ख़ान इक़बाल
नई दिल्ली | सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह की धारा 124ए को ख़त्म करने के लिए दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसे जनवरी 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया है. अटार्नी जनरल ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से कुछ और समय मांगा है.
सुनवाई के दौरान भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आने वाले शीतकालीन सत्र में सरकार कुछ आपराधिक धाराओं की समीक्षा करने वाली है. जिसके बाद सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई को तब तक के लिए स्थगित कर दिया.
ग़ौरतलब है कि कुछ महीने पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अध्यक्षता में बनायी गई खंडपीठ ने राजद्रोह क़ानून के तहत आगे कोई भी FIR दर्ज ना करने के लिए सभी राज्यों को निर्देशित किया था. यह एक तरह से राजद्रोह क़ानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के स्थगित करने जैसा था.
आदेश में कहा गया था, “हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी एफआईआर दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124 ए के तहत कठोर कदम उठाने से परहेज करेंगी।” पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि धारा 124 ए के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मुकदमे, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए.
क़ानूनी कार्रवाइयों को रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ.इन के अनुसार मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि, “क्या केंद्र द्वारा सभी लंबित कार्यवाही को स्थगित करने और इसके उपयोग को रोकने के लिए धारा 124A के तहत किसी भी नए मामले को दर्ज करने से रोकने के लिए निर्देश जारी किया गया?”
उस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सभी मुख्य सचिवों को यह आदेश भेजे जा चुके हैं.
देशद्रोह क़ानून को ख़त्म करने के लिए दायर की गई याचिकाओं के बैच में पीठ सेना के दिग्गज मेजर-जनरल एसजी वोम्बटकेरे (सेवानिवृत्त) और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, पत्रकार अनिल चमड़िया, पीयूसीएल, पत्रकार पेट्रीसिया मुखिम और अनुराधा भसीन, और पत्रकार संघ असम द्वारा दायर की याचिकाएं हैं.
124 ए के ख़िलाफ़ कई बार इसे समाप्त करने की माँग उठी हैं क्योंकि यह क़ानून अंग्रेजों द्वारा आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे है स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ लाया गया था. भारत के मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं का कहना है आज़ादी के बाद इस क़ानून की कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई.
इस क़ानून का पहला इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख चेहरा रहे बाल गंगाधर तिलक ख़िलाफ़ किया गया था. बाद में इस क़ानून के तहत शहीद ए आज़म भगत सिंह, महात्मा गांधी, जवाहर-लाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ कई मामले दर्ज किए गए.