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Saturday, May 18, 2024
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2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नागरिकता क़ानून CAA लागू करने के लिए तैयार केंद्र

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मुसलमानों को भारत की नागरिकता प्राप्त करने से वंचित रखने वाले नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 अर्थात सीएए के नियम लोकसभा चुनाव से पहले अधिसूचित होने जा रहे हैं.

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इसे 26 जनवरी से पहले अधिसूचित किया जा सकता है. सरकार चुनावी लाभ के लिए इसे अधिसूचित करने की जल्दी में है, जबकि इस के विरोध में याचिकाएं मामला अभी भी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निर्णय के लिए लंबित हैं.

समाचार रिपोर्टो की बातों में दम भी नज़र आ रहा है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 23 दिसंबर, 2023 को पश्चिम बंगाल में एक सार्वजनिक बैठक में घोषणा की थी कि सीएए देश का कानून है और कोई भी इसे लागू किए जाने से रोक नहीं सकता है. मीटिंग में उन्होंने यह भी कहा कि इस कानून को लाना बीजेपी का वादा है और इस वादे को पूरा किया जाएगा.

सीएए की संवैधानिक वैधता को कई याचिकाकर्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के बावजूद गृह मंत्री की तरफ से यह घोषणा आई है. ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करने के लिए भी तैयार नहीं है.

यह अधिनियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम (हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी) प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा. ऐसे प्रवासियों के लिए कट-ऑफ तारीख 31 दिसंबर 2014 है, जिसका मतलब है यह कि वे इस तारीख से पहले भारत में प्रवास कर चुके हों. गैर मुस्लिमों को नागरिकता के लिए इसे विशेष छूट या अनुदान का कारण उनके कथित धार्मिक उत्पीड़न को बताया गया है.

गौरतलब है कि प्रसिद्ध शाहीन बाग आंदोलन सीएए कानून पारित होने के तुरंत बाद हुआ था. देशभर में व्यापक विरोध प्रदर्शन भी हुए थे. मुस्लिम समुदाय और विपक्षी दलों ने सीएए को भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताया था. इसे वापस लेने की पुरज़ोर मांग पुरे देश में हुई है. असम और त्रिपुरा में भी सीएए का कड़ा विरोध हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों का तर्क है कि सीएए केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों को नागरिकता रूपी संरक्षण प्रदान करने के लिए है. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह मनमाना अधिनियम है.

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि भारत के ही पड़ोसी देश म्यांमार में प्रताड़ित लोग रोहिंग्या हैं और श्रीलंका में तमिल लोग प्रताड़ित हैं, लेकिन सीएए उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से बाहर करता है.

सीएए, एनआरसी या राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के साथ मिलकर और भी खतरनाक बन जाता है. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि सीएए गैर-मुसलमानों को उनकी नागरिकता साबित करने के लिए किसी कागज की ज़रूरत पर बाध्य नहीं करता है, जबकि इसी कानून के तहत मुस्लिम समुदाय को दस्तावेजों द्वारा अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर किया जाएगा.

नागरिकता संशोधन बिल 9 दिसंबर, 2019 को लोकसभा से और दो दिन बाद राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था, जिसे 12 दिसंबर, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी. यह जनवरी 2020 में लागू हुआ. चूंकि सीएए के नियम अधिसूचित नहीं थे इसलिए इसे क्रियान्वित नहीं किया गया था.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 27 दिसंबर, 2023 को पश्चिम बंगाल में पार्टी की एक रैली में कहा कि सीएए बीजेपी का वादा है. उन्होंने कहा, “सीएए देश का कानून है और इसे कोई नहीं रोक सकता. यह हमारी पार्टी का वादा है.”

सरकार ने सीएए के नियम बनाने की तारीख कई बार बढ़ाई. सीएए के नियम बनाने में सरकार को चार साल से अधिक का समय लग गया, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह अब तैयार हो गया है. ऑनलाइन पोर्टल भी अब इनके मौजूद होने की बात कही जा रही है. नागरिकता के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और इसे मोबाइल फोन पर भी किया जा सकता है.

भारतीय नागरिकता चाहने वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को कोई दस्तावेज़ जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी. उन्हें सिर्फ वह साल बताना होगा जब वे भारत में आये थे. आवेदकों से कोई दस्तावेज़ नहीं मांगा जाएगा. जिन लोगों ने 2014 के बाद नागरिकता के लिए आवेदन किया था, उनके अनुरोध नए नियमों के अनुसार बनाए जाएंगे.

बताया जाता है कि 2014 तक पाकिस्तान और अफगानिस्तान से बत्तीस हज़ार प्रवासी भारत आए. जूनियर केंद्रीय गृह मंत्री नित्यानंद राय ने एक बयान में कहा है कि सीएए के बिना भी 2018 से 2021 के बीच भारत आए 3117 गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी गई है.

1955 के नागरिकता अधिनियम के तहत, नौ राज्यों के तीस से अधिक ज़िला मजिस्ट्रेट और गृह सचिवों को नागरिकता देने के लिए अधिकृत किया गया है. ये राज्य हैं गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र.

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