इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), 1967 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई पर सहमति जताई है. याचिका पर सुनवाई 18 अक्टूबर 2022 को होगी.
चीफ जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई है.
इस मामले में फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स के याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एवोकेट अरविंद दातार पेश हुए.
फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स की याचिका में कहा गया है कि अधिनियम एक राजनीतिक उपकरण है जो आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में प्रच्छन्न है और सरकार द्वारा सभी प्रकार के असंतोष को टारगेट करने के लिए इसका दुरुपयोग किया जाता है.
लाइवलॉ.इन के अनुसार, याचिका में कहा गया है, “अधिनियम की योजना, संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत संरक्षित स्वतंत्रता पर एक घातक हमला है जो राज्य को ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अधिक शक्तियां प्रदान करता है जो सत्तारूढ़ पार्टी की आलोचना करते हैं.”
याचिका में यह भी कहा गया है कि अधिनियम के प्रावधानों को सत्ता के बारे में किसी भी प्रकार की असहमति और राय को कम करने के लिए बनाया गया है इसलिए यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक प्रकार का हमला है.
याचिका के अनुसार, गैरकानूनी गतिविधि की परिभाषा के भीतर लिखित, बोली जाने वाली और कलात्मक कार्यों को शामिल करने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है।
लाइवलॉ.इन के अनुसार, याचिका में कहा गया है कि, “गैरकानूनी गतिविधि’ की परिभाषा में “भारत के खिलाफ असंतोष” शामिल है, जिसका अधिनियम के तहत कोई परिभाषित अर्थ नहीं है और इसका इस्तेमाल किसी ऐसे व्यक्ति को टारगेट करने के लिए किया जा सकता है, जिसके खिलाफ सरकार बैर रखती और घृणा करती है और जो सरकार के विपरीत दृष्टिकोण रखता है.”
दायर याचिका में यह कहा गया है कि, “एक कैटेगरी के रूप में ‘गैरकानूनी गतिविधि’ केवल राज्य के विरोध को दबाने के लिए मौजूद है, और इस अर्थ में यह मनमाना और अलोकतांत्रिक है.”
याचिका अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया है यह स्पष्ट रूप से मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।