रहीम ख़ान
नई दिल्ली | मानवाधिकारों की आवाज़ उठाने के लिए पूरे देश में विख्यात संगठन पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) की हाल ही में नई राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव को चुना गया है. इंडिया टुमारो को दिए इन्टरव्यू में उन्होंने देश की वर्तमान स्थिति पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि अभी देश में अघोषित आपात काल है और हालात आपातकाल से भी बदतर हैं.
इंडिया टुमारो से बात करते हुए कविता श्रीवास्तव ने कहा कि देश कई बड़ी चुनौतियों से गुज़र रहा है और सबसे अधिक हमले सिविल लिबर्टीज पर किया जा रहा है. जो लोग सत्ता से अलग विचार रखते हैं उनको निशाना बनाया जा रहा है, न्यायपालिका को प्रभावित करने का प्रयास हो रहा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार किया जा रहा है.”
उन्होंने कहा कि, “फ्री स्पीच जिसमें मीडिया की स्वतंत्रता भी शामिल है उस पर भी शिकंजा कसा जा रहा है. कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट में नागरिकों पर अत्याचार किए जा रहे हैं और हर जगह मुसलमानों को हाशिए पर धकेला जा रहा है.”
कविता श्रीवास्तव मूलतः राजस्थान के जयपुर की रहने वाली है और मानवाधिकार के मुद्दों को मुखरता से उठाती रही हैं.
गुजरात की बिल्किस बानो के बलात्कारियों और उनके परिवार के सदस्यों के हत्यारों की रिहाई के मुद्दे पर पीयूसीएल ने राजस्थान सहित देश में कई जगह पर अपना विरोध दर्ज कराया है.
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) एक मानवाधिकार संगठन है, जिसका गठन 1976 में जयप्रकाश नारायण द्वारा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज एंड डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूसीएलडीआर) के रूप में किया गया था.
इंडिया टुमारो से बात करते हुए कविता श्रीवास्तव ने बताया कि अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए उनका नाम पीयूसीएल की राष्ट्रीय परिषद में तय हुआ है लेकिन वो अध्यक्ष का कार्यभार 3 महीने बाद संभालेंगी. अभी पीयूसीएल और देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस वक्त देश खतरे के दौर से गुजर रहा है, सिविल लिबर्टीज पर सबसे ज्यादा प्रहार किए जा रहे हैं.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जो लोग अलग सोच रखते हैं उन पर प्रहार किया जा रहा है, स्वतंत्र न्याय पालिका पर प्रहार किया जा रहा है, फ्री स्पीच जिसमें मीडिया की स्वतंत्रता भी शामिल है उस पर शिकंजा कसा जा रहा है. कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट में नागरिकों पर अत्याचार किए जा रहे हैं. हर जगह मुसलमानों को हाशिए पर धकेला जा रहा है.
उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के तहत एससी एसटी वाला फार्मूला हटा दिया. इस तरह की देश में बहुत सारी समस्याएं हैं.
कविता ने कहा कि, हमारा छोटा संगठन है लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष की यह जिम्मेदारी बहुत बड़ी है. लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे हैं, लेकिन राजस्थान मेरी कर्मभूमि रहा है और आगे भी राजस्थान से जुड़ाव बना रहेगा.
पीयूसीएल की प्राथमिकताओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि देश के नागरिकों के सामने इस समय जो भी समस्याएं है वो सब हमारी प्राथमिकताएं रहेंगी. जिस तरह से सिविल लिबर्टीज पर प्रहार हो रहा है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतम हो रही है, मानवाधिकार और बराबरी के हक जो एक एक कर के खतम हो रहे हैं, भाईचारा, हमारे संविधान में समानता और स्वतंत्रता के साथ जो बंधुता है, उसको बचाना, यह सब हमारी प्राथमिकताएं रहेंगी.
उन्होंने कहा कि, भारत के जिस संविधान के कारण आज हम यहां खड़े होकर बात कर पा रहे हैं उस संविधान को कागज़ी घोड़ा बनाकर रख दिया जाए और कोई दूसरा हिंदू राष्ट्रवादियों का संविधान लागू कर दिया जाए ऐसा लोगों के मानस में है लेकिन हमें अपने संविधान को बचाना है. राष्ट्रीय स्तर पर हमारी टीम यंग और अनुभवी लोगों की टीम है, हम सब साथ मिलकर काम करेंगे.
अपनी उपलब्धियों के बारे में बताते हुए वो कहती हैं कि एक मानवाधिकार सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में चाहे वो महिला आंदोलन में नेतृत्व देना हो, दस्तावेजीकरण का काम हो, फेक्ट फाइंडिंग हो, सरकार के साथ बात करनी हो, कानून के प्रारूप बनाने हो, दलितों का आंदोलन हो, मुस्लिम बहनों का आंदोलन हो या पर्यावरण आंदोलन हो जहां भी जरूरत हुई हर जगह सक्रिय रहकर 24×7 काम किया है और आगे भी करती रहेंगी.
पीयूसीएल की आज के दौर में उपयोगिता और प्रासंगिकता पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि पीयूसीएल का गठन 1976 में आपातकाल के दौर में हुआ था, लेकिन अभी अघोषित आपात काल है और हालात आपातकाल से भी बदतर हैं.
उन्होंने कहा कि, “आपातकाल में तो सिर्फ एक व्यक्ति की तानाशाही थी और ब्यूरोक्रेसी उसके साथ थी, लेकिन यहां एक पूरी विचारधारा है जिसके साथ बहुसंख्यक लोगों की सहमति है. यह विचारधारा कहती हैं कि हिंदू सर्वोपरी होगा, इतिहास को बदल दो, विरोध में बोलने वाले लोगों को जेल में डाल दो. आज के इस दौर में तो पीयूसीएल की और भी ज्यादा ज़रूरत है.”