इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | जमाअत इस्लामी हिन्द ने बिलकिस बानो रेप केस में सज़ायाफ्ता अभियुक्तों की गुजरात सरकार द्वारा रिहाई की निंदा की है. साल 2008 में मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.
गौरतलब है कि बिलकिस बानो गैंगरेप और परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सज़ा पाने वाले 11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफ़ी नीति के तहत सोमवार, 15 अगस्त को गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया.
मीडिया को जारी एक बयान में जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो सलीम इंजीनियर ने कहा, “हम बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों और उम्रकैद की सजा पाने वालों की रिहाई में गुजरात सरकार की भूमिका से निराश हैं.”
उन्होंने कहा, “हम इस फैसले की कड़ी निंदा करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शीर्ष अदालत इस मामले में दखल देगी ताकि सरकारी नीति की आड़ में किए गए इस घोर अन्याय पर अंकुश लग सके.”
उन्होंने गुजरात सरकार के इस रवैये की निन्दा करते हुए कहा कि, “अगर राज्य सरकारों को अपने पसंद के क्रूर सज़ायाफ्ता मुजरिमों को ‘माफी नीति’ के तहत रिहा करने की इजाज़त दी जाती है तो इससे हमारी न्यायिक व्यवस्था का मज़ाक़ बन जाएगा और आम नागरिकों की इस ‘न्याय व्यवस्था’ से जुड़ी उम्मीदें टूट जाएंगी.’
प्रो. सलीम इंजीनियर ने कहा, ‘न्याय सबके लिए’ हमारे संविधान सबसे अधिक भरोसा किए जाने वाले सिद्धांतों में से एक है. अगर ‘माफी नीति’ का यही सिलसिला जारी रहा तो हमारे देश का लोकतंत्र कमज़ोर हो जाएगा.”
उन्होंने कहा कि, “इस प्रकार के फैसलों से अपराधियों और उनके मास्टर माइंड को हौसला मिलेगा क्योंकि उन्हें संगीन जुर्म करने के बावजूद जल्द या देर से सिस्टम के ज़रिए ज़मानत हासिल करने का यक़ीन होगा. हम ‘नारी शक्ति’ को बढ़ावा देने की बात करते हैं और महिलाओं की मर्यादा एवं सम्मान के मुहाफ़िज़ होने का दावा करते हैं, मगर इस तरह की नीतियों से हमारा दोहरा रवैया उजागर हो जाता है.”
प्रो सलीम इंजीनियर ने कहा कि, “बिलक़ीस बानो रेप केस में रिहा होने वालों को सीबीआई कोर्ट ने दोषी ठहराया था और इस फैसले को मुम्बई हाई कोर्ट ने बरक़रार रखा था. इन 11 दोषियों में से केवल एक ने सज़ा माफ़ी के लिए शीर्ष न्यायालय से निवेदन किया था जिसके बाद शीर्ष न्यायालय ने गुजरात के राज्य सरकार को समयपूर्व रिहाई के लिए की गई इस अपील पर विचार करने का निर्देश दिया था.”
उन्होंने कहा कि, “राज्य सरकार ने एक पैनल गठित कर सभी 11 मुजरिमों की माफी के हक़ में फ़ैसला कर दिया. अगर हम इस पूरी घटनाक्रम पर नज़र डालें तो निःसंदेह यह फै़सला एक भयानक नज़ीर पेश करता है जो हमारे न्यायिक व्यवस्था की बुनियादों को हिला कर रख देगा.”
प्रो. सलीम ने अपने बयान में कहा कि, अगर हम लोकतंत्र और क़ानून के प्रभुत्व को बरक़रार रखना चाहते हैं तो इस फै़सले पर पुनर्विचार करना होगा ताकि न्यायिक व्यवस्था पर लोगों का विश्वाश बहाल रहे.