इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | भारत में मुसलमानों के प्रमुख सामाजिक-धार्मिक संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) ने गृह मंत्रालय से अपराधियों और बलात्कारियों का साथ न देकर पीड़ितों के साथ खड़े होने की अपील की है.
जमाअत ने यह अपील बिलकिस बानो के संबंध में की है, जिनके साथ 2002 के गुजरात के मुस्लिम विरोधी दंगो के दौरान सामूहिक बलात्कार किया गया था, उनकी तीन साल की बेटी सहित 14 रिश्तेदारों को भी उस नरसंहार में बेरहमी से मार दिया गया था. जब राज्य में मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई थी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहाँ के मुख्यमंत्री थे.
गुजरात सरकार द्वारा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने के बाद दोषियों की जल्द रिहाई में गृह मंत्रालय की भूमिका भी आम जनमानस के सामने आई है. गुजरात सरकार ने कहा है कि गृह मंत्रालय की मंज़ूरी के बाद 11 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया गया.
बिलकिस बानो के बलात्कारियों को रिहा करने में गृह मंत्रालय की सहमति की निंदा करते हुए, जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने मीडिया को दिए अपने एक बयान में कहा कि, “गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और 2002 में गोधरा के बाद हुई हिंसा में उनकी 3 साल की बेटी सहित उनके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों को गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत रिहाई के लिए सहमति देते हुए गृह मंत्रालय ने इस धारणा को बल दिया है कि वह अपराधियों और बलात्कारियों के साथ है न कि पीड़िता के साथ.”
उन्होंने आगे कहा, “गृह मंत्रालय का यह कदम महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के रक्षक होने के उनके खोखले दावों की पोल खोलता है. इस कदम ने न केवल बिलकिस बानो और उनके परिवार के सदस्यों को बल्कि हमारे देश के अन्य वंचित वर्गों को भी आहत किया है.”
जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने आगे कहा, “यह खेदजनक है कि हमारी व्यवस्था में बलात्कारियों को सम्मानित किया जा रहा है जैसा कि उन्नाव, कठुआ और हाथरस के मामले में भी देखा गया था. ऐसा लगता है कि न्याय की तुलना में एक विशेष वोट बैंक को खुश करके राजनीतिक लाभ प्राप्त करना सत्तारूढ़ पार्टी के लिए अधिक महत्वपूर्ण है.”
उन्होंने कहा, “हम फैसले की निंदा करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शीर्ष अदालत इस मामले में हस्तक्षेप करेगी ताकि सरकारी नीति की आड़ में किए गए इस गंभीर अन्याय को वापस पलटा जा सके.”
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि जिन सीबीआई अधिकारियों और सीबीआई अदालत के न्यायाधीश ने आरोपियों को दोषी ठहराया था, उन सभी ने भी कैदियों की जल्द रिहाई का कड़ा विरोध किया था, जेआईएच उपाध्यक्ष ने खेद व्यक्त किया कि, “गृह मंत्रालय ने यह जानते हुए भी कि ये सभी बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध के दोषी है, इसके बावजूद इन अपराधियों की छूट को मंजूरी दे दी.”
जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष ने आगे कहा कि, “अगर सरकार यह कहकर अपने फैसले का बचाव कर रही है कि रिहाई कानून के अनुसार थी, तो उसे यह समझना चाहिए कि यह कदम अपराधियों और बलात्कारियों को प्रोत्साहित करेगा और वे सबसे गंभीर अपराध करने के बावजूद जल्दी या बाद में सिस्टम द्वारा ज़मानत मिल जाने के लिए आश्वस्त रहेंगे.”
मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने आगे कहा कि, “सभी 11 दोषियों को उनके जेल की सज़ा के दौरान 1000 दिनों के लिए पैरोल, फरलो (अनुपस्थिति की अनुमति) और अस्थायी ज़मानत का भी लाभ दिया गया था, इससे पता चलता है कि गुजरात सरकार ने न सिर्फ उन्हें हीरो माना बल्कि हर संभव उदारता और संरक्षण के योग्य भी माना.”
उन्होंने कहा, “कुछ समूहों द्वारा इन दोषियों की जिस तरह प्रशंसा और स्वागत किया जा रहा है, वह काफी आपत्तिजनक है. पूरा प्रकरण निस्संदेह एक खतरनाक मिसाल कायम करता है जो हमारी न्याय प्रणाली की नींव को हिला देगा. इसके अलावा, यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हमारी प्रतिष्ठा को भी क्षति पहुंचाता है.”
मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि, “अगर हम लोकतंत्र और कानून के शासन को बनाए रखना चाहते हैं तो बिलकिस बानो मामले में बलात्कारियों और हत्यारों को रिहा नहीं किया जाना चाहिए.”