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Saturday, May 18, 2024
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लोकतंत्र के भविष्य की दिशा तय करता किसान आंदोलन

मसीहुज़्ज़मा अंसारी

नई दिल्ली | किसान आंदोलन को सात महीने पूरे हो चुके हैं. नए कृषि क़ानूनों के विरोध में सात महीने पहले देश भर से किसान दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचे थे जिन्हें बलप्रयोग कर पुलिस द्वारा रोक लिया गया. दिल्ली प्रवेश कर रहा किसानों का जत्था जिस बॉर्डर पर भी था वहीं धरने पर बैठ गया और अब तक वहीं डंटा हुआ है. इन सात महीनों में सरकार पर लोकतांत्रिक आंदोलन के दमन का इल्ज़ाम लगता रहा है.

सरकार से किसानों की कई दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन कोई भी बैठक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार मीडिया में ही बात चीत करने की बात करती है मगर जब बात चीत करने के लिए बैठकें होती हैं तो उसमें कोई ठोस नतीजे निकल कर सामने नहीं आते. किसानों का यह भी दावा है कि सरकार की मंशा कभी भी बातचीत से हल निकालने की नहीं रही बल्कि अपनी बात मनवाने की रही है. साथ ही किसान संगाठनों और किसान नेताओं द्वारा यह भी दावा किया जाता रहा है कि सरकार किसान संगठनों में फूट डालकर आंदोलन को ख़त्म करने का षणयंत्र रचने का भी प्रयास किया है.

पिछले सात महीनों में प्रदर्शन कर रहा किसान सरकारी ज़ुल्म, सत्ता का षणयंत्र, मौसम की मार और 500 किसानों की शहादतें देकर भी धरना स्थल पर डंटा हुआ है. किसानों का कहना है कि अगर वो क़ानून वापसी के बिना वापस लौट गए तो उनके हाथ से सबकुछ चला जाएगा और उन्हें अपना खेत पूंजीपतियों और साहूकारों के आगे गिरवी रखना पड़ेगा.

कोरोना की दूसरी लहर के बाद किसानों ने फिर सरकार पर हमला बोला

कोरोना की दूसरी लहर में कहा जा रहा था कि किसान आंदोलन अब खत्म हो चुका है. मीडिया का एक वर्ग यह प्रचारित कर रहा था कि किसान आंदोलन समाप्ति की ओर है. बार-बार धरना स्थल की फ़ोटो दिखाकर किसान आंदोलन के ख़त्म होने का सरकारी सबूत पेश किया जा रहा था. हालांकि, 26 मई को किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने पर किसानों ने देशव्यापी बंद का आह्वान किया था जिसका असर देशभर में देखने को मिला था. किसान संगठनों ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह सरकार को किसान आंदोलन का प्रभाव दिखाने के लिए था. कोरोना में हम सोशल डिस्टेंसिंग के मद्देनज़र ज़्यादा भीड़ से बचने का प्रयास कर रहे थे मगर गोदी मीडिया के द्वारा इसे किसान आंदोलन की समाप्ति कह कर प्रचारित किया जा रहा था.

30 जून को गाज़ीपुर बॉर्डर पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा कथित रूप से किसानों पर हमला किया गया

बीते 30 जून को किसानों द्वारा हूल दिवस मनाने के ऐलान किया गया था. उसी दिन गाज़ीपुर बॉर्डर पर भाजपा नेताओं द्वारा हमला करने का मामला सामने आया. किसानों ने आरोप लगाया कि भाजपा आन्दोलन ख़त्म करने के लिए गुंडे भेज रही रही है. किसानों ने आरोप लगाया कि भाजपा के कार्यकर्ता मंच पर कब्ज़ा करना चाह रहे थे और आन्दोलन को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे थे. किसानों और भाजपा कार्यकर्ताओं में झड़प भी हुई. हालांकि, 200 के लगभग किसानों पर मामला दर्ज किया गया है.

26 जून को आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर हुआ देशव्यापी प्रदर्शन

26 जून को किसान आंदोलन के 7 महीने पूरे होने पर देशभर में किसानों ने ट्रैक्टर रैलियां निकालीं और सरकार के विरोध में प्रदर्शन किया. इस मौके पर किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख चेहरे के रूप में उभरे राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार ऊंचा सुनती है इसलिए सरकार को ट्रैक्टर की आवाज़ सुनानी पड़ती है और किसानों की मांगों पर धयन दिलाना पड़ता है.

राकेश टिकैत ने कहा है कि जल्द ही आंदोलन को और तेज़ करने के लिए विस्तृत प्लानिंग की जाएगी और अगर ज़रूरत पड़ी तो दिल्ली में दाखिल होने पर भी विचार करेंगे.

किसानों के पास प्रदर्शन के अलावा कोई चारा नहीं

दिल्ली की सीमाओं पर पिछले सात महीनों से धरने पर बैठे किसानों ने कहा है कि उनके पास प्रदर्शन ही आखरी विकल्प है. सरकार के पास तो इस क़ानून के वापसी का विकल्प है इसलिए सरकार को अपनी ज़िद और अहंकार को छोड़कर इस क़ानून को वापस लेना चाहिए.

किसान एकता मोर्चा के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने हमसे बातचीत में कहा कि, “यह आंदोलन देश का सबसे बड़ा और सबसे लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन है, इस आंदोलन में 500 किसानों की शहादतें शामिल हैं, उनके लहू ने इस आंदोलन को खड़ा किया है और यहां तक पहुंचाया है इसलिए हम कृषि क़ानूनों की वापसी तक पीछे नहीं हटने वाले. देश का किसान ही देश की गरिमा है और इस गरिमा को सरकारी नीयत की भेंट नहीं चढ़ने देंगे.

इसी प्रकार आल इंडिया किसान सभा के प्रमुख हन्नान मुल्ला ने कहा कि, “किसान का पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं उठता. दिल्ली की सीमाओं पर तो 7 महीनों से प्रदर्शन चल रहा है लेकिन क़ानून बनने से पहले इस बिल का देश के अलग अलग हिस्सों में प्रदर्शन लगभग एक साल से चल रहा है. किसान यह तय कर के दिल्ली की सीमाओं पर आया था कि क़ानून वापसी से पहले वो अपने घरों को जाने वाला नहीं है और आज 500 से अधिक किसानों की शहादतें देकर भी सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहा है.”

हन्नान मुल्ला ने कहा है कि, “केंद्र सरकार, जनवादी सरकार नहीं है इसलिए यह किसानों की बात नहीं सुन रही. यह सरकार पूंजीवादी सरकार है इसलिए पूंजीपतियों के इशारे पर चल रही है. अगर केंद्र में बैठी भाजपा जनवादी सरकार होती तो प्रदर्शन कर रहे किसानों की सुनती, जनता की सुनती न की पूंजीपतियों को.”

राकेश टिकैत ने कहा है कि, “हम पीछे नहीं हटने वाले हैं. पीछे हटना हमारी डिक्शनरी में नहीं है. जिस तरह फौजें मोर्चे पर होती हैं तो गोली खाती हैं उसी तरह हम भी मोर्चे पर हैं और लड़ रहे हैं.”

टिकैत ने कहा, “इस समय देश पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है. इनको देश की जनता, व्यापारी, किसान और मजदूरों से कोई लेना देना नहीं है. हैरानी की बात है कि किसान देश की राजधानी को घेर कर बैठे हैं और सरकार बात ही नहीं कर रही है. किसान भी पीछे नहीं हटेगा.

जारी रहेगा किसान आंदोलन

किसान आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर इस आंदोलन के भविष्य को लेकर तरह तरह के क़यास लगाए जा रहे हैं. कोई इसके भविष्य को लेकर संशय में है तो कोई इस आंदोलन से सत्ता को हटाने की उम्मीद लगाए बैठा है. ऐसे में किसान संगठनों का कहना है कि वह हिम्मत नहीं हारने वाले. इस सवाल पर की सात महीने पूरे होने पर आप का धैर्य ख़त्म नहीं हो रहा? किसानों ने जवाब देते हुए कहा कि सबसे अधिक धैर्यवान किसान होता है. इसलिए हम धैर्य के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं और आगे भी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करते रहेंगे.

लड़ाई लंबी होने का मतलब आंदोलन कमज़ोर होना नहीं है

गाज़ीपुर बॉर्डर पर मोर्चा संभाले किसान एकता मोर्चा के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने कहा कि, “बार-बार यह कहा जा रहा कि आंदोलन लंबा हो गया, कमज़ोर हो गया या ख़त्म हो रहा. यह सब सरकारी प्रोपगंडा है. कोई भी आंदोलन ऐसे ही चलता है. लोग अपने दैनिक जीवन के काम को करते हुए आंदोलन को गति देते हैं. जैसे जैसे लोगों को समय मिलता है, आंदोलन का हिस्सा बनते रहते हैं. कभी महिलाएं प्रदर्शन में शामिल होती हैं, कभी बच्चियां, कभी छात्र तो कभी युवा. सभी लोग अपने -अपने समय और सुविधानुसार प्रदर्शन में शामिल होकर आंदोलन को अपना समर्थन देते हैं.”

बाजवा ने कहा कि, “सरकार जब भी आंदोलन की व्यापकता का अंदाज़ा लगाना चाहे हमें सूचित कर दे, हम एक कॉल पर दिल्ली और देशभर में किसानों को जमा कर के बता देंगे कि आंदोलन कमज़ोर है या हर दिन मज़बूत हो रहा है.”

उन्होंने कहा कि, “सरकार चाहती है इन सब बातों से वह आंदोलन को ख़त्म कर देगी मगर सरकार का अंदाज़ा गलत है. हर दिन आंदोलन मज़बूत हो रहा है और हर दिन दर्जनों संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धजीवियों का समर्थन आंदोलन को मिल रहा है.”

आल इंडिया किसान सभा के हन्नान मुल्ला ने कहा कि, “किसी भी आंदोलन का इतिहास यही कहता है कि इसमें सक्रिय रूप से कुछ ही लोग शामिल दिखाई देते हैं मगर इसका प्रभाव इतना अधिक होता है कि सरकारें आंदोलन की व्यापकता के अंदाज़ा तक नहीं लगा पातीं और उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ता है. किसान आंदोलन भी अपनी व्यापकता से देशभर के जन-जन में सरकारी हठधर्मिता को उजागर कर दिया है.”

भारतीय किसान यूनियन, (एकता, उग्रहा) पंजाब का जत्था दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर पिछले 7 महीनों से डेरा डाले हुए है. पंजाब से आए किसान संगाठनों में सबसे बड़ा जत्था भाकियू एकता उग्रहा को ही माना जाता है. इस संगठन के प्रवक्ता झंडा सिंह ने हमसे बात करते हुए कहा कि, “सरकार हमें गुलाम बनाना चाह रही है इसलिए हमारी मांग को अनदेखा कर रही है. हम अपनी मांगों से पीछे हटने वाले नहीं हैं और किसान आंदोलन आगे भी जारी रहेगा और इसको मज़बूत बनाने के लिए आगे योजनाएं बनाई जाएंगी.”

हर दिन मिल रहा लाखों लोगों का समर्थन, अंदोलन हो रहा व्यापक

इस सवाल पर कि क्या अब आंदोलन ख़त्म हो रहा है, किसान नेता हन्नान मुल्ला कहते हैं कि, “हर दिन देश के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न संगठनों, नागरिक समूहों और व्यक्तिगत तौर पर लोग हज़ारों, लाखों की संख्या में किसान आंदोलन को अपना समर्थन दे रहे हैं. क्या कोई आंदोलन इस स्थिति में ख़त्म हो सकता है? किसानों का यह आंदोलन अब जन आंदोलन बन चुका है.”

उन्होंने कहा कि, “दिल्ली व अन्य राज्यों में शिक्षक, बुध्दजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, माहिलाएं, छात्र और युवा हमारे साथ आरहे हैं. लोग जब किसी आंदोलन से ख़ुद से जुड़ने लगें तो वह जनांदोलन बन जाता है और ऐसे आंदोलन को भला कौन कमज़ोर कर सकता है.?”

किसान आंदोलन के कारण ही बंगाल में भाजपा पराजित हुई, आगे भी यही होगा

दिल्ली के बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि सरकार किसान आंदोलन के प्रभाव का अंदाज़ा इस बात से लगा सकती है कि किसानों के प्रदर्शन के बाद बंगाल विधानसभा चुनाव में भजपा को बुरी तरह से पराजित होना पड़ा. किसानों ने बंगाल में जाकर कई सभाएं की थीं और भाजपा को हराने का आह्वान किया था. इसका असर साफ तौर पर इस तरह देखा जा सकता है कि हिन्दू बहुल सीटों पर भी भाजपा को 90 प्रतिशत हिन्दू वोटरों ने नकार दिया.

किसानों का कहना है कि अगर कृषि क़ानून वापस नहीं हुआ तो राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में बंगाल की तरह ही हम भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील करेंगे. अगले वर्ष 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिनमें उत्तर प्रदेश पर देशभर की निगाहें टिकी हैं.

इस सवाल पर कि यदि भाजपा का विरोध करेंगे तो समर्थन किसका करेंगे? हन्नान मुल्ला कहते हैं कि, “विरोध भाजपा का करेंगे और भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील करेंगे. समर्थन किसका करना है यह अलग अलग राज्यों के नागरिक तय करेंगे.

इस सवाल पर कि क्या किसान भाजपा के विरोध में वोट करवा पाने में सफल हो पाएगा, हन्नान मुल्ला कहते हैं कि, “किसान इस देश का केवल अन्नदाता ही नहीं है बल्कि वोटर भी है और हमारे वोट से सरकारें बनती हैं.”

जगतार सिंह बाजवा कहते हैं कि, “सरकार वर्तमान युग की ईस्ट इंडिया कंपनी है जिसे अपने मालिकों, अडानी अम्बानी को फायदा पहुंचाना है, इसे आम जन ज़े कोई सरोकार नहीं और यही बात जनता को बताना है.”

लोकतांत्रिक प्रदर्शन को दबाने की नाकाम कोशिश

किसान आंदोलन के बाद से सरकार की देश और दुनियाभर में आलोचना हुई है जिसके कारण सरकार बैकफुट पर आई है. हालांकि सरकार ने किसान आंदोलन को ख़त्म करने का भरपूर प्रयास किया है.

सरकार ने किसान आंदोलन को जितना ही दबाने की कोशिश की, अंदोलन और मज़बूत होता गया. अब इस किसान आंदोलन को देश का सबसे बड़ा आंदोलन होने का गौरव प्राप्त हो चुका है.

यूं तो भाजपा सरकार में देश में बहुत से आंदोलन हुए जिसे बदनाम करने और आंदोलन को ख़त्म करने में हर हथकंडे अपनाए गए मगर किसान आंदोलन में सरकार हर हथकंडे अपनाने के बाद भी आंदोलन को कमज़ोर नहीं कर सकी.

किसान आंदोलन ने सरकार द्वारा प्रदर्शन करने के लोकतांत्रिक अधिकारों पर पहरा लगाने की प्रथा पर अंकुश लगाया है और लोकतंत्र को एक नई दिशा दी है.

किसान आंदोलन के प्रभाव को देखते हुए अब हर पार्टी किसानों के हक़ में बात कर रही. जो पार्टियां तुष्टीकरण के खेल में उलझी हुई थीं अब किसानों के मुद्दे पर केंद्रित हो गई हैं और यही किसान आन्दोल की सबसे बड़ी कामयाबी है.

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