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Wednesday, May 15, 2024
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दिल्ली जामा मस्जिद की इमारत की हालत बेहद खराब, मोदी सरकार ने मरम्मत से किया इंकार

सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के सामने स्थित 355 साल पुरानी भव्य जामा मस्जिद जो मात्र एक मस्जिद ही नहीं बल्कि देश की प्राचीन धरोहर और विरासत भी है, वो जामा मस्जिद आज जर्जर हो रही है और पूरी तरह से उपेक्षित भी. इमारत में लगे पत्थर और इसकी मीनारें कई जगहों पर बहुत अधिक पुराने हो जाने के कारण बुरी तरह खराब हो चुके हैं और टूट गए हैं. जामा मस्जिद में लगे कई लाल बलुआ पत्थर और सफेद पत्थर पिछले कई वर्षों के दौरान गिर गए हैं, यह इस स्थिति में पहुंच चुकी है जहां इस स्मारक को तत्काल मरम्मत की आवश्यकता है.

सिविल इंजीनियरों की एक टीम ने कुछ समय पहले जामा मस्जिद के पत्थरों और इमारत की संरचना का ‘डैमेज डायग्नोसिस’ किया था. टीम ने बताया था कि स्मारक बेहद जर्जर स्थिति में है. इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर तत्काल मरम्मत नहीं की गई तो मस्जिद कभी भी गिर सकती है.

फिर भी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), जो प्राचीन स्मारकों की विशेषज्ञता और तकनीक के साथ मरम्मत करने वाली एकमात्र सरकारी एजेंसी है, ने इस स्मारक की मरम्मत करने से मना कर दिया है.

केंद्रीय संस्कृति मंत्री मीनाक्षी लेखी, जिनके तहत एएसआई काम करती है, ने कुछ दिनों पहले संसद में कहा था कि एएसआई मुगल काल की मस्जिद की मरम्मत इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि यह “संरक्षित स्मारकों” की सूची में नहीं है. उन्होंने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सांसद पीवी अब्दुल वहाब द्वारा उठाए गए एक सवाल पर यह बयान दिया था.

जामा मस्जिद ट्रस्ट मस्जिद की देखभाल करता है. लेकिन ट्रस्ट के पास इतने बड़े काम को करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है और इस काम के लिए बहुत सारे पैसों की आवश्यकता है.

लेकिन केंद्रीय संस्कृति मंत्री मीनाक्षी लेखी के बयान काफी विरोधाभासी हैं क्योंकि कुछ साल पहले ही एएसआई ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर और महाराष्ट्र में कई हिंदू और जैन मंदिरों को “संरक्षित स्मारकों” की सूची में नहीं होने के बावजूद “स्पेशल केस” मानते हुए मरम्मत की हैं.

फिर ऐसी क्या वजह है जो एएसआई को जामा मस्जिद जैसी राष्ट्रीय विरासत और मुस्लिम पूजा स्थल की मरम्मत करने से रोक रही है? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि यह स्मारक एक मस्जिद है? क्या सरकार प्राचीन मंदिर, हिंदू और जैन स्मारकों में भी मरम्मत और नवीनीकरण की आवश्यकता होने के बावजूद उनमे काम सिर्फ इसलिए नहीं करेगी, क्योंकि वे “संरक्षित स्मारक” के रूप में एएसआई की सूची में नहीं हैं?

अगर सरकार मंदिरों के मामले में उदारता दिखा सकती है, तो मस्जिदों के मामले में भी ऐसी है दरियादिली क्यों नहीं दिखाई जाती? इस देश में आखिर प्राचीन स्मारकों को लेकर उनके धर्म के आधार पर दो अलग मापदंड क्यों अपनाये जाते हैं? जबकि देश का संविधान सभी धर्मों के साथ धर्मनिरपेक्षता और समानता का व्यवहार करने का निर्देश देता है.

इंडिया टुमारो से बात करते हुए, शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा कि, एएसआई ने दक्षिण भारत में ऐसे कई मंदिरों की मरम्मत की है जो संरक्षित स्मारक नहीं हैं. उन्होंने कहा, “हम एएसआई द्वारा मंदिरों की मरम्मत का विरोध नहीं करते हैं.” (अहमद बुखारी मस्जिद के 13वें शाही इमाम हैं. उन्होंने 14 अक्टूबर सन् 2000 को अपने पिता सैयद अब्दुल्ला बुखारी के निधन के बाद कार्यभार संभाला था. इस मस्जिद के पहले शाही इमाम सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी के वंशज से हैं. जिन्हें शाहजहाँ ने स्वयं नियुक्त किया था. सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी बुखारा से थे, जो वर्तमान उज़बेकिस्तान के सबसे बड़े शहरों में से एक है.

शाही इमाम सवाल करते हैं, “लेकिन एएसआई जामा मस्जिद की मरम्मत क्यों नहीं कर सकता”? जब एएसआई लाल किला और ताजमहल की मरम्मत और जीर्णोद्धार कर सकता है, तो उसी सम्राट द्वारा निर्मित जामा मस्जिद की मरम्मत न करने का आखिर क्या कारण है?

शाही इमाम का कहना है कि मुगल स्मारक देश के लिए काफी तादाद में घरेलू और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने का काम करते हैं जिससे देश को अच्छा खासा राजस्व अर्जित होता है, शाही इमाम सुझाव देते हैं कि इस कारण से भी सरकार को इन्हें संरक्षित करना चाहिए.

उन्होंने बताया कि, मिस्र, इटली, तुर्की और अन्य देशों ने उनके स्मारकों को अच्छी तरह से संरक्षित करने का काम किया है जिससे उन्हें भारी मात्रा में राजस्व भी प्राप्त होता है. शाही इमाम चाहते हैं कि भारत सरकार इन देशों से सीख ले.

हालांकि, उन्होंने जामा मस्जिद को एएसआई को सौंपने से साफ इनकार कर दिया.

शाही इमाम ने कहा कि, “मस्जिद ट्रस्ट और भारत के मुसलमान कभी भी मस्जिद को एएसआई को स्थानांतरित करने के लिए सहमत नहीं होंगे.”

बुखारी ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि, “एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करके मस्जिद को एएसआई को स्थानांतरित करने से देश में एक नया विवाद पैदा हो जाएगा.” शाही इमाम पूछते हैं कि, “अगर एएसआई मस्जिद में नमाज़ पर रोक लगा दे तो क्या होगा?”

इमाम बुखारी को डर है कि मस्जिद को संरक्षित स्मारकों की सूची में लाकर, एएसआई भविष्य में मस्जिद में नमाज़ पर रोक लगा सकता है जैसा कि एएसआई के नियंत्रण में अन्य मस्जिदों के मामलों में हुआ है. दिल्ली में “संरक्षित स्मारकों” के रूप में एएसआई की सूची में 70 से अधिक मस्जिदें हैं जहाँ ASI नमाज़ की अनुमति नहीं दे रहा है. और एएसआई यह सब इस तथ्य के बावजूद कर रहा है कि संरक्षित मस्जिदों में नमाज़ पर प्रतिबंध लगाने का कोई कानून नहीं है, क्योंकि मस्जिदों का निर्माण ही मुसलमानों द्वारा नमाज़ अदा करने के लिए किया गया था, न कि महज़ एक स्मारक के रूप में.

जर्जर हो रही है जामा मस्जिद

सन 1650 और 1656 के बीच सम्राट शाहजहाँ द्वारा निर्मित इस शानदार ऐतिहासिक जामा मस्जिद के विभिन्न हिस्सों को अगर करीब से देखा जाये तो साफ साफ देखा जा सकता है कि लाल बलुआ पत्थरों की बाहरी परतों के प्लिंथ लेवल पर जोड़ो पर से गैप दिख रहा, जिससे मस्जिद की संरचना की मज़बूती कमज़ोर होती जा रही है. इसके अलावा, चारों तरफ के बरामदों की छतों की ऊपरी परत, या जिसे वाटरप्रूफिंग कहा जाता है, समय के साथ जीर्ण हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप दीवारों और ज़मीन पर बारिश का पानी लीक होने लगा है.

जामा मस्जिद के गेट नंबर 3 पर क्षतिग्रस्त मीनारें. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

बरामदों के बाहर बॉण्डरी की दीवार और रेलिंग वाले हिस्सों में लगे कंगूरे निरंतर स्केलिंग और “लखोरी” ईंटों के स्थान पर लगातार जगह बनने से कमज़ोर हो गए हैं. उपेक्षा के कारण कई कंगूरे टूट कर गिर भी चुके हैं. कंगूरों और “लखोरी” ईंटों को जोड़ने वाली लोहे की बार के साथ कंगूरों को रखा जाता है.

गेट नंबर 3 के बरामदे पर लाल बलुआ पत्थरों के कंगूरों और पैरापेट की “लखोरी” ईंटों के बीच अंतर बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देते हैं. Pic: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो

समय के साथ, अधिकांश लोहे की छड़ें ज़ंग लगने की वजह से नष्ट हो गई हैं, जिस के कारण अधिकांश स्थानों पर कंगूरों और “लखोरी” ईंटों के बीच मे बड़ा गैप बन गया है. कंगूरों और “लखोरी” ईंटों के बीच बने बड़े गैप के कारण मस्जिद के चारों तरफ की दीवारों में भारी बारिश का पानी रिसता है, जो लगातार जामा मस्जिद के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है. स्मारक को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि सभी रिसावों और अन्य जोड़ों को तत्काल बंद किया जाए.

गेट नंबर 3 के दाहिनी ओर बने एक गुंबद के पास छज्जों का काफी हिस्सा गिर चुका है. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

मस्जिद के गेट नंबर 3 के ऊपर संगमरमर की एक छोटी सी मीनार लॉकडाउन के दौरान गिर गई, खुशकिस्मती से उस घटना में कोई भी घायल नहीं हुआ क्योंकि लॉकडाउन के प्रतिबंधों के कारण आसपास लोग नहीं थे. हालांकि, गेट नंबर 3 के ऊपर अभी भी एक और मीनार बुरी तरह क्षतिग्रस्त है और अगर वक़्त पर मरम्मत नहीं की गई तो यह भी कभी भी गिर सकती है.

लाल बलुआ पत्थर गल कर गिर रहे हैं. एक पीपल का पेड़ जो दीवार को नुकसान पहुंचा रहा है. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

गेट नंबर 3 के दाहिनी ओर का गुंबद पूरी तरह से खराब हो गया है. गुंबद की बॉण्डरी के आसपास के कुछ पैरापेट पत्थर भी गिर गए हैं. गुंबद के मेहराबों और कई अन्य स्थानों पर पत्थर उभर कर बाहर निकल आये हैं, और वे कभी भी गिर सकते हैं. इसके अलावा, कई पीपल, या फाइकस के पौधे, गुंबदों और दीवारों पर उग आए हैं, और इनकी जड़े दरारों में गहराई से प्रवेश कर गई हैं, जिससे इमारत की संरचना बेहद कमज़ोर हो गई है.

पीपल का पेड़ गुंबद को नुकसान पहुंचा रहा है. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

मस्जिद के संगमरमर से बने मुख्य गुंबद टूट रहे हैं

यदि आप मस्जिद के मध्य भाग के शीर्ष पर चढ़ेंगे, तो आप पाएंगे कि सफेद संगमरमर से बने तीन मुख्य गुंबद कई जगहों से टूट रहे हैं. बारिश के पानी के रिसाव को रोकने के लिए गड्ढों को भरना होगा. मस्जिद के केंद्र के शीर्ष पर बनी मीनार में कई जगहों पर दरारें आ गई हैं और वह कभी भी गिर सकती हैं. संगमरमर के बने केंद्रीय गुंबद के पास एक छोटा मीनार (बुर्ज) भी जर्जर हो गया है और कभी भी गिर सकता है.

अधिकांश लोगों को मस्जिद के भूतल की छत और केंद्रीय गुंबदों के बीच के मेज़ेनाइन वाले हिस्से के बारे में पता नहीं है. मेज़ानाइन वाले हिस्से में तीन बड़े हॉल हैं. हालाँकि, इसका उपयोग कभी भी नमाज़ के लिए नहीं किया जाता है. मस्जिद के शीर्ष पर एक छोटे से दरवाजे के माध्यम से मेज़ानाइन वाले हिस्से तक पहुंचा जाता है.

सिविल इंजीनियरों के अनुसार, मेज़ेनाइन फर्श तीन गुंबदों का भार संभालती है.

मेज़ेनाइन फर्श बुरी तरह से खराब हो गया है, जिसके कारण इमारत की मुख्य संरचना के ढहने का खतरा है

मेज़ेनाइन का फर्श अपनी बहुत अधिक पुराने हो जाने और मरम्मत के अभाव के कारण खराब हो चुका है. मेज़ेनाइन की दीवारों और तीनों गुंबदों के पत्थरों की ऊपरी परतें जर्जर हो रही है, जिससे संरचना कमज़ोर हो रही है. इसके अलावा, गुंबदों और पैरापेट से बारिश के पानी के रिसने से मेज़ेनाइन फर्श पूरी तरह से बर्बाद हो गया है.

केंद्रीय संगमरमर के गुंबद को सहारा देने वाला स्तंभ ढह रहा है. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

जामा मस्जिद की संरचना के लिए सबसे बड़ा खतरा मेज़ेनाइन फर्श को लेकर बना हुआ है. मेज़ेनाइन फ्लोर गिरने से गुंबद भी ढह जाएंगे. ऐसे में गुंबदों के भार और मेज़ेनाइन फ्लोर के कारण भूतल भी गिर सकता है. इंजीनियरों की टीम द्वारा किये गए डैमेज डायग्नोसिस के अनुसार, मस्जिद के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए मेज़ेनाइन फर्श और गुंबदों, या मुकुटों को तत्काल और बड़े पैमाने पर मरम्मत की आवश्यकता है.

केंद्रीय संगमरमर के गुंबद को सहारा देने वाले क्षैतिज स्तंभ का एक सिरा बहुत तेज़ी से नष्ट हो रहा है. मस्जिद के कर्मचारियों द्वारा खाली जगह में पत्थर डालकर खाई को भर दिया गया है. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

इंजीनियरों के अनुसार, जामा मस्जिद में तत्काल मरम्मत का काम शुरू किए जाने की सख्त ज़रूरत है, और इन कामों में सबसे ज़रूरी है सभी तीन ‘गुंबदो’, मेज़ेनाइन फर्श, छह ‘छत्रियों’ (छतरी के आकार की संरचना) सहित आंतरिक स्मारक का ऊपरी भाग, इन सभी की दरारों को भरा जाना.

मेज़ेनाइन फर्श की बुरी तरह क्षतिग्रस्त दीवार (बाएं) और ऊपरी छत (दाएं) बारिश के पानी के रिसाव के कारण क्षतिग्रस्त हो चुकी है.
फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

इंजीनियरों ने मस्जिद की इमारत की मरम्मत के लिए स्मारक के चारों तरफ के छज्जों (बालकनी) को बदलने, ‘कंगूरों’ को बदलने, इन फाटकों के ऊपर छोटी मीनारों सहित गेट नंबर 1 और 3 के ऊपरी हिस्से की मरम्मत, चारों ओर के बरामदे की छतों की वॉटरप्रूफिंग, सभी चार प्रमुख ‘छत्रियों’ (पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण) की मरम्मत, प्रमुख मीनारों की मरम्मत और दीवारों के जीर्ण शीर्ण पत्थरों को बदलने के सुझाव दिए हैं.

फोटो में दिख रहा है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार के ऊपर लगे पत्थर तेज़ी से खत्म हो रहे हैं. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

रामपुर के नवाब और हैदराबाद के निज़ाम ने जामा मस्जिद को दिया था अच्छा खासा दान, अंग्रेज़ो ने जामा मस्जिद को सैनिकों के बैरक की तरह किया इस्तेमाल

स्वतंत्रता संग्राम और ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के केंद्र के रूप में जामा मस्जिद की भूमिका के कारण, 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ो ने मस्जिद पर कब्जा कर लिया था. ईसाई शासकों ने कई वर्षों तक अपने सिख और ब्रिटिश-ईसाई सैनिकों के लिए मस्जिद को बैरक के रूप में इस्तेमाल किया और इसके अंदर नमाज़ और धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था. जब 1862 में मस्जिद को मुसलमानों को लौटा दिया गया और फिर से स्थापित किया गया, तो इसे मरम्मत की आवश्यकता थी. रामपुर के नवाब ने 1886 में 1.55 लाख रुपये की राशि दान की और हैदराबाद के निज़ाम ने 1926 में एक लाख रुपये दान किये, मस्जिद का इस्तेमाल बैरक के रूप में करने वाले ब्रिटिश शासकों ने मस्जिद के लिए एक पाई का भी योगदान नहीं दिया.

1940 के दशक के अंत में लगभग एक-चौथाई मस्जिद को फिर से मरम्मत की आवश्यकता थी, तब 75,000 रुपये के अनुदान के लिए एक अपील की गई थी. हैदराबाद के निज़ाम ने 1948 में मस्जिद के जीर्णोद्धार के लिए 3 लाख रुपये का अनुदान मंज़ूर किया. लेकिन थोड़े वक़्त बाद ही हैदराबाद राज्य का भारतीय संघ में विलय हो गया, जिस के कारण मस्जिद को 3 लाख रुपए की सहायता नहीं मिल सकी.

तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने जामा मस्जिद को “स्पेशल केस” मानते हुए धन आवंटित किया था

चूंकि मस्जिद को तत्काल मरम्मत की आवश्यकता थी, अतः तत्कालीन शाही इमाम मौलाना सैयद हमीद बुखारी के नेतृत्व में मुसलमानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने 1953 में पूर्व प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की, बैठक की व्यवस्था दिवंगत मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने की थी. चूंकि जामा मस्जिद एक संरक्षित स्मारक नहीं है, पंडित नेहरू ने वादा किया था कि एएसआई एक “स्पेशल केस” के रूप में मस्जिद की मरम्मत और नवीनीकरण का काम करेगा और सरकार केंद्रीय बजट में इसके लिए एक फंड आवंटित करेगी. पंडित नेहरू ने प्रतिनिधिमंडल को जतलाया था कि आम अपील के ज़रिए जामा मस्जिद की मरम्मत के लिए आम जनता से चंदा इकट्ठा करने से उनकी सरकार और देश की बदनामी होगी.

शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने बताया कि 1956 में मस्जिद परिसर के अंदर इंजीनियरों और तकनीशियनों की टीम के साथ एएसआई का एक कार्यालय स्थापित किया गया था. एएसआई ने लगभग 30 वर्षों तक अपना काम किया लेकिन इस दौरान बहुत ही कम मरम्मत की गई. उसके बाद एएसआई ने अपना जामा मस्जिद में ऑफिस बंद कर दिया.

अहमद बुखारी ने ठुकराया वाजपेयी सरकार का प्रस्ताव, ASI के साथ मेमोरेंडम (MoU) साइन करने से किया इनकार

2003 में, अहमद बुखारी ने तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री जगमोहन से मस्जिद की मरम्मत के लिए संपर्क किया क्योंकि एएसआई उनके अधीन था. हालांकि, संस्कृति मंत्री जगमोहन ने कुछ शर्तें रखीं, अगर मस्जिद प्रबंधन चाहता था कि एएसआई मरम्मत और संरक्षण कार्य करे तो सरकार की शर्तें मस्जिद प्रबंधन को माननी होगी.

जगमोहन ने मस्जिद प्रबंधन से “मस्जिद को एक संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित करने, जामा मस्जिद के रखरखाव और संरक्षण को लेकर अपनी-अपनी भूमिकाओं को परिभाषित करने के लिए एएसआई के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा ताकि मुसलमानों द्वारा नमाज़ या दूसरी गतिविधियों के लिए मस्जिद में बिल्कुल भी हस्तक्षेप न किया जा सके.”

हालांकि, बुखारी ने सरकार के प्रस्तावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से “मस्जिद के प्रबंधन में हस्तक्षेप के रास्ते खुल जाएंगे और यहां तक ​​कि इबादतगुज़ारों के लिए नमाज़ आदि के मूल उद्देश्य के उपयोग से भी समझौता कर लिया जाएगा.”

बुखारी गलत नहीं थे क्योंकि एएसआई के संरक्षण में मौजूद दिल्ली की सभी मस्जिदों में नमाज़ वर्जित है, हालाँकि स्मारकों में नमाज़ पर प्रतिबंध लगाने का कोई नियम नहीं है.

बुखारी ने जगमोहन को वापस लिखा था कि, “जब संविधान सभा में सावधानीपूर्वक और व्यापक बहस के बाद शामिल किये गए आदर्श प्रावधानों और संसद की धज्जियां उड़ाई जा सकती हैं और संख्या बल द्वारा संशोधित करने की मांग की जा सकती है, तो एक समझौता ज्ञापन की क्या हैसियत रहेगी?”

यह बताते हुए कि एमओयू पर हस्ताक्षर करने से ऐसा लगेगा कि मस्जिद को भारत सरकार को सौंप दिया गया है, शाही इमाम ने कहा कि, “इस घटना और इस के प्रभाव और गंभीरता बिल्कुल बाबरी मस्जिद विध्वंस के समान होंगे, यह स्थिति पैदा हो हम ये बिल्कुल भी पसंद नहीं करेंगे और यह भारत सरकार के हित में भी नहीं होगा.”

बुखारी ने इसके बजाय, जगमोहन को जामा मस्जिद के लिए पर्यटन और संस्कृति विभाग के वार्षिक बजट में एक विशेष प्रावधान करने का सुझाव दिया था, और एएसआई के लिए कहा कि उसे जामा मस्जिद ट्रस्ट के परामर्श से मरम्मत करनी चाहिए.

बुखारी ने यह भी कहा कि, समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर से देश में एक नया विवाद पैदा हो जाएगा और मुसलमान और जामा मस्जिद ट्रस्ट इसे किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे.

जामा मस्जिद की मरम्मत के लिए बुखारी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी किया था अनुरोध

बुखारी ने अगस्त 2004 में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को मस्जिद की जीर्ण स्थिति के बारे में एक पत्र लिखा था और उनसे दिवंगत पंडित नेहरू की तरह एएसआई को जामा मस्जिद की मरम्मत और संरक्षण करने का निर्देश देने का अनुरोध किया, हालांकि इस पत्र के अनुरोध के अनुसार कुछ भी नहीं हुआ.

जामा मस्जिद ट्रस्ट ने एएसआई और आगा खान फाउंडेशन से भी किया था संपर्क

अहमद बुखारी ने फरवरी 2014 में एएसआई से संपर्क कर मस्जिद की खराब स्थिति की जानकारी दी. बुखारी ने कहा कि मस्जिद की जर्जर स्थिति “राष्ट्र का नाम खराब करती है और हमें इस वजह से एक शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ता है.” अतः उन्होंने एएसआई से स्मारक की मरम्मत और संरक्षण करने का अनुरोध किया.

बुखारी ने तत्कालीन एएसआई महानिदेशक, प्रवीण श्रीवास्तव से भी संपर्क किया था और उनसे पूछा था कि क्या कोई व्यक्ति, ट्रस्ट या आगा खान फाउंडेशन जैसा एनजीओ जामा मस्जिद के जीर्णोद्धार का काम कर सकता है? और यदि हाँ, तो इसके लिए क्या प्रक्रिया होगी? बुखारी ने यह सवाल इसलिए किया था क्योंकि उस वक्त आगा खान फाउंडेशन हुमायूं के मकबरे की मरम्मत कर रहा था और अब इसे पूरा भी कर चुका है. हालांकि बुखारी को एएसआई के महानिदेशक से कोई जवाब नहीं मिला था.

बुखारी ने जून 2021 में सीधे आगा खान फाउंडेशन को पत्र लिखकर पूछा कि क्या फाउंडेशन जामा मस्जिद की तत्काल मरम्मत करने में कोई मदद कर सकता है, लेकिन यहां भी फाउंडेशन की अथॉरिटी ने कोई जवाब नहीं दिया था.

बुखारी ने जनवरी 2018 में फिर से एएसआई को पत्र लिखकर मस्जिद के जीर्ण-शीर्ण होने की स्थिति की ओर ध्यान दिलाया था. लेकिन, फिर से कोई जवाब नहीं आया.

जामा मस्जिद और उसके आसपास के परिसर की मरम्मत के लिए सऊदी अरब के प्रस्ताव को कांग्रेस सरकार ने ठुकरा दिया था

सऊदी अरब के दिवंगत किंग अब्दुल्ला ने 2006 में भारत के विशेष अतिथि के रूप में भारत का दौरा किया था, वो जामा मस्जिद भी आये थे उसके बाद, बुखारी ने बताया था कि किंग ने जामा मस्जिद और स्मारक के आसपास के घरों की मरम्मत करने की इच्छा व्यक्त की ताकि इस क्षेत्र का सौंदर्यीकरण किया जा सके.

बुखारी ने बताया था कि, “मुझे इस संबंध में रियाद से सऊदी सरकार के एक अधिकारी का भी फोन आया था, मैंने उनसे कहा कि मस्जिद प्रबंधन को इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सऊदी सरकार को इस संबंध में भारत सरकार से संपर्क करना चाहिए. लेकिन, दुर्भाग्य से, कांग्रेस के मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने सऊदी प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.”

बुखारी अफसोस जताते हुए कहते हैं, “सरकार न तो खुद मस्जिद की मरम्मत कर रही है और न ही दूसरों को करने दे रही है.”

शाही इमाम बुखारी का तर्क है कि यदि ईसाई मिशनरी अन्य गतिविधियों के अलावा चर्चों के निर्माण और रखरखाव के लिए विदेशों से मिले धन का उपयोग कर सकते हैं, तो जामा मस्जिद के लिए विदेशी धन का उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता है?

बुखारी ने पीएम मोदी को भी लिखा था पत्र

इमाम बुखारी, जामा मस्जिद की मरम्मत के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी दो पत्र लिख चुके हैं. 16 अगस्त, 2016 को उन्हें भेजे गए पहले पत्र में, उन्होंने मस्जिद की जीर्ण शीर्ण स्थिति के लिए आवश्यक मरम्मत के बारे में अवगत कराने के लिए पीएम से मिलने का समय मांगा गया था.

मस्जिद की बदहाली की ओर ध्यान दिलाते हुए शाही इमाम ने लिखा था कि, “मैं आपके संज्ञान में यह लाना आवश्यक समझता हूं कि मस्जिद के कई पत्थर जर्जर अवस्था में हैं. छतों से रिसाव हो रहा है, और अक्सर बड़े पत्थर ज़मीन पर गिर जाते हैं, हालाँकि, शुक्र है, कोई दुर्घटना नहीं हुई है.” लेकिन पीएम मोदी ने इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया.

एक मीनार से कुछ पत्थर गिरने के एक दिन बाद 6 जून 2021 को उन्होंने दूसरा पत्र लिखा. इस पत्र में फिर से उन्होंने पीएम से अनुरोध किया कि वे एएसआई को स्मारक का निरीक्षण करने और आवश्यक मरम्मत शुरू करने का निर्देश दें. लेकिन फिर से पीएम की ओर से पत्र पर कोई जवाब नहीं आया.

जामा मस्जिद, संरक्षित स्मारक नहीं, एएसआई इसकी मरम्मत नहीं कर सकता: मीनाक्षी लेखी

जामा मस्जिद की मरम्मत और जीर्णोद्धार का मुद्दा 9 दिसंबर, 2021 को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सांसद पीवी अब्दुल वहाब ने संसद में उठाया था. हालांकि संस्कृति मंत्री मीनाक्षी लेखी ने यह जवाब दिया था कि सरकार दिल्ली जामा मस्जिद की मरम्मत और नवीनीकरण नहीं कर सकती क्योंकि एएसआई की सूची में आने वाला एक संरक्षित स्मारक नहीं है.

जब अब्दुल वहाब ने उन्हें मस्जिद के संबंध में विशेष कोष के लिए शाही इमाम के पत्र के बारे में याद दिलाया, तो उन्होंने कहा कि उनके विभाग को ऐसा पत्र नहीं मिला है. इसलिए, सरकार ने जामा मस्जिद के जीर्णोद्धार के लिए विशेष धन आवंटित नहीं किया.

हालांकि, इमाम बुखारी ने संस्कृति मंत्री के दावों का खंडन किया. उन्होंने कहा कि एएसआई दक्षिण भारत में ऐसे कई मंदिरों की मरम्मत कर चुका है जो संरक्षित स्मारकों की सूची में नहीं हैं. एएसआई ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर और महाराष्ट्र में कुछ हिंदू और जैन मंदिरों की भी मरम्मत की जो कि संरक्षित स्मारक नहीं हैं. शाही इमाम चाहते हैं कि सरकार दरियादिली दिखाए और जामा मस्जिद और मुस्लिम स्मारकों के प्रति पक्षपाती न हो.

बुखारी को है पीएम मोदी से मस्जिद की मरम्मत करवाने की उम्मीद

बुखारी को उम्मीद हैं कि पीएम मोदी कार्रवाई करेंगे और एएसआई को मस्जिद की मरम्मत करने और इसे क्षय और नुकसान से बचाने का निर्देश देंगे.

जामा मस्जिद के अन्य क्षतिग्रस्त हिस्सों की तस्वीरें:

मस्जिद के मुख्य भाग के प्रवेश द्वार के शीर्ष पर क्षतिग्रस्त पत्थर की दीवारें. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.

सफेद आयताकार हिस्सा, 2016 में दो मुख्य मीनारों में से एक से मूल लाल बलुआ पत्थर गिरने के बाद की गई मरम्मत को दर्शाता हुआ.
फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.
मस्जिद के मध्य भाग में मौजूद एक मीनार की डिज़ाइन का क्षतिग्रस्त संगमरमर का हिस्सा. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.
बारिश के पानी के रिसने के कारण मस्जिद के भूतल की छत का क्षतिग्रस्त हिस्सा. फोटो: मुहम्मद इब्राहीम, इंडिया टुमारो.
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