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Saturday, May 18, 2024
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जितिन प्रसाद का कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाना यूपी की राजनीति में कोई बदलाव नहीं लाएगा

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से यूपी की राजनीति में कोई बदलाव नहीं होगा। जितिन प्रसाद को राजनीति विरासत में मिली है और वह कोई जमीनी राजनेता नहीं हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने कांग्रेस को छोंड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है।

आज नई दिल्ली में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को भाजपा के दफ्तर ले जाकर पार्टी की सदस्यता दिलवाई। जितिन प्रसाद कांग्रेसी नेता से भाजपाई नेता हो गए। पीयूष गोयल जितिन प्रसाद के भाजपा में आने को बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं। वे जितिन प्रसाद के भाजपा में आने को जोर- शोर से प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं। पीयूष गोयल ऐसा करके लोगों को यह संदेश देने का काम कर रहे हैं कि भाजपा आज देश की सबसे बड़ी और सक्षम पार्टी है। वे ऐसा करके कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे हैं जबकि हकीकत इससे कोसों दूर है।

कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से यूपी की राजनीति में कोई बदलाव नहीं होगा। क्योंकि जितिन प्रसाद कोई जमीनी स्तर के राजनेता नहीं हैं। उन्हें राजनीति विरासत में मिली है। उसी विरासत की वह राजनीति कर रहे हैं। उनकी पहचान कांग्रेस नेता रहे जितेंद्र प्रसाद के पुत्र के रूप में अधिक होती है। जितिन प्रसाद की राजनीति उनके पिता के नाम पर चलती रही है। जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं और वह भी स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बढ़ावे और स्थापित किए हुए रहे हैं।

राजनीति में राजीव गांधी ने जितेंद्र प्रसाद को काफी आगे बढ़ाया था। राजीव गांधी ने उनको सांसद बनवाया था और अपना यानि कांग्रेस अध्यक्ष का पीए बनाया था। राजीव गांधी की मौत के बाद जितेंद्र प्रसाद की आस्थाओं ने पलटी मारी और वह पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के साथ चले गए। नरसिंह राव के साथ उन्होंने सत्ता का जमकर स्वाद चखा। नरसिंह राव ने इन्हें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। लेकिन न तो कांग्रेस मजबूत हुई और न ही जितेंद्र प्रसाद।

जितेंद्र प्रसाद की मौत के बाद उनके पुत्र जितिन प्रसाद ने सोनिया गांधी का हाथ थामा। सोनिया गांधी ने उन्हें कांग्रेस में सम्मान दिया और उत्तर प्रदेश में धौरहरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में टिकट देकर चुनाव लड़वाया। चुनाव जीतने के बाद जितिन प्रसाद को सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार में राज्य मंत्री के रुप में शामिल करवाया। इसीके बाद जितिन प्रसाद की राजनीति चल निकली। लेकिन 2014 और2019 में जितिन प्रसाद धौरहरा से लोकसभा चुनाव हार गए। इसीके बाद वह राजनीति में अलग-थलग पड़ गए।

लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद जितिन प्रसाद को सोनिया गांधी ने राजनीति में समायोजित करने के लिए और राज्यसभा में भेजने का मन बनाया। लेकिन जितिन प्रसाद दूसरे दलों में अपने लिए जगह तलाशने लगे। इसकी भनक जब सोनिया गांधी को हुई तो उन्होंने चुप्पी साध ली। इसके बाद जितिन प्रसाद कांग्रेस में ही रहकर एक अलग संगठन बनाकर ब्राह्मणों की राजनीति करने लगे। लेकिन यह ब्राह्मण नहीं हैं और यह खत्री हैं। इसलिए ब्राह्मणों ने इन्हें कभी अपना नेता नहीं माना। यह कांग्रेस पार्टी के ऊपर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस के अंदर ही रहकर अपना संगठन चलाते रहे।

जितिन प्रसाद ने कई बार खुद के लोगों से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की मुहिम चलवाई। लेकिन इनकी गतिविधियों के कारण कांग्रेस ने इन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी। बल्कि विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता अजय कुमार लल्लू को कांग्रेस ने पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। अजय कुमार लल्लू जमीनी स्तर के राजनेता हैं और वह अपने दम पर राजनीति करते हैं। अजय कुमार लल्लू एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

जितिन प्रसाद काफी समय से दूसरे दलों में ठिकाना तलाश रहे थे। उन्होंने इसी सिलसिले में भाजपा से भी अंदर खाने संपर्क साधा हुआ था। लेकिन भाजपा उन्हें इंतजार करवा रही थी। किंतु बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भाजपा ने जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल होने की हरी झंडी दिखा दी। इसीके बाद आज जितिन प्रसाद कांग्रेस को टाटा, बाय-बाय कहकर भाजपा में शामिल हो गए।

जितिन प्रसाद के पार्टी में शामिल होने से भाजपा बहुत ख़ुश हो रही है। लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। भाजपा यह समझ रही है कि जितिन प्रसाद के पार्टी में आने से भाजपा को मजबूती मिलेगी, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। अगर जितिन प्रसाद इतने ही मजबूत जनाधार वाले और जमीनी स्तर के राजनेता होते तो क्यों वह लोकसभा चुनाव हार जाते।

जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से भाजपा को मजबूती मिले या न मिले, लेकिन जितिन प्रसाद को मजबूती जरूर मिल जाएगी और वह राजनीति में एक बार फिर समायोजित होकर राज्यसभा में या विधान परिषद में सदस्य बनकर बैठने में सफल हो जाएंगे।

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