहीं हैं। जब जांच किट ही नहीं हैं, तो जांच ही नहीं हो सकेगी और न ही फिर डेंगू का इलाज हो सकेगा। डेंगू से बचाव के लिए जांच किट न उपलब्ध करवा पाना योगी आदित्यनाथ की सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है।

डेंगू का उपचार न हो पाने के कारण राज्य के कई जिलों में तमाम मौतें हो गई हैं। औरैया जिले में डेंगू से अब तक 4 मौतें हो चुकी हैं। डेंगू से 50 गांव प्रभावित हैं। प्रयागराज में 3 मौतें हो गई हैं। इस जिले में 1168 डेंगू मरीजों की संख्या पहुंच गई है। प्रयागराज की मेजा तहसील के उपजिलाधिकारी विनोद कुमार पांडेय ने अपने क्षेत्र में डेंगू से 2 मौत होना स्वीकार किया है। मिर्जापुर में भी डेंगू से 1 मौत हुई है। सुल्तानपुर जिले में 2 मौत हुई है। अलीगढ़ में 6 मौत हुई हैं, लेकिन इनको लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है।

मृतकों के परिवार वाले इनकी मौत डेंगू से होना बता रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य विभाग इसको अभी स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बता रहा है। इसी बीच अलीगढ़ के भाजपा सांसद सतीश गौतम ने डेंगू को लेकर बेतुकी बात कही है। उन्होंने कहा है कि, “डेंगू से मौत नहीं हो रही है, घबराने से प्लेटलेट्स डाउन हो रही हैं, इससे मौत हो रही हैं।” सतीश गौतम के इस तरह की बात कहने से लोगों में बड़ी नाराज़गी है और लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं।

डेंगू से राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ज्यादा प्रभावित है। यहां के जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार व्यक्तिगत तौर पर डेंगू से बचाव के लिए लोगों से सतर्कता बरतने की अपील कर रहे हैं और अस्पतालों का निरीक्षण कर मरीजों का इलाज करने के लिए डॉक्टरों को हिदायत दे रहे हैं। डेंगू से आधा यूपी प्रभावित है। लेकिन सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने यानी बदहाल होने को इस बात से समझा जा सकता है कि राज्य में अस्पतालों ने डेंगू के मरीजों को भर्ती करने से इंकार कर दिया था और उनको लौटाना शुरू कर दिया था।

हालांकि, जब इससे योगी आदित्यनाथ सरकार की नाकामी सामने आने लगी, तो योगी सरकार ने अस्पतालों को यह आदेश दिया कि कोई भी डेंगू का मरीज़ वापस नहीं किया जाएगा। अगर सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था नहीं होगी, तो निजी अस्पतालों में मरीजों का इलाज कराया जाएगा और उसका खर्चा सरकार वहन करेगी। इसीके साथ योगी आदित्यनाथ की सरकार ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग को यूपी के हर जिले में डेंगू से बचाव के लिए डेडिकेटेड हॉस्पिटल की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है।

इन हॉस्पिटल में पर्याप्त संख्या में चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया है, जिससे हॉस्पिटल आने वाले मरीजों की हर स्तर पर इलाज की सुविधा उपलब्ध हो। इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से घर-घर जाकर संचारी रोगों की रोकथाम के लिए स्क्रीनिंग कराने का भी आदेश दिया है। राज्य के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेष पाठक चिकित्सालयों का लगातार दौरा कर रहे हैं और डॉक्टरों से डेंगू मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने और उनका इलाज करने का लगातार निर्देश दे रहे हैं। इसीके साथ यूपी सरकार डेंगू के नियंत्रण में होने का दावा कर रही है।

हालांकि, डेंगू के मामले में सरकार के दावे के ठीक उलट हकीकत है। डेंगू बुखार मच्छरों के काटने से होता है। इसके लिए मच्छरों को खत्म किया जाना चाहिए और मच्छरों के शमन के लिए एंटी लार्वा का स्प्रे किया जाना चाहिए। इसीके साथ पायरेथ्रम स्प्रे का छिड़काव किया जाना चाहिए। यूपी सरकार ने इसके लिए आदेश दे दिया है। लेकिन हकीकत इसके विपरीत है, क्योंकि एंटी लार्वा (टेमोफास) की हर जिले को जरूरत है, जिसका छिड़काव कर मच्छरों को खत्म किया जा सके। इसके लिए हर जिले को कम से कम 2 हजार लीटर टेमोफास चाहिए और इसकी डिमांड राज्य के जिलों ने की है। लेकिन 100-200 लीटर ही टेमोफास जिलों को दिया गया है।

राज्य की राजधानी लखनऊ को 2000 लीटर टेमोफास की आवश्यकता है और उसने मांग की है। लेकिन लखनऊ को 1000 लीटर ही टेमोफास दिया गया है। इसी प्रकार उन्नाव जिले को 1000 लीटर के बजाए 100 लीटर टेमोफास उपलब्ध कराया गया है। यूपी को 75 जिलों के लिए दो शिफ्ट में 10,500 लीटर टेमोफास खरीदा गया है। ऐसे हालात में मलेरिया विभाग चाहकर भी मच्छरजनित रोगों को फैलने से रोकने के लिए एंटी लार्वा अभियान नहीं चला पा रहा है।

इसी प्रकार फॉगिंग के लिए राज्य में मैलाथियान उपलब्ध नहीं है। यूपी में डेंगू मरीजों की संख्या 12 हजार से अधिक हो गई है। राज्य के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक लगातार फॉगिंग करने के निर्देश दे रहे हैं, लेकिन मलेरिया विभाग को अभी तक फॉगिंग में प्रयोग की जाने वाली मैलाथियान दवा नहीं दी गई है। बताया जाता है कि अपर निदेशक मलेरिया ने यूपी एम एस सी एल को सितम्बर और अक्टूबर में पत्र लिखकर मैलाथियान दवा उपलब्ध कराने के लिए कहा था, लेकिन दवा नहीं उपलब्ध कराई गई। बार-बार डिमांड किए जाने पर यूपी एम एस सी एल ने हाथ खड़े कर दिए। अब ऐसे में जब मैलाथियान दवा उपलब्ध नहीं है, तो कैसे फॉगिंग की जाए और मच्छरों का खात्मा किया जाए।

डेंगू की रोकथाम के लिए एवं फॉगिंग के लिए इसी तरह केरोसिन की भी आवश्यकता है। लेकिन केरोसिन भी उपलब्ध नहीं है। इंडोर स्प्रे के लिए 1 लीटर पायरेथ्रम में 19 लीटर केरोसिन की जरूरत होती है। स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव ने डेंगू के रोगी मिलने पर 50 घरों में पायरेथ्रम का छिड़काव करने का निर्देश दिया था। बताया जाता है कि विभाग छिड़काव करने का दावा कर रहा है। जबकि हकीकत इसके ठीक उलट है। विभाग के झूठ को इसी से समझा जा सकता है कि लखनऊ, सीतापुर और लखीमपुर खीरी जैसे जिलों में अभी तक केरोसिन ही उपलब्ध नहीं कराया गया है। सीतापुर में अभी पायरेथ्रम दवा ही नहीं उपलब्ध कराई गई है। ऐसे में कहां से पायरेथ्रम का छिड़काव हो गया है?

यूपी में डेंगू का नियंत्रण करने का दावा केवल कागजों पर और हवाई बयानबाजी पर चल रहा है। हकीकत में डेंगू अपने पैर पसार रहा है और डेंगू से ग्रसित होने वाले रोगी मौत के मुंह में समा रहे हैं। जमीनी स्तर पर योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा यह जानने का प्रयास नहीं किया जा रहा है कि जब मच्छरों को खत्म करने की दवा और केरोसिन उपलब्ध नहीं है।

सवाल यह है कि जब दवा और केरोसिन उपलब्ध नहीं है तो कैसे फॉगिंग होगई और मच्छर खत्म हो गए? मच्छरों को खत्म कर ही मच्छरजनित रोग डेंगू पर नियंत्रण किया जा सकता है। केवल बयानबाजी करने से डेंगू नहीं खत्म होगा। इसलिए डेंगू पर नियंत्रण करने और इसको रोकने के लिए जमीनी हकीकत को समझने की आवश्यकता है।

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