ख़ान इक़बाल
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन लोकुर ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में बदलाव होने चाहिए और इसपर चर्चा करने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि, “मुझे लगता है की यह सही समय है इससे पहले की सरकार कॉलेजियम पर हमला करे और इसे पूरी तरह विस्थापित कर दे.”
जस्टिस लोकुर ने यह बातें समाचार चैनल NDTV के एक डिबेट प्रोग्राम में कहीं. उनके साथ उस समय पैनल में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता भी थे.
ज्ञात हो कि कुछ दिन पहले क़ानून मंत्री किरण रिजूजी ने जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम व्यवस्था पर हमला किया था. जस्टिस मदन लोकुर ने कॉलेजियम व्यवस्था पर क़ानून मंत्री के इस बयान की निंदा की है.
लाइव लॉ.इन के अनुसार, जस्टिस लोकुर ने कहा कि, “हाल ही में जो बयान कानून मंत्री की ओर से आ रहे हैं, वे इस बात का पर्याप्त संकेत हैं कि वे बहुत जल्दी और तेज़ी से आगे बढ़ना चाहते हैं.”
जस्टिस लोकुर ने कुछ उदाहरण देते हुए कहा कि जब सरकार को कोलेजियम सिस्टम द्वारा किसी जज की नियुक्ति की सिफ़ारिश की जाती है तो उसमें सरकार देरी करती है.
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि, “25 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस दीपांकर दत्ता को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाने की सिफ़ारिश की लेकिन डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने उन्हें नियुक्त नहीं किया. उन्होंने यह भी कहा था कि न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर को उसी समय मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित किया जाना चाहिए. फिर से सरकार ने इसके बारे में कुछ नहीं किया है. क्यों?”
उन्होंने कहा कि, यह बहुत अच्छी बात है कि वे रिक्त पदों पर नियुक्तियां की जानी चाहिए लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट इन पदों को भरने की बात करता है तो सरकार मना कर देती है.
उन्होंने कहा, “अब जहां तक कॉलेजियम व्यवस्था का सवाल है, तो फिर, कुछ हद तक, हाँ, यह उतना पारदर्शी नहीं है जितना कि अदालतों के मामले में होना चाहिए. लेकिन फिर सरकार समान रूप से पारदर्शी नहीं है.”
उन्होने कहा कि, “उन्होंने (सरकार) ने जोर देकर कहा है कि न्यायमूर्ति अकील कुरैशी को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए. क्या कारण था? क्या आपने किसी को बताया कि जस्टिस दीपांकर दत्ता को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त क्यों नहीं किया जा रहा है? अगर कोई बदलाव करना है, तो उसे पूरे बोर्ड में बदलाव करना होगा। सरकार भी अपारदर्शी हो रही है”
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कहा कि, “मुझे नहीं लगता कि कॉलेजियम प्रणाली बहुत अच्छी तरह से काम कर रही है, उस हद तक मैं कानून मंत्री से सहमत हूं कि इसमें सुधार की जरूरत है. लेकिन क्या आपके पास बेहतर व्यवस्था है? मुझे ऐसा नहीं लगता. जिस तरह से यह सरकार काम करती है, अगर सरकार पूरी तरह से नियुक्तियों पर नियंत्रण में आती है, तो हम आपदा की ओर बढ़ रहे हैं.”