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Sunday, May 19, 2024
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क्या राजद्रोह की आड़ में अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीनने का प्रयास किया जा रहा है ?

सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ ने कहा है कि, मीडिया की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में विशेष तौर पर भारतीय दंड संहिता की धारा1224 ए (राजद्रोह) और 153 ए (धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवासस्थान और भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समुदायों और समूहों के बीच सौहार्द बिगाड़ने) के दायरों को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है।

अखिलेश त्रिपाठी

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह को नए सिरे से परिभाषित करने की बात कहने से यह आभास होता है कि राजद्रोह की ओट लेकर अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीनने का प्रयास किया जा रहा है या लोगों की बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने का काम किया जा रहा है।सुप्रीम कोर्ट के द्वारा राजद्रोह को लेकर इस तरह की बात कहना कोई सामान्य घटना नहीं है बल्कि देश की सर्वोच्च अदालत ने अभिव्यक्ति की आजादी पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए यह बात की है।

देश में 2014 में जबसे केंद्र में भाजपा की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी है, तबसे एक नया चलन यह शुरू हुआ है कि आलोचना को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करना है। इस चलन के आरंभ होने से देश में स्वस्थ और और साफ-सुथरी राजनीति खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है। यही नहीं, राजनीतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ गई हैं। लोकतंत्र में सत्ता पक्ष के साथ मजबूत विपक्ष का होना जरूरी माना जाता है। इसके साथ ही न्यायपालिका का स्वतंत्र होना भी जरूरी माना गया है। तभी लोकतंत्र अपने असली रूप में कार्य करता है और लोकतंत्र के स्वरूप का विकास होता है।

लोकतंत्र में आलोचना की भी बड़ी भूमिका होती है। आलोचना से सरकार और विपक्ष को नई सीख मिलती है। सरकार द्वारा अगर जाने-अनजाने कोई जनविरोधी नीतियां बनाई जा रही होती हैं तो आलोचनाओं से सीख कर सरकार अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयास करती है। इससे लोकतंत्र मज़बूत और विकसित होता है। साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वस्थ और साफ -सुथरी राजनीतिक व्यवस्था देखने को मिलती है। यह अच्छे लोकतंत्र की सुंदर और अच्छी तस्वीर होती है। लोकतंत्र के इस स्वरूप का असर देश-विदेश में देखने को मिलता है और उसका सकारात्मक संदेश जाता है। जिन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, वहां की सरकार खासतौर पर भारत के लोकतांत्रिक स्वरूप और व्यवस्था से अच्छाईयों को ग्रहण करते हैं।

लेकिन जबसे देश में केंद्र सरकार में भाजपा ने सत्ता संभाली है, तबसे आलोचना को न सुनने और न बर्दाश्त करने का चलन शुरू हो गया है। केंद्र सरकार ही नहीं राज्यों की राज्य सरकार और अधिकारी भी अब अपनी आलोचना को नहीं सुनते हैं और आलोचना करने वाले व्यक्ति, पत्रकार, समाज के सजग नागरिकों और देश एवं समाज के प्रति अच्छी सोंच रखने वालों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज करवाकर उसका उत्पीड़न करते हैं। साथ ही सम्बंधित व्यक्ति को जेलों में भी डाल दिया जाता है।

राजद्रोह का एक ऐसा ही ताजा मामला आंध्र प्रदेश से सामने आया है। इस मामले के सामने आने के बाद ही देश के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, अब समय आ गया है कि राजद्रोह की सीमा तय की जाए। सुप्रीम कोर्ट यहीं पर नहीं रुका है बल्कि उसने और आगे बढ़कर कहा है कि, राजद्रोह कानून को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। खासतौर पर मीडिया की आजादी के संदर्भ में।

सुप्रीम अदालत ने कहा कि,बोलने की आजादी और प्रेस के अधिकार पर राजद्रोह कानून की व्याख्या पर गौर करेगी। सुप्रीम कोर्ट के जज डी वाई चन्द्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रवींद्र भट की पीठ ने आंध्र प्रदेश की जगन रेड्डी सरकार को टीवी5 और एबीएन आंध्र ज्योति न्यूज चैनलों के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे में किसी तरह की कार्यवाही करने से रोंक दिया है। इसके साथ ही आंध्र प्रदेश सरकार से 4 सप्ताह में जवाब देने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की पीठ ने कहा है कि, प्रथम द्रष्टया यह एफआईआर मीडिया की आजादी का गला घोंटना प्रतीत होता है। जगन रेड्डी की पार्टी के असंतुष्ट सांसद के रघुराम कृष्ण राजू के एक आपत्तिजनक भाषण को दोनों न्यूज चैनलों ने प्रसारित किया था। इसी से नाराज होकर आंध्र प्रदेश सरकार ने इन चैनलों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज कर दिया था और इन्हें आंध्र प्रदेश सरकार उत्पीड़ित कर रही थी। इसीके विरुद्ध इन चैनलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करने के लिए राजद्रोह को नए सिरे से परिभाषित करने की बात कही है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ ने कहा है कि, मीडिया की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में विशेष तौर पर भारतीय दंड संहिता की धारा1224 ए (राजद्रोह) और 153 ए (धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवासस्थान और भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समुदायों और समूहों के बीच सौहार्द बिगाड़ने) के दायरों को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट की यह बात आज के मौजूदा समय में सटीक बैठती है। सुप्रीम कोर्ट ने जो यह बात कही है, वह केवल एक बात नहीं है बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी पर मंडरा रहे खतरे का संकेत भी है। सुप्रीम कोर्ट अभिव्यक्ति की आजादी यानी बोलने की स्वतंत्रता को बनाए रखने का पक्षधर है और वह इसकी सुरक्षा को लेकर चिंतित है। इसलिए उसने आज के मौजूदा समय में राजद्रोह को नए सिरे से परिभाषित करने की बात कही है।

सुप्रीम कोर्ट की यह बात आज के समय में बहुत ही जरूरी है। क्योंकि देश में सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों ने आलोचना सुनने का माद्दा खो दिया है। यह आलोचना किए जाने पर तुरंत राजद्रोह का मामला दर्ज कर परेशान करने लगते हैं। इसलिए राजद्रोह को वाकई में मौजूदा परिस्थितियों में नए सिरे से परिभाषित करना आज की ज़रूरत है।

देश की सर्वोच्च अदालत ने ऐसे समय में यह बात की है, जब देश में राजद्रोह का सरकार और अधिकारियों द्वारा जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। मसलन प्रसिद्ध पत्रकार विनोद दुआ के प्रकरण को ही देखा जा सकता है। विनोद दुआ ने केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना की। इस आलोचना के उपरांत एक भाजपा नेता ने हिमाचल प्रदेश में विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज कराया। इसके बाद हिमाचल प्रदेश की पुलिस ने विनोद दुआ को गिरफ्तार करने के लिए उनके दिल्ली आवास पर दबिश दी। विनोद दुआ को पुलिस ने काफी समय तक परेशान किया। विनोद दुआ ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट ने विनोद दुआ पर राजद्रोह के चल रहे मुकदमे को खत्म कर दिया और कहा कि सरकार की आलोचना करने का सबको अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बयान से विनोद दुआ को राहत मिली।

राजद्रोह के दुरुपयोग करने को लेकर विपक्ष और समाजसेवियों के साथ-साथ भाजपा नेता भी परेशान रहते हैं। उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के सदर विधायक राकेश राठौर तो अपनी ही सरकार के ऊपर तंज कसते हुए कहते हैं कि, अब अगर बोलना है तो मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अगर आप सरकार के खिलाफ बोलने का प्रयास करेंगे तो आप पर राजद्रोह लगा दिया जायेगा। सीतापुर के भाजपा विधायक राकेश राठौर का इस प्रकार की बात कहना अपने आप में खुद ही राजद्रोह के दुरुपयोग होने का सबसे बड़ा सबूत है।

राजद्रोह क़ानून के दुरुपयोग किए जाने के मामले तो अब आ ही रहे हैं। लेकिन इसके अलावा अक्षम और दुष्ट प्रकृति के अधिकारी भी अब अपनी अक्षमता को छुपाने के लिए पत्रकारों को धमकी देने का काम करने लगे हैं। एक ऐसा ही मामला गोरखपुर के जिलाधिकारी का सामने आया है। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर के नजदीक सदियों से रहने वाले लोगों में से 11 मुस्लिम समुदाय के परिवार को उजाड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इन लोगों से एक सादे कागज के सहमति पत्र पर जबरिया हस्ताक्षर करवा कर इनको इनके आशियाना से बेदखल करने का कुचक्र रचा गया है। इन परिवार से जिस सादे कागज के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, उस सहमति पत्र में न तो किसी विभाग का नाम लिखा है और न ही किसी अधिकारी का नाम है। हैरत की बात यह है कि जब इस मामले की जानकारी इंडिया टुमारो के रिपोर्टर को हुई तो उसने गोरखपुर के जिलाधिकारी को मोबाईल के जरिए संपर्क कर उनका पक्ष जानने का प्रयास किया तो जिलाधिकारी के विजयेंद्र पांडियन ने जवाब देने के बजाए पत्रकार को धमकी दी।

गोरखपुर के जिलाधिकारी पांडियन ने पत्रकार मसीहुज्जमा अंसारी को उनके खिलाफ एनएसए लगाने की धमकी दी। इस तरह का काम करके जिलाधिकारी ने निरंकुश होने के साथ -साथ एक पत्रकार की आवाज को दबाने का प्रयास करते हुए अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बोला। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में कहीं से भी उचित नहीं है। इस तरह का कृत्य करने वाले आईएएस अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही की जानी चाहिए।

राजद्रोह की ओट लेकर अभिव्यक्ति की आजादी को छीनने का प्रयास सरकारों द्वारा किया जा रहा है। इसमें उत्तर प्रदेश सरकार भी पीछे नहीं है। राज्य सरकार के पूर्व नोकरशाह और रिटायर हो गए आई ए एस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने कोरोना कॉल में गंगा नदी में तैरती लाशों को लेकर योगी आदित्यनाथ की सरकार के खिलाफ टिप्पणी की थी। इससे योगी आदित्यनाथ की सरकार उनसे इतना अधिक नाराज हो गई कि उसने सूर्य प्रताप सिंह के विरुद्ध उन्नाव जिले में और लखनऊ में 3 राजद्रोह के मामले दर्ज कराया। एक नहीं बल्कि राजद्रोह के 3 मामले दर्ज कराया जाना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में भी राजद्रोह का दुरुपयोग किया जा रहा है। हाई कोर्ट ने सूर्य प्रताप सिंह को गिरफ्तारी के विरुद्ध स्टे दे रखा है लेकिन इस सब के बावजूद उन्नाव जिले और लखनऊ की पुलिस ने सूर्य प्रताप सिंह के घर पर दबिश दी और उन्हें परेशान किया।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर राजद्रोह को नए सिरे से परिभाषित करने की बात पर प्रसिद्ध एडवोकेट लाखन सिंह खुशी जाहिर करते हुए कहते हैं कि, राजद्रोह को नए सिरे से परिभाषित करने की बात को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे समय में कहा है जब देश अजीबोगरीब परिस्थितियों से गुजर रहा है। बात-बात पर राजद्रोह को लगा देना कहीं से भी उचित नहीं है। इस तरह का कार्य राजद्रोह की महत्ता को कमजोर करता है। इसका जिस प्रकार दुरुपयोग किया जा रहा है, उसे ठीक नहीं कहा जा सकता है। शायद इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह को नए सिरे से परिभाषित करने की बात की है। मौजूदा परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट का यह कदम बिल्कुल सही है।

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