इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | कोरोना महामारी में पत्रकारों की हुई मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें COVID-19 से हुई 346 पत्रकारों की मौत को लेकर मुआवज़े की मांग की गई है और साथ ही इलाज करा रहे पत्रकारों को फ्री मेडिकल सुविधा देने की मांग भी उठाई गई है.
लाइवलॉ.इन की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष COVID-19 स्वत: संज्ञान मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया, जिसमें महामारी के दौरान पत्रकारों और मीडिया कर्मियों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है और पत्रकारों और उनके परिवारों को उचित और पर्याप्त COVID-19 उपचार सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई है.
यह याचिका डॉ. कोटा नीलिमा की ओर से एडवोकेट लुबना नाज़ द्वारा दायर की गई और सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद द्वारा इसे देखा गया.
डॉ. कोटा नीलिमा, इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज़ और इसकी मीडिया पहल ‘रेट द डिबेट’ की निदेशक हैं.
इस आवेदन में कहा गया है कि जो डेटा एकत्र किया गया है उसके मुताबिक अप्रैल 2020 से अब तक 346 पत्रकारों की मौत हुई हैं। इसके अलावा, उन पत्रकारों के लिए चिकित्सा सुविधाओं और संस्थागत समर्थन की कमी है, जो महामारी के दौरान बिना किसी मान्यता के काम कर रहे हैं.
याचिका में कहा गया कि, “COVID-19 के कारण 253 पत्रकारों की मौत हुई है, जिनकी पुष्टि हो चुकी है और 93 मौतें जो 1 अप्रैल 2020 से 19 मई 2021 के बीच हुई हैं। उक्त सूची संपूर्ण नहीं है। 1 अप्रैल 2020 से 19 मई 2021 के बीच औसतन 4 पत्रकारों की मौत हुई है. डेटा बताता है कि 34% मौतें मेट्रो शहरों में हुई हैं जबकि 66% मौतें छोटे शहरों में हुई हैं। इसके अलावा डेटा से यह भी पता चलता है कि 54% मौतें प्रिंट मीडिया में हुई हैं और सबसे ज्यादा मौतें 41-50 साल के आयु वर्ग में हुई हैं.”
पत्रकारों के मुद्दे को लेकर दायर की गई याचिका में इस बात पर नाराज़गी जताई गई है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को पत्र लिखने और मीडियाकर्मियों को फ्रंटलाइन वर्कर घोषित करने का अनुरोध करने के बावजूद केंद्र सरकार ने उन्हें वैक्सीनेशन में प्राथमिकता के लिए नामित नहीं किया है.
दायर की गई याचिका में आगे कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई पत्रकार कल्याण योजना (जेडब्ल्यूएस) के तहत विशेष अभियान के दिशानिर्देशों में एक पत्रकार के मान्यता विवरण की आवश्यकता होती है. इसके तहत मीडिया कर्मियों में प्रबंधकीय स्तर पर या पर्यवेक्षी रूप में कार्यरत व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जाएगा, जो बड़ी संख्या में मीडिया क्षेत्र में कार्यरत लोगों को इस राहत से वंचित करती है.
लाइवलॉ.इन के अनुसार, याचिका में कहा गया है कि, “केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा प्रदान किए जा रहे मुआवजे और अन्य लाभों के संबंध में मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों / मीडियाकर्मियों के बीच केवल तकनीकी अंतर भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.”
याचिका में उन पत्रकारों के परिजनों को प्रदान की जाने वाली अनुग्रह राशि की एक निश्चित राशि देने की मांग की गई है, जिनकी ड्यूटी के दौरान COVID-19 से मृत्यु हो गई है।
निम्नलिखित प्रार्थनाओं की मांग की गई हैं;
(a) सभी पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को ‘फ्रंटलाइन वॉरियर्स’ के रूप में मान्यता दिया जाए ताकि वे ऐसे सभी कर्मचारियों को दिए जा रहे लाभों का लाभ उठा सकें।
(b) सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा पत्रकारों/मीडिया व्यक्तियों (मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त) के लिए COVID -19 महामारी के लिए चिकित्सा सुविधाओं और संबंधित लाभों के संबंध में एक व्यापक दिशानिर्देश तैयार किया जाए।
(c) महामारी के इस संकट समय में पत्रकारों के निजी और साथ ही सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और उनके बिलों की प्रतिपूर्ति के लिए सरकार को निर्देश दिया जाए।
(d) सरकार को पत्रकार के तत्काल परिवारों को अनुग्रह राशि या रोजगार सहायता के रूप में प्रतिपूरक सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया जाए।
(e) राज्यों के बीच समानता बनाए रखने के लिए मुआवजे के रूप में दी जाने वाली न्यूनतम राशि तय करें।
(f) सरकार को निर्देश दें कि पत्रकारों को वॉक-इन-रजिस्ट्रेशन और टीकाकरण की सुविधा दी जाए। इनके लिए CoWIN पर पंजीकरण करना अनिवार्य न रखा जाए।
(g) सरकार को निर्देश दें कि मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों, नियोजित और स्वतंत्र, ग्रामीण और शहरी, तकनीशियनों के बीच भेदभाव न करें और योजनाओं के उद्देश्य से सभी को सहायता प्रदान की जाए।
(h) सरकार को ‘पत्रकार और मीडियाकर्मियों’ की परिभाषा में संपादकीय स्टाफ, फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, कैमरामैन, तकनीशियन, तकनीकी कर्मचारी और सभी सहायकों को शामिल करने का निर्देश दिया जाए।