सैयद ख़लीक अहमद | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने मोहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती जहांगीर आलम कासमी नामक दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने आरोप लगाया है कि उक्त दोनों व्यक्तियो का सम्बन्ध धोखाधड़ी करके बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने वाले रैकेट से है.
गिरफ्तार किये गए दोनों व्यक्ति दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर इलाके के बाटला हाउस के रहने वाले हैं. गौतम, इस्लामिक दावा सेंटर (आईडीसी) नामक संस्था चलाते हैं तथा इसके चेयरमैन भी हैं. कासमी आईडीसी के साथ काम करते हैं. IDC की स्थापना गौतम ने 2010 में की थी.
दोनों व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420/120B, 153A, 153B, 295 और 511 के तहत और उत्तर प्रदेश गैर कानूनी धर्म परिवर्तन निषेध विधेयक-2021 की धारा 3 और 5 के तहत एटीएस पुलिस स्टेशन लखनऊ में मामला दर्ज किया गया है.
यूपी पुलिस ने एक मीडिया बयान में दावा किया कि दोनों धर्मांतरण करवाने वाला एक रैकेट चला रहे थे. विशेष रूप से गरीब परिवारों के लोगों और बहरे और गूंगे छात्रों को पैसे, नौकरी और शादी का प्रलोभन देकर उनका धर्म परिवर्तन कर रहे थे.
पुलिस ने उन दोनों पर “आईएसआई और अन्य स्रोतों के माध्यम से प्राप्त विदेशी धन के की मदद से धर्मांतरण कराने” का आरोप लगाया है. यूपी पुलिस ने दावा किया कि, “दोनों आरोपी व्यक्ति धर्मांतरित लोगों के मूल धर्म के खिलाफ नफरत पैदा करके और उन्हें कट्टरपंथी बनाकर सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे को खत्म करने की कोशिश कर रहे थे.”
लेकिन आईडीसी की वेबसाइट ने पुलिस के दावों का खंडन करती है. वेबसाइट में कहा गया है कि, “यह संस्था फातिमा चैरिटेबल फाउंडेशन के खाता संख्या 0711131345 व कोटक महिंद्रा बैंक में केवल भारतीय बैंक खातों से दान प्राप्त करती है” फाउंडेशन नॉन-एफसीआरए खाते के रूप में पंजीकृत है.
यदि पुलिस के दावों पर यकीन किया जाए तो दोनों ने अब तक लगभग 1000 हिंदू महिला पुरुषों को इस्लाम धर्म में धर्मांतरण करवाया है. और बाद में उनकी शादियां मुस्लिम लोगों से करवाई.
पुलिस के अनुसार दोनों ने नोएडा डेफ सोसाइटी के कई मूक-बधिर छात्रों का उनके माता-पिता की जानकारी के बिना धर्म परिवर्तन किया है. नोएडा डेफ सोसाइटी एक आवासीय विद्यालय है यहां बधिर बच्चों को पढ़ाया और प्रशिक्षित किया जाता है.
गौतम और कासमी पर एक मूक-बधिर छात्र आदित्य गुप्ता का धर्म परिवर्तन कर उसे दक्षिण भारत के किसी संस्थान में भेजने का भी आरोप है. कानपुर जिले के कल्याणपुर निवासी, छात्र के पिता ने जांच के दौरान पुलिस को बताया कि उसने अपने बेटे के लापता होने की आईपीसी 364 के तहत गुमशुदगी दर्ज कराई थी. लड़के के पिता ने यह भी दावा किया कि वह किसी तरह से वीडियो कॉलिंग के ज़रिए अपने बेटे से संपर्क कर पाए थे और तब पता चला कि उसे दक्षिण भारत में कहीं स्थानांतरित कर दिया गया है.
पुलिस ने अपने प्रेस बयान में सोशल मीडिया पर डाले गए एक वीडियो का भी हवाला दिया है जिसमें मन्नू यादव नाम के व्यक्ति ने दावा किया है कि नोएडा डेफ सोसाइटी में पढ़ने वाले उसके मूक-बधिर बेटे को उसकी जानकारी के बिना इस्लाम धर्म में परिवर्तित कर दिया गया था. यादव अपने आपको वीडियो में हरियाणा के गुड़गांव जिले के दौलताबाद के बाबूपुर के रहने वाला बताते हैं.
धर्म परिवर्तन की गतिविधियों का पता कैसे चला और उमर गौतम को कैसे गिरफ्तार किया गया?
पुलिस का दावा है कि गाज़ियाबाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कुछ संदिग्धों से पूछताछ के बाद “अवैध” धर्म परिवर्तन की गतिविधियों का भंडाफोड़ किया गया था.
गाज़ियाबाद पुलिस सूत्रों ने बताया कि 2 जून को दो संदिग्ध मुस्लिमों को डासना मंदिर परिसर में जाने की अनुमति नहीं होने के कारण अपनी पहचान छुपाकर मंदिर गए थे. एक संदिग्ध की पहचान काशी गुप्ता के रूप में हुई, जबकि दूसरे ने खुद की पहचान विपुल विजरवर्गीय के रूप में की.
दोनों संदिग्ध मंदिर के महंत नरसिम्हानंद के भाषण को सुनने वाले दर्शकों का हिस्सा थे, इसलिए महंत के लिए तैनात सुरक्षाकर्मी को उनके बारे में कुछ गड़बड़ होने का संदेह हुआ.
पूछताछ करने पर उन्होंने अपनी असली पहचान बताई. काशी ने खुदको काशिफ और विपुल ने खुद को रमज़ान बताया. रमज़ान ने ब्राह्मण जाति से धर्म परिवर्तन किया है और उसकी बहन की शादी काशिफ से हुई है. काशिफ एक धार्मिक परिवार से ताल्लुक रखता है.
जांच के दौरान उन्होंने उमर गौतम समेत कई लोगों के नामों का ज़िक्र किया. उन्होंने कथित तौर पर कहा कि गौतम हिंदुओं का इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने में शामिल रहे हैं.
इसके बाद 18 जून की रात उमर गौतम को उनके घर से गिरफ्तार किया गया था. गौतम की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उसी रात उनके सहयोगी कासमी को उठा लिया. पुलिस ने दावा किया है कि 1000 से अधिक हिंदुओं का इस्लाम धर्म परिवर्तन करने से संबंधित दस्तावेज बरामद किए गए हैं.
इस्लामिक दावा सेंटर (आईडीसी) की वेबसाइट धर्म परिवर्तन का दावा नहीं करती
गौतम की वेबसाइट islamicdawahcentre.org में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि आईडीसी लोगों का धर्म परिवर्तन करने में शामिल है.
हालांकि, यह वेबसाइट कहती है कि आईडीसी ने शैक्षिक, आर्थिक, कानूनी और नैतिक रूप से 400 से अधिक धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों (महिला/पुरुष) की मदद की है.”
यह सेंटर ‘धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों’ के कानूनी दस्तावेज तैयार करने में मदद करने का भी दावा करता है.
वेबसाइट में उल्लेख किया गया है कि “आईडीसी में अब तक 1500 से अधिक ‘धर्म परिवर्तन करने वाले लोगो’ के कानूनी दस्तावेज तैयार किए जा चुके हैं. धर्म परिवर्तन करने वाले कई लोगों की इस्लामिक शिक्षा और उचित तरीके से इस्लाम सिखाने के लिए उन्हें विभिन्न इस्लामिक स्कूल ऑफ नॉलेज (मदरसों) में भेजा गया है.
वेबसाइट में यह भी दावा किया गया है कि, “आईडीसी ने भारत के हिंदी जाने वाले लोगों के लिए मदीना मुनव्वराह के प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर ज़ियाउर रहमान आज़मी द्वारा रचित पवित्र कुरान के विश्वकोश को भी प्रकाशित किया है. ज़ियाउर रहमान आज़मी जाने माने विद्वान है तथा उन्होंने धर्म परिवर्तन करके इस्लाम कबूल किया था.
वेबसाइट के अनुसार आईडीसी के उद्देश्य इस प्रकार हैं :
- जीवन के हर क्षेत्र में शांति के लिए इस्लाम का संदेश फैलाना.
- शांति और भाईचारे का संदेश देने के लिए अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देना.
- धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों के लिए कानूनी सहायता.
- इस्लामी ज्ञान प्राप्त करने के लिए धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को सुविधा देना.
- धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों के लिए विवाह में सहायता.
- विधवाओं और अनाथों को आजीविका के लिए मदद करना.
कौन हैं उमर गौतम?
1964 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर और इलाहाबाद शहरों के बीच स्थित एक कस्बे फतेहपुर में एक हिंदू राजपूत परिवार में मोहम्मद उमर गौतम का जन्म श्याम प्रताप सिंह गौतम के रूप में हुआ था.
उन्होंने उत्तराखंड में पंत विश्वविद्यालय से कृषि विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1984 में पोस्ट ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया और इस्लाम का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालय छोड़ दिया.
उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से इस्लामी अध्ययन में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और वहां लेक्चरर के रूप में भी काम किया.
विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद उन्होंने कई संगठनों के साथ काम किया और फिर 2010 में आईडीसी की स्थापना की.